Book Title: Agam 37 Dashashrutskandha Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

View full book text
Previous | Next

Page 24
________________ आगम सूत्र ३७, छेदसूत्र-४, दशाश्रुतस्कन्ध' उद्देशक/सूत्र दशा-१०-आयतिस्थान सूत्र - ९४ उस काल और उस समय में राजगृह नगर था । गुणशील चैत्य था । श्रेणिक राजा था । चेल्लणा रानी थी। (सब वर्णन औपपातिक सूत्रवत् जानना) सूत्र - ९५ तब उस राजा श्रेणिक-बिंबिसारने एक दिन स्नान किया, बलिकर्म किया, विघ्नशमन के लिए ललाट पर तिलक किया, दुःस्वप्न दोष निवारणार्थ प्रायश्चित्तादि विधान किये, गले में माला पहनी, मणि-रत्नजड़ित सुवर्ण के आभूषण धारण किये, हार-अर्धहार-त्रिसरोहार पहने, कटिसूत्र पहना, सुशोभित हुआ । आभूषण व मुद्रिका पहनी, यावत् कल्पवृक्ष के सदृश वह नरेन्द्र श्रेणिक अलंकृत और विभूषित हुआ । यावत् चन्द्र के समान प्रियदर्शी नरपति श्रेणिक बाह्य उपस्थानशाला के सिंहासन पर पूर्वाभिमुख होकर बैठा । अपने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाकर कहा - __ हे देवानुप्रियो ! राजगृह नगरी के बाहर जो बगीचे, उद्यान, शिल्पशाला, धर्मशाला, देवकुल, सभा, प्याऊ, दुकान, मंडी, भोजनशाला, व्यापार केन्द्र, शिल्प केन्द्र, वनविभाग इत्यादि सभी स्थानों में जाकर मेरे सेवकों को निवेदन करो-श्रेणिक बिंबिसारकी यह आज्ञा है कि जब आदिकर तीर्थंकर यावत सिद्धिगति के ईच्छक श्रमण भगवान महावीर विचरण करते हुए-संयम और तप से अपनी आत्मा को भावित करते हुए यहाँ पधारे, तब भगवान महावीर को उनकी साधना के अनुकूल स्थान दिखाना यावत् रहने की अनुज्ञा प्रदान करना । तब वह प्रमुख राज्याधिकारी, श्रेणिकराजा के इस कथन से हर्षित हृदय होकर, यावत् श्रेणिक राजा की आज्ञा को विनयपूर्वक स्वीकार करके राजमहल से नीकले, नगर के बाहर बगीचा, यावत् सभी स्थानों के सेवकों को राजा श्रेणिक की आज्ञा से अवगत कराया और फिर वापस आ गए। सूत्र-९६ उस काल उस समय में धर्म के आदिकर तीर्थंकर श्रमण भगवान महावीर विचरण करते हुए, यावत् गुणशील चैत्य में पधारे । उस समय राजगृह नगर के तीन रास्ते, चार रस्ते, चौक में होकर, यावत् पर्षदा नीकली, यावत् पर्युपासना करने लगी। श्रेणिक राजा के सेवक अधिकारी श्रमण भगवान महावीर के पास आए, प्रदक्षिणा की, वन्दन-नमस्कार किया, यावत् एक दूसरे से कहने लगे कि जिनका नाम व गोत्र सूनकर श्रेणिक राजा हर्षितसंतुष्ट यावत् प्रसन्न हो जाता है, वे श्रमण भगवान महावीर विचरण करते हुए, यावत् यहाँ पधारे हैं । इसी राजगृही नगरी के बाहर गुणशील चैत्य में तप और संयम से अपनी आत्मा को भावित करते हुए रहे हैं। हे देवानुप्रियो ! श्रेणिक राजा को इस वृत्तान्त निवेदन करो । परस्पर एकत्रित होकर वे राजगृही नगरीमें यावत् श्रेणिक राजा के पास आकर बोले-हे स्वामी ! जिनके दर्शन की आप अभिलाषा करते हैं वे श्रमण भगवान महावीर गुणशीलचैत्यमें यावत् बिराजित हैं । यह संवाद आप को प्रिय हो, इसलिए हम आपको निवेदित करते हैं। सूत्र-९७ उस समय राजा श्रेणिक इस संवाद को सुनकर-अवधारित कर हृदय से हर्षित एवं संतुष्ट हुआ यावत् सिंहासन से उठकर सात-आठ कदम चलके वन्दन-नमस्कार किए । उन सेवकों को सत्कार-सन्मान करके प्रीति पूर्वक आजीविका योग्य विपुल दान देकर विदा किए । नगर रक्षकों को बुलाकर कहा कि आप शीघ्र ही राजगृह नगर को बाहर से और अंदर से परिमार्जित करो-जल से सिंचित करो। सूत्र-९८ उसके बाद श्रेणिक राजाने सेनापति को बुलाकर कहा-शीघ्र ही रथ, हाथी, घोड़ा एवं योद्धायुक्त चतुरंगिणी सेना को तैयार करो यावत् मेरी यह आज्ञापूर्वक कार्य हो जाने का निवेदन करो । उसके बाद राजा श्रेणिक ने यानशाला अधिकारी को बुलाकर श्रेष्ठ धार्मिक रथ सुसज्ज करने की आज्ञा दी । यानशाला अधिकारी भी हर्षित मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(दशाश्रुतस्कन्ध)" आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद” Page 24

Loading...

Page Navigation
1 ... 22 23 24 25 26 27 28 29 30