Book Title: Agam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Author(s): Ramnibhushan Bhattacharya
Publisher: Parshwanath Jain Library Jaipur
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अवकाशसूत्र - ( १ )
दृष्टिबाद नामीय द्वादशाङ्ग अप्राप्य । ४४ टि सूत्रेर मध्ये कृतकगुलिसूत्र यथायथ ओ सम्पूर्ण ना पाओयाय एवं अङ्गसूत्रगुलिर सहित स्थानेस्थाने उहादूर भेद परिलक्षित हओयाय जैनगणेर कतक सम्प्रदाय ३२ टि सूत्र प्रामाणिक वलिया ग्रहण करेन । ताहादेर भेद एइरूप : - अङ्ग ( ११ ), उपाङ्ग ( १२ ), मूलसूत्र (४), छेदसूत्र (४), आवश्यकसूत्र (१) (मोट ३२ टि सूत्र ) 1
उपरिलिखित-मतान्तर परिलक्षित हइलेओ दशवेकालिक सूत्रके सकलेइ मूलसूत्र र अन्तर्गत बलिया स्वीकार करियाछन ।
मात्र 1
दशवैकालिक सूत्र जैन सम्प्रदायेर एकटि अमूल्य धर्मग्रन्थ । इहा मूलसूत्र र अंश विशेष । आत्मार मूल्गुण प्रधानतः चारिटि यथा: -- ज्ञान, दर्शन, चारित्र एवं तपस्या । ये शास्त्र उक्त मूलगुण समूह पोपण करे उहाकेइ मूलसूत्र चलें । दश वैकालिक सूत्र दशदि अध्ययन एवं दुइटि चूलिका आछे । दशवैकालिक सूत्र सर्ग - ' विरतिरुपचारित्र धर्मेर पूर्ण विवरण पाओया याय । दशवेकालिक सूत्र प्रणेता जैनाचार्य श्रीशय्यम्भव भट्ट वीर सम्वत् ३६ साले राजगृह जन्मप्रहण करेन । तीहार पूर्ववर्तिगुरु -- स्थानीय आचार्य र नाम निन्मे लिखित हइल |
तीर्थङ्कर श्रीवर्द्धमान महावोर ।
श्री सुधर्मा स्वामी ।
श्री जम्बु स्वामी ।
1
श्रीप्रभव खामी ।
1
श्रीराग्यम्भव स्वामी
तशिष्य.
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"3
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