Book Title: Agam 37 Dashashrutskandha Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र ३७, छेदसूत्र-४, 'दशाश्रुतस्कन्ध'
उद्देशक/सूत्र दशा-९-मोहनीय स्थान आठ कर्मों में मोहनीय कर्म प्रबल है । उसकी स्थिति भी सबसे लम्बी है । इसके संपूर्ण क्षय के साथ ही क्रम से शेष कर्मप्रकृति का क्षय होता है । इस मोहनीय कर्म के बन्ध के ३० स्थान (कारण) यहाँ प्ररूपित हैं - सूत्र-५४
___ उस काल उस समय में चम्पानगरी थी । पूर्णभद्र चैत्य था । कोणिक राजा तथा धारिणी राणी थे । श्रमण भगवान महावीर वहाँ पधारे । पर्षदा नीकली । भगवंतने देशना दी । धर्म श्रवण करके पर्षदा वापिस लौटी । बहुत साधु-साध्वी को भगवंत ने कहा-आर्यो ! मोहनीय स्थान ३० हैं । जो स्त्री या पुरुष इस स्थान का बारबार सेवन करते हैं, वे महामोहनीय कर्म का बन्ध करते हैं । सूत्र - ५५-५७
जो कोई त्रस प्राणी को जल में डूबाकर मार डालते हैं, वे महामोहनीय कर्म का बन्ध करते हैं । प्राणी के मुख-नाक आदि श्वास लेने के द्वारों को हाथ से अवरुद्ध करके । अग्नि की धूम्र से किसी गृह में घीरकर मारे तो महामोहनीय कर्मबन्ध करे । सूत्र-५८-६०
जो कोई प्राणी को मस्तक पर शस्त्रप्रहार से भेदन करे, अशुभ परिणाम से गीला चर्म बांधकर मारे, छलकपट से किसी प्राणी को भाले या इंडे से मार कर हँसता है, तो महामोहनीय कर्मबन्ध होता है। सूत्र- ६१-६३
जो गूढ आचरण से अपने मायाचार को छूपाए, असत्य बोले, सूत्रों के यथार्थ को छूपाए, निर्दोष व्यक्ति पर मिथ्या आक्षेप करे या अपने दुष्कर्मों को दूसरे पर आरोपण करे, सभा मध्य में जान-बूझकर मिश्र भाषा बोले, कलहशील हो-वह महामोहनीय कर्म बांधता है। सूत्र- ६४-६५
जो अनायक मंत्री-राजा को राज्य से बाहर भेजकर राज्यलक्ष्मी का उपभोग करे, राणी का शीलखंडन करे, विरोधकर्ता सामंतो की भोग्यवस्तु का विनाश करे तो वह महामोहनीय कर्म बांधता है। सूत्र-६६-६८
जो बालब्रह्मचारी न होते हुए अपने को बालब्रह्मचारी कहे, स्त्री आदि के भोगो में आसक्त रहे, वह गायों के बीच गद्धे की प्रकार बेसूरा बकवास करता है । आत्मा का अहित करनेवाला वह मूर्ख मायामृषावाद और स्त्री आसक्ति से महामोहनीय कर्म बांधता है। सूत्र - ६९-७१
जो जिसके आश्रय से आजीविका करता है, जिसकी सेवा से समृद्ध हुआ है, वह उसीके धन में आसक्त होकर, उसका ही सर्वस्व हरण करे, निर्धन ऐसा कोई जिस व्यक्ति या ग्रामवासी के आश्रय से सर्व साधनसम्पन्न हो जाए, फिर इर्ष्या या संक्लिष्टचित्त होकर आश्रयदाता के लाभ में यदि अन्तरायभूत हो, तो महामोहनीय कर्म बांधे सूत्र-७२
जिस प्रकार सापण अपने बच्चे को खा जाती है, उसी प्रकार कोई स्त्री अपने पति को, मंत्री, राजा को, सेना सेनापति को या शिष्य शिक्षक को मार डाले तो वे महामोहनीय कर्म बांधते हैं। सूत्र-७३-७४
जो राष्ट्र नायक को, नेता को, लोकप्रिय श्रेष्ठी को या समुद्र में द्वीप सदृश अनाथ जन के रक्षक को मार डाले तो वह महामोहनीय कर्म बांधता है।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(दशाश्रुतस्कन्ध)" आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद"
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