Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Author(s): Mehta Mohanlal Damodar
Publisher: Mehta Mohanlal Damodar

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Page 21
________________ पुज्जा जस्स पसीयंति संबुहा पुव्वसंथुया । पसन्ना लाभइरसंति विउलं अठियं सुयं ॥४६॥ स पुज्जसथ्थेसविणीय MB संसए मणोरुइ चिठ्ठइ कम्मसंपया । तवो समायारिं समाहि संबुडे महजुई पंचवयाइंपालि या ॥४७॥ सद्देव गंधव्व Fi मणुस्स पूइए चइत्तु देहं मलपंकपुवयं । सिद्धेवाहवइ सासए देवेवा अप्परए महिठिएत्तिबेमि ॥४८॥ ॐ ॥ इति विणयनामा झयणं पढमं सम्मत्तं ॥ १ ॥ ® तत्वन शुद्ध ज्ञान धरावनार अने प्रथमथीज विशुद्ध चार पाळनार। गुरु शिष्योना विनयथी प्रसन्न थइने तेमने विस्तीर्ण अने मोक्ष उत्पादकर ज्ञाननो लाभ आपे छे.[४६, एवा सुशिष्यना ज्ञाननी प्रशंसा थशे, तेना संदेह टळशे, ते पोतानां सुकृत्योथी गुरुना अंतःकरणने आनंद उपजावशे अने दश विध क्रिया [आचार] पाळीने, तप अने समाधीए करीने महाद्युति [महा तपना तेजवाळा ] समान ते साधु महा पंचव्रतनो पालणबार थशे. [४७]. उपरनां लक्षणोथी विभूषीत विनयी शिष्य, देव, गंधर्व अने मनुष्यथी पूजाशे अने मळ मूत्रवडे भरेली आ देहथी मुक्त थवा पछी ते कांतो जन्म मरण रहित सिद्ध४ थशे अथवा तो मोटी रिद्धि अने ओछी अविद्या वाळो देवता उपजशे.[४८]. हुं आम कहुं छ.५ *॥ प्रथम अध्ययन संपूर्ण ॥* १. पुन्वसंधुया शब्दार्थ-पूर्व काळथी प्रसिद्ध- lready famous. २.अष्ठिय-अर्थिक-मोक्षार्थी=Leading to liberaMation. ३. आगाथा माटे प्रोफेसर जेकोबी नीचेना शब्दो वापरेछे-" His knowledge will be honoured, his doubts will be removed, he will gladden the heart of his teacher by his good acts, kept 1: in safety by the performance of austerities and by meditation, being as it were a great light, he will keep the five vows. " . Liberated or perfected soul. ५. तिबेमि-दरेक अध्ययनने अंते आ शब्दो वपराय छे, श्री सुधर्मा स्वामी, श्री जंबु स्वामी प्रत्ये कही संभळावे छे. Jain Education Interational For Personal and Private Use Only orary.org

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