Book Title: Agam 30 1 Gacchachar Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 7
________________ आगम सूत्र ३०/१,पयन्नासूत्र-७/१, 'गच्छाचार' सूत्र-२७ जो आचार्य सम्यक् तरह से जिनमत प्रकाशते हैं वो तीर्थंकर समान हैं और जो उनकी आज्ञा का उल्लंघन करते हैं वो कापुरुष हैं, सत्पुरुष नहीं । सूत्र - २८ भ्रष्टाचारी आचार्य, भ्रष्टाचारी साधु की उपेक्षा करनेवाले आचार्य और उन्मार्ग में रहे आचार्य, इन तीनों ज्ञान आदि मोक्ष मार्ग को नष्ट करते हैं। सूत्र - २९ उन्मार्ग में रहे और उन्मार्ग को नष्ट करनेवाले आचार्य का जो सेवन करते हैं, हे गौतम ! यकीनन वो अपने आत्मा को संसार में गिराते हैं। सूत्र -३० जिस तरह अनुचित तैरनेवाला आदमी कईं लोगों को बाता है, वैसे उन्मार्ग में रहा एक भी आचार्य उसके मार्ग का अनुसरण करनेवाले भव्य जीव के समूह को नष्ट करते हैं। सूत्र - ३१ उन्मार्गगामी की राह में व्यवहार करनेवाले और सन्मार्ग को नष्ट करनेवाले केवल साधु वेश धरनेवाले को हे गौतम ! यकीनन अनन्त संसार होता है। सूत्र - ३२ खुद प्रमादी हो, तो भी शुद्ध साधुमार्ग की प्ररूपणा करे और खुद को साधु एवं श्रावकपक्ष के अलावा तीसरे संविज्ञपक्ष में स्थित करे । लेकिन इससे विपरीत अशुद्ध मार्ग की प्ररूपणा करनेवाले खुद को गृहस्थधर्म से भी भ्रष्ट करते हैं। सूत्र-३३ अपनी कमझोरी के कारण से शायद त्रिकरणशुद्ध से जिनभाषित अनुष्ठान न कर सके, तो भी जैसे श्री वीतरागदेव न कहा है, वैसे यथार्थ सम्यक तरह से तत्त्व प्ररूपे । सूत्र - ३४ मुनिचर्या में शिथिल होने के बावजूद भी विशुद्ध चरणसित्तरी-करणसित्तरी के प्रशंसा करके प्ररूपणा करनेवाले सुलभबोधि जीव अपने कर्म को शिथिल करता है। सूत्र-३५ संविज्ञपाक्षिक मुनि सन्मार्ग में प्रवर्तते दूसरे साधुओं को औषध, भैषज द्वारा समाधि दिलाने समान खुद वात्सल्य रखे और दूसरों के पास करवाए। सूत्र - ३६ त्रिलोकवर्ती जीव ने जिसके चरणयुगल को नमस्कार किया है ऐसे कुछ जीव ही भूतकाल में थे, अभी हैं और भावि में होंगे कि जिनका काल मात्र भी दूसरों का हित करने के ही एक लक्षपूर्वक बीतता है। सूत्र - ३७, ३८ गौतम ! भूत, भावि और वर्तमान काल में भी कुछ ऐसे आचार्य हैं, कि जिनका केवल नाम ही ग्रहण किया जाए, तो भी यकीनन प्रायश्चित्त लगता है। जैसे लोक में नौकर और वाहन शिक्षा बिना स्वेच्छाचारी होता है, वैसे शिष्य भी स्वेच्छाचारी होता है । इसलिए गुरु ने प्रतिपृच्छा और प्रेरणादि द्वारा शिष्य वर्ग को हमेशा शिक्षा देनी चाहिए। मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(गच्छाचार)” आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद" Page 7

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