Book Title: Agam 32 Devendrastava Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 19
________________ आगम सूत्र ३२, पयन्नासूत्र-९, देवेन्द्रस्तव' हिम जैसे श्वेत वर्णवाले ११०० ऊंचे प्रासाद शोभायमान हैं | सेंकड़ों मणिजड़ित कई तरह के आसन, शय्या, सुशोभित विस्तृत वस्त्र, रत्नमय हार और अलंकार होते हैं । सूत्र-२७३-२७४ सर्वार्थसिद्ध विमान के सबसे ऊंचे स्तूप के अन्त में बारह योजन पर ईषत् प्राग्भारा पृथ्वी होती है । उसे निर्मल जलकण हिम, गाय का दूध, समुद्र के झाग जैसे उज्ज्वल वर्णवाली और उल्टे किए गए छत्र के आकार से स्थिर कहा है। सूत्र- २७५-२७६ वो ४५ लाख योजन लम्बी-चौड़ी और उससे तीन गुने से कुछ ज्यादा परिधि होती है वैसा जानना । यह परिधि १४२३०२४९ है। सूत्र - २७७-२७८ वो पृथ्वी बीच में ८ योजन चौड़ी और कम होते होते मक्खी के पंख की तरह पतली होती जाती है । शंख, श्वेत रत्न और अर्जुन सुवर्ण समान वर्णवाली उल्टे छत्र के आकार वाली है। सूत्र - २७९ सिद्ध शिला पर एक योजन के बाद लोक का अन्त होता है । उस एक योजन के ऊपर के सोलहवे हिस्से में सिद्ध स्थान अवस्थित है। सूत्र-२८० वहाँ वो सिद्ध निश्चय से वेदना रहित, ममता रहित, आसक्ति रहित और शरीर रहित घनीभूत आत्मप्रदेश से निर्मित आकारवाले होते हैं। सूत्र-२८१ सिद्ध कहाँ अटकते हैं ? कहाँ प्रतिष्ठित होते हैं ? शरीर का कहाँ त्याग करते हैं ? और फिर कहाँ जाकर सिद्ध होते हैं? सूत्र- २८२ सिद्ध भगवंत अलोक के पास रुकते हैं, लोकाग्र में प्रतिष्ठित होते हैं यहाँ शरीर को छोड़ते हैं और वहाँ जाकर सिद्ध होते हैं। सूत्र - २८३ शरीर छोड़ देते वक्त अंतिम वक्त पर जो संस्थान हो, उसी संस्थान को ही आत्म प्रदेश घनीभूत होकर वे सिद्ध अवस्था पाते हैं। सूत्र- २८४ अन्तिम भव में शरीर का जो दीर्घ या ह्रस्व प्रमाण होता है । उसका एक तृतीयांश हिस्सा कम होकर सिद्ध की अवगाहना होती है। सूत्र- २८५ सिद्ध की उत्कृष्ट अवगाहना ३३३ धनुष से कुछ ज्यादा होती है वैसा समज । सूत्र - २८६ सिद्ध की मध्यम अवगाहना ४ हाथ पूर्ण के ऊपर दो तृतीयांश हस्त प्रमाण कहा है। रत्नी यानि एक हाथ प्रमाण जिसमें कोश में देढ फूट प्रमाण कहा है। मुनि दीपरत्नसागर कृत् ' (देवेन्द्रस्तव)" आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद" Page 19

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