Book Title: Agam 32 Devendrastava Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र ३२, पयन्नासूत्र-९, देवेन्द्रस्तव' सूत्र - २३८
उससे ज्यादा आयुवाले देव तिर्छा असंख्यात द्वीप-समुद्र तक जानते हैं । ऊपर सभी अपने कल्प की ऊंचाई तक जानते हैं। सूत्र - २३९
अबाह्य अर्थात् जन्म से अवधिज्ञान वाले नारकी देव, तीर्थंकर पूर्णता से देखते हैं और बाकी अवधिज्ञानी देश से देखते हैं। सूत्र- २४०
मैंने संक्षेप में यह अवधिज्ञानी विषयक वर्णन किया । अब विमान का रंग, चौडाई और ऊंचाई बताऊंगा। सूत्र- २४१
___ सौधर्म और ईशान कल्प में पृथ्वी की चौड़ाई २७०० योजन है और वो रत्न से चित्रित जैसी है। सूत्र - २४२
सुन्दर मणी की वेदिका से युक्त, वैडुर्यमणि के स्तूप से युक्त, रत्नमय हार और अलंकार युक्त ऐसे कई प्रासाद इस विमान में होते हैं। सूत्र- २४३
उसमें जो कृष्ण विमान है वो स्वभाव से अंजन धातु समान एवं मेघ और काक समान वर्णवाले होते हैं। जिसमें देवता बसते हैं। सूत्र - २४४
जो हरे रंग के विमान हैं वो स्वभाव से मेदक धातु समान और मोर की गरदन समान वर्णवाले हैं जिसमें देवता बसते हैं। सूत्र - २४५
जो दीपशिखा के रंगवाले विमान हैं वो जासूद पुष्प, सूर्य जैसे और हिंगुल धातु के समान वर्णवाले हैं उसमें देवता बसते हैं। सूत्र-२४६
उसमें जो कोरंटक धातु समान रंगवाले विमान हैं वो खीले हुए फूल की कर्णिका समान और हल्दी जैसे पीले रंग के हैं जिसमें देवता बसते हैं । सूत्र - २४७
यह देवता कभी न मुरझानेवाले हारवाले, निर्मल देहवाले, गन्धदार श्वासोच्छ्वास वाले अव्यवस्थित वयवाले, स्वयं प्रकाशमान और अनिमिष आँखवाले होते हैं। सूत्र-२४८
वे सभी देवता ७२ कला में पंड़ित होते हैं । भवसंक्रमण प्रक्रिया में उसका प्रतिपात होता है ऐसा जानना । सूत्र - २४९
शुभ कर्म के उदयवाले उन देव का शरीर स्वाभाविक तो आभूषण रहित होता है । लेकिन वो अपनी ईच्छा के मुताबिक विकुर्वित आभूषण धारण करते हैं । सूत्र-२५०
सौधर्म ईशान के यह देव माहात्म्य, वर्ण, अवगाहना, परिमाण और आयु मर्यादा आदि दशा विशेष में हमेशा गोल सरसव समान एकरूप होता है। मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (देवेन्द्रस्तव) आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद"
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