Book Title: Agam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Author(s): Ramnibhushan Bhattacharya
Publisher: Parshwanath Jain Library Jaipur

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Page 5
________________ - कथारम्भं - "उद्धरेदात्मनात्मानं नात्मानमवसादयेत् । आत्मैव ह्यात्मनो वन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः ।।" वंगदेशे दार्शनिक-साहित्येर शिवारथाय जैनदर्शनेर आलोचना अप्रासंगिक नहे एइरूप धारणार वशवी हइया आमि "दश वैकालिक सूत्र" वाला पद्य अनुवाद करिते' प्रवृत्त हइ। वालाभापाय अनभिज्ञ पाठकवृन्देर पक्ष इहा समधिक उपयोगी ना हइलेओ वालार सूक्ष्मदर्शी पण्डितगण ये इहाद्वारा जैनदर्शनेर तात्पर्य्य हृदयङ्गम करिते पारिवेन एविपये वोध हय काहार मतद्वध नाइ। जैन आगम-शास्त्र समूह प्राकृतभापाय (अर्द्ध मागधीभापाय ) रचित हइलेओ उहा संस्कृत, हिन्दी, गुजराटी एवं इंराजी भापाय अनूदित हइयाछे। वर्तमाने भारतीय कर्तृ पक्ष हिन्दीभापाके राष्ट्रभापारूपे निर्धारित करियाछेन वलिया एइग्रन्थ वंगवासिगणेर जन्य वाला अक्षरे एवं अपरेर जन्य देवनागरी अक्षरे मुद्रित हइयाछे।, जैनधर्म अति प्राचीन। यीशुखीप्टेर आविर्भावेर ६८० शत वन्सर पूब्वे गौतम बुद्ध जन्मग्रहण करेन। श्रीवर्द्धमान महावीर बुद्धर समसामयिक छिन। तीर्थंकर श्री महावीरेर आविर्भावर पूर्व

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