Book Title: Agam 32 Devendrastava Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र ३२, पयन्नासूत्र-९, देवेन्द्रस्तव' सूत्र-२२२
जिस तरह सर्वश्रेष्ठ गन्ध, रूप और शब्द होते हैं उसी तरह सचित्त पुद्गल के भी सर्वश्रेष्ठ रस, स्पर्श और गन्ध इस देव के होते हैं। सूत्र-२२३
जैसे भँवरा फैली हुई कली, फैली हुई कमलरज और श्रेष्ठ कुसुम की मकरंद का सुख से पान करता है। (उसी तरह यह देव पौदगलिक विषय सेवन करते हैं ।) सूत्र - २२४
हे सुंदरी ! यह देव श्रेष्ठ कमल जैसे श्वेत वर्णवाले एक ही उद्भव स्थान में निवास करनेवाले और वो उद्भव स्थान से विमुक्त होकर सुख का अहसास करते हैं । सूत्र - २२५-२२७
हे सुंदरी ! अनुत्तर विमानवासी देव को ३३ हजार साल पूरे होने पर आहार की ईच्छा होती है । मध्यवर्ती आयु धारण करनेवाले देव को १६५०० साल पूरे होने पर आहार ग्रहण होता है । जो देव १० हजार साल की आयु धारण करते हैं उनका आहार एक-एक दिन के अन्तर से होता है। सूत्र - २२८-२३०
हे सुंदरी ! एक साल साड़े चार महिने अनुत्तरवासी देव के श्वासोच्छ्वास होते हैं । मध्यम आयु देव को आठ मास और साड़े सात दिन के बाद श्वासोच्छ्वास होते हैं । जघन्य आयु को धारण करनेवाले देव का श्वासोच्छ् वास सात स्तोक में पूर्ण होता है। सूत्र-२३१
देव को जितने सागरोपम की जिनकी दशा उतने ही दिन साँस होती है। सूत्र- २३२
____ और उतने ही हजार साल पर उन्हें आहार की ईच्छा होती है । इस तरह आहार और श्वासोच्छ्वास का मैंने वर्णन किया, हे सुंदरी ! अब जल्द उनके सूक्ष्म अन्तर को मैं क्रमश: बताऊंगा। सूत्र - २३३
हे सुंदरी ! इस देव का जो विषय जितनी अवधि का होता है उसको मैं आनुपूर्वी क्रम से वर्णन करूँगा। सूत्र - २३४
सौधर्म और ईशान देव नीचे एक नरक तक, सनतकुमार और महिन्द्र दूसरे नरक तक, ब्रह्म और लांतक तीसरे नरक तक शुक्र और सहस्रार चौथी नरक तक। सूत्र-२३५
आनत से अच्युत तक के देवों को पाँचवे नरक तक। सूत्र - २३६
अधस्तन और मध्यवर्ती ग्रैवेयक देवों को छठी नरक तक, उपरितन ग्रैवेयकों को सातवी नरक तक और पाँच अनुत्तरवासी सम्पूर्ण लोकनाड़ी को अवधिज्ञान से देखते हैं । सूत्र-२३७
आधा सागरोपम से कम आयुवाले देव अवधिज्ञान से तिर्छा संख्यात योजन-उससे अधिक पच्चीस सागरोपम वाले भी जघन्य से संख्यात योजन देखते हैं।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् ' (देवेन्द्रस्तव)" आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद"
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