Book Title: Agam 37 Dashashrutskandha Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

View full book text
Previous | Next

Page 16
________________ आगम सूत्र ३७, छेदसूत्र-४, ‘दशाश्रुतस्कन्ध' उद्देशक/सूत्र मुताबिक मिथ्यात्वी, घोर पापी पुरुष वर्ग एक गर्भ में से दूसरे गर्भ में, एक जन्म में से दूसरे जन्म में, एक मरण में से दूसरे मरण में, एक दुःख में से दूसरे दुःख में गिरते हैं । इस कृष्णपाक्षिक नारकी भावि में दुर्लभबोधि होती है । इस प्रकार का जीव अक्रियावादी है। सूत्र-३६ क्रियावादी कौन है ? वो क्रियावादी इस प्रकार का है जो आस्तिकवादी है, आस्तिक बुद्धि है, आस्तिक दृष्टि है । सम्यक्वादी और नित्य यानि मोक्षवादी है, परलोकवादी है। वो मानते हैं कि यह लोक, परलोक है, मातापिता है, अरिहंत चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव है, सुकृत-दुष्कृत कर्म का फल है, सदा चरित कर्म शुभ फल और असदाचरित कर्म अशुभ फल देते हैं । पुण्य-पाप फल सहित हैं । जीव परलोक में जाता है, आता है, नरक आदि चार गति है और मोक्ष भी है इस प्रकार माननेवाले आस्तिकवादी, आस्तिक बुद्धि, आस्तिक दृष्टि, स्वच्छंद, राग अभिनिविष्ट यावत् महान ईच्छावाला भी हो और उत्तर दिशावर्ती नरक में उत्पन्न भी शायद हो तो भी वो शुक्लपाक्षिक होता है । भावि में सुलभबोधि होकर, सुगति प्राप्त करके अन्त में मोक्षगामी होता है, वो क्रियावादी है। सूत्र - ३७ (उपासक प्रतिमा-१) क्रियावादी मानव सर्व (श्रावक श्रमण) धर्म रूचिवाला होता है । लेकिन सम्यक् प्रकार से कईं शीलव्रत, गुणव्रत, प्राणातिपात आदि विरमण, पच्चक्खाण, पौषधोपवास का धारक नहीं होता (लेकिन) सम्यक् श्रद्धावाला होता है, यह प्रथम दर्शन-उपासक प्रतिमा जानना । (जो उत्कृष्ट से एक मास की होती है।) सूत्र-३८ अब दूसरी उपासक प्रतिमा कहते हैं वो सर्व धर्म रुचिवाला होता है । (शुद्ध सम्यक्त्व के अलावा यति (श्रमण) के दश धर्म की दृढ़ श्रद्धावाला होता है) नियम से कईं शीलव्रत, गुणव्रत, प्राणातिपात आदि विरमण, पच्चक्खाण और पौषधोपवास का सम्यक् परिपालन करता है । लेकिन सामायिक और देसावगासिक का सम्यक् प्रतिपालन नहीं कर सकता । वो दूसरी उपासक प्रतिमा (जो व्रतप्रतिमा कहलाती है) । इस प्रतिमा का उत्कृष्ट काल दो महिने का है। सूत्र - ३९ अब तीसरी उपासक प्रतिमा कहते हैं वो सर्व धर्म रुचिवाला और पूर्वोक्त दोनों प्रतिमा का सम्यक परिपालक होता है। वो नियम से कई शीलव्रत, गुणव्रत, प्राणातिपात-आदि विरमण, पच्चक्खाण, पौषधोपवास का सम्यक् प्रकार से प्रतिपालन करता है । सामायिक और देसावकासिक व्रत का भी सम्यक् अनुपालक होता है। लेकिन वो चौदश, आठम, अमावास और पूनम उन तिथि में प्रतिपूर्ण पौषधोपवास का सम्यक् परिपालन नहीं कर सकता । वो तीसरी (सामायिक) उपासक प्रतिमा (इस सामायिक प्रतिमा के पालन का उत्कृष्ट काल तीन महिने है) सूत्र - ४० अब चौथी उपासक प्रतिमा कहते हैं। वो सर्व धर्म रूचिवाला (यावत् यह पहले कही गई तीनों प्रतिमा का उचित अनुपालन करनेवाला होता है 1) वो नियम से बहुत शीलव्रत, गुणव्रत, प्राणातिपात आदि विरमण, पच्चक्खाण, पौषधोपवास और सामायिक, देशावकासिक का सम्यक् परिपालन करता है । (लेकिन) एक रात्रि की उपासक प्रतिमा का सम्यक् परिपालन नहीं कर सकता । यह चौथी (पौषध नाम की) उपासक प्रतिमा बताई (जिसका उत्कृष्ट काल चार मास है ।) सूत्र-४१ अब पाँचवी उपासक प्रतिमा कहते हैं। मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(दशाश्रुतस्कन्ध)" आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद" Page 16

Loading...

Page Navigation
1 ... 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30