Book Title: Agam 32 Devendrastava Sutra Hindi Anuwad Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar View full book textPage 7
________________ आगम सूत्र ३२, पयन्नासूत्र-९, देवेन्द्रस्तव' सूत्र-४४ दक्षिण दिशा के भवनपति के ६४००० और उत्तर दिशा के भवनपति के ६०००० वाणव्यंतर के ६००० और ज्योतिष इन्द्र के ४००० सामानिक देव होते हैं । सूत्र-४५ उसी तरह चमरेन्द्र और बलिन्द्र की पाँच अग्रमहिषी और बाकी के भवनपति की छह अग्रमहिषी होती है। सूत्र-४६ उसी तरह जम्बूद्वीप में दो, मानुषोत्तर पर्वत में चार, अरुण समुद्र में छ और अरुण द्वीप में आठ उस तरह से भवनपति के आवास हैं। सूत्र-४७ जिस नाम के सागर या द्वीप हैं उसी नाम के द्वीप या समुद्र में उनकी उत्पत्ति होती है। सूत्र -४८-५० ___ असुर नाग और उदधि कुमार का आवास अरुणवर समुद्र में होता है और उसमें ही उनकी उत्पत्ति होती है। द्वीप, दिशा, अग्नि और स्तनितकुमार का आवास अरुणवर द्वीप में होता है और उसमें ही उनकी उत्पत्ति होती है। वायुकुमार-सुवर्णकुमार इन्द्र के आवास मानुषोत्तर पर्वत पर होता है । हरि-हरिस्सह देव के आवास विद्युत्प्रभ और माल्यवंत पर्वत पर होते हैं। सूत्र-५१-६५ हे सुंदरी ! इस भवनपति देवमें जिन का बल-वीर्य पराक्रम है उस के यथाक्रम से आनुपूर्वी से वर्णन करता हूँ । असुर और असुर कन्या द्वारा जो स्वामित्व का विषय है । उसका क्षेत्र जम्बूद्वीप और चमरेन्द्र की चमरचंचा राजधानी तक है । यही स्वामित्व बलि और वैरोचन के लिए भी समझना । धरण और नागराज जम्बूद्वीप को फन द्वारा आच्छादित कर सकते हैं । उसी तरह भूतानन्द के लिए भी समझना । गरुड़ेन्द्र और वेणुदेव पंख से जम्बूद्वीप को आच्छादित कर सकते हैं । वही अतिशय वेणुदाली का भी जानना चाहिए । उस जम्बूद्वीप को वशिष्ठ अपने हाथ के तल से आच्छादीत कर सकता है । जलकान्त और जलप्रभ एक जलतरंग द्वारा जम्बूद्वीप को भर सकता है। अमितगति और अमितवाहन अपनी एक पाँव की एड़ी से पूरे जम्बूद्वीप को हिला सकता है । वेलम्ब और प्रभंजन एक वाय के गंजन से परे जम्बद्वीप को भर सकता है। हे संदरी ! घोष और महाघोष एक मेघगर्जना शब्द से जम्बूद्वीप को बेहरा बना सकता है । हरि और हरिस्सह एक विद्युत से पूरे जम्बूद्वीप को प्रकाशित कर सकता है। अग्निशीख और अग्निमानव एक अगन ज्वाला से पूरे जम्बूद्वीप को जला सकता है । हे सुंदरी ! तिर्छालोक में अनगिनत द्वीप और सागर हैं । इसमें से किसी भी एक इन्द्र अपने रूप से इस द्वीप-समुद्र को जम्बूद्वीप को बायें हाथ से छत्र की तरह धारण कर सकता है और मेरु पर्वत को भी परिश्रम बिना ग्रहण कर सकता है । किसी एक ताकतवर इन्द्र जम्बूद्वीप को छत्र और मेरु पर्वत को दंड़ बना सकता है । उन सभी इन्द्र की ताकत विशेष है। सूत्र-६६-६८ संक्षेप में इस भवनपति के भवन की स्थिति बताई अब यथाक्रम वाणव्यंतर के भवन की स्थिति सुनो। पिशाच, भूत, यक्ष, राक्षस, किन्नर, किंपुरुष, महोरग और गंधर्व वो वाणव्यंतर देव के आठ प्रकार हैं । यह वाणव्यंतर देव मैंने संक्षेप में बताए । अब एक-एक करके सोलह इन्द्र और उसकी ऋद्धि कहूँगा। सूत्र - ६९-७२ काल, महाकाल, सुरूप, प्रतिरूप, पूर्णभद्र, माणिभद्र, भीम, महाभीम, किन्नर, किंपुरुष, सत्पुरुष, महापुरुष, अतिकाय, महाकाय, गीतरति और गीतयश यह वाणव्यंतर इन्द्र हैं । और वाणव्यंतर के भेद में सन्निहित, मुनि दीपरत्नसागर कृत् ' (देवेन्द्रस्तव)" आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद" Page 7Page Navigation
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