Book Title: Agam 32 Devendrastava Sutra Hindi Anuwad Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar View full book textPage 8
________________ आगम सूत्र ३२, पयन्नासूत्र-९, देवेन्द्रस्तव' समान, धाता, विधाता, ऋषि, ऋषिपाल, ईश्वर, महेश्वर, सुवत्स, विशाल, हास, हासरति, श्वेत, महाश्वेत, पतंग, पतंगपति उन सोलह इन्द्र को जानना । सूत्र - ७३ व्यंतर देव ऊर्ध्व, अधो और तिर्यक लोक में पैदा होते हैं और निवास करते हैं। उसके भवन रत्नप्रभा पृथ्वी के ऊपर के हिस्से में होते हैं। सूत्र-७४-७६ एक-एक युगल में नियमा अनगिनत श्रेष्ठ भवन हैं । वो फाँसले में अनगिनत योजनवाले हैं, जिसके विविध विविध भेद इस प्रकार हैं । वो उत्कृष्ट से जम्बूद्वीप समान, जघन्य से भरतक्षेत्र समान और मध्यम से विदेह क्षेत्र समान होते हैं । जिसमें व्यंतर देव श्रेष्ठ तरुणी के गीत और संगीत की आवाझ के कारण से नित्य सुखयुक्त और आनन्दित रहने से पसार होने वाले वक्त को नहीं जानते। सूत्र - ७७-७८ काल, सुरूप, पुन्य, भीम, किन्नर, सुपुरिष, अकायिक, गीतरती ये आठ दक्षिण में होते हैं । मणि-स्वर्ण और रत्न के स्तूप, सोने की वेदिका युक्त उनके भवन दक्षिणदिशा की ओर होते हैं और बाकी के उत्तरदिशा में होते हैं। सूत्र-७९ इस व्यंतर देव की जघन्य आयु १०००० साल है और उत्कृष्ट आयु एक पल्योपम है। सूत्र-८० इस तरह व्यंतर देव के भवन और स्थिति संक्षेपमें कहा है, अब ज्योतिष्क देव के आवास का विवरण सुन सूत्र-८१-८४ चन्द्र, सूर्य, तारागण, नक्षत्र और ग्रहगण समूह इस पाँच तरह के ज्योतिषी देव बताए हैं । अब उसकी स्थिति और गति बताऊंगा । तिर्छालोक में ज्योतिषी के अर्धकपित्थ फल के आकारवाले स्फटिक रत्नमय, रमणीय अनगिनत विमान हैं । रत्नप्रभा पृथ्वी के समभूतल हिस्से से ७९० योजन ऊंचाई पर उसका निम्न तल है और वो समभूतला पृथ्वी से सूर्य ८०० योजन ऊपर है । उसी तरह चन्द्रमा ८८० योजन ऊपर है उसी तरह ज्योतिष देव का विस्तार ११० योजन में है। सूत्र-८५ एक योजन के ६१ हिस्से किए जाए तो ६१ वे हिस्से में ५६ वे हिस्से जितना चन्द्र परिमंडल होता है। और सूर्य का आयाम विष्कम्भ ४५ हिस्से जितना होता है। सूत्र-८६ जिसमें ज्योतिषी देव श्रेष्ठ तरुणी के गीत और वाद्य की आवाझ के कारण से हमेशा सुख और प्रमोद से पसार होनेवाले काल को नहीं जानते । सूत्र-८७-९० एक योजन के ६१ हिस्से में से ५६ हिस्से विस्तारवाला चन्द्रमंडल होता है और २८ जितनी चौड़ाई होती है। ४८ भाग जितने फैलाववाला सूर्यमंडल और २४ हिस्से जितनी चौड़ाई होती है । ग्रह आधे योजन विस्तार से उससे आधे विस्तार में नक्षत्र समूह और उसके आधे विस्तार में तारासमूह होता है। उससे आधे विस्ता उसकी चौड़ाई होती है। एक योजन का आधा दो गाउ होता है । उसमें गाउ ५०० धनुष का होता है । यह ग्रहनक्षत्र समूह और मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (देवेन्द्रस्तव) आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद" Page 8Page Navigation
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