Book Title: Agam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Author(s): Ramnibhushan Bhattacharya
Publisher: Parshwanath Jain Library Jaipur
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[] प्रामाण्यस्वरूप एस्थले जैनसिद्धान्तदीपिकार पञ्चम प्रकाशेर ४० सूत्र उद्धत करितेछ।
"अपुनरावृत्तयोऽनन्ता मुक्ताः ॥ ४० ॥ सिद्धः वुद्धः मुक्तः परमात्मा परमेश्वर ईश्वर इत्यादय एकार्थाः । आत्माके जैनाचार्यगण वुद्ध मुक्त परमात्मा परमेश्वर ईश्वर प्रभृति नामे अभिहित करियाछन । अतएव इहाद्वारा प्रमाणित हय ये जैनगण
आत्माकेइ ईश्वर वलिया स्वीकार करियाछन । आत्माके याहारा ईश्वरस्वरूप मानेन ताहारा निरीश्वरवादी किरूपे हइलेन इहाइ आमार सुधीगणेर निकट जिज्ञास्य । आत्मवादके निरीश्वरवाद वलिले वैदान्तिकेर आत्मवादओ दोपावह हइया उठे।
जनगणेर शास्त्र आगम वा सिद्धान्त नामे परिचित। निम्ने उहार भाग विभाग प्रदर्शित हइल ।
सिद्धान्त (आगम ) मोट ४५टि ।
अंङ्ग (१२) उपाङ्ग (१२) प्रकीर्ण (१०) छेदसूत्र (६) मूलसूत्र (४) नन्दी(१) अङ्ग-आचारोङ्ग, सूत्रवृत्ताङ्ग, स्थानाङ्ग, समवायाङ्ग, भगवती विवाह. पन्नति वा व्याख्याप्रज्ञप्ति, ज्ञाताधर्मकथा, उपासकदशा, . . अन्तकृत्दशा, अनुत्तर उपपातिकदशा, प्रश्नव्याकरण, विपाक
सूत्र। (११) 'उपाङ्ग-ओपपातिक, रायप्रसेनीय, जीवाभिगम, प्रज्ञापना, जम्बुद्वीप
प्रज्ञप्ति, चन्द्रप्रज्ञप्ति, सूर्यप्रज्ञप्ति, नीरयावलिया, कल्पावतंसिका
पुष्पिका' पुष्पिचूलिका, वह्निदशा । (१२) । गूलसूत्र-दश वैकालिक सूत्र, उत्तराध्यनसूत्र नन्दी, अनुयोगद्वार । (४) छेद सूत्र-व्यवहार, बृहत्कल्प, निशीथ, दशाश्रूतरकन्ध (४)

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