Book Title: Agam 30 1 Gacchachar Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र ३०/१,पयन्नासूत्र-७/१, 'गच्छाचार' सूत्र - १२८
संवेगवाली, भीत पर्षदावाली, जरुर होने पर उग्र दंड देनेवाली, स्वाध्याय और ध्यान में युक्त और शिष्यादिक का संग्रह करने में कुशल ऐसी साध्वी प्रवर्तिनी पद के योग्य जानना । सूत्र-१२९
जिस गच्छ में बुढ़ी साध्वी कोपायमान होकर साधु के साथ उत्तर-प्रत्युत्तर द्वारा जोरों से प्रलाप करती है, वैसे गच्छ से हे गौतम ! क्या प्रयोजन है ? सूत्र - १३०
हे गौतम ! जिस गच्छ के भीतर साध्वी जरुरत पड़ने पर ही महत्तरा साध्वी के पीछे खड़े रहकर मृदु, कोमल शब्द से बोलती है वही सच्चा गच्छ है। सूत्र - १३१
और फिर माता, बेटी, स्नुषा या भगिनी आदि वचन गुप्ति का भंग जिस गच्छ में साध्वी न करे उसे ही सच्चा गच्छ मानना चाहिए। सूत्र - १३२
जो साध्वी दर्शनातिचार लगाए, चारित्र का नाश और मिथ्यात्व पैदा करे, दोनों वर्गों के विहार की मर्यादा का उल्लंघन करे वो साध्वी नहीं है। सूत्र - १३३
धर्मोपदेश रहित वचन संसारमूलक होने से वैसी साध्वी संसार बढ़ाती है, इसीलिए हे गौतम ! धर्मोपदेश छोड़कर दूसरा वचन साध्वी को नहीं बोलना चाहिए। सूत्र - १३४
हर एक महिने एक ही कण से जो साध्वी तप का पारणा करती है, वैसी साध्वी भी यदि गहस्थ की सावध बोली से कलह करे तो उसका सर्व अनुष्ठान निरर्थक है। सूत्र - १३५
महानिशीथ, कल्प और व्यवहारभाष्य में से साधु-साध्वी के लिए यह गच्छाचार प्रकरण उद्धृत किया है। सूत्र - १३६
प्रधान श्रुत के रहस्यभूत ऐसा यह अति उत्तम गच्छाचार प्रकरण अस्वाध्यायकाल छोड़कर साधु-साध्वी को पढ़ना चाहिए। सूत्र-१३७
यह गच्छाचार साधु-साध्वी को गुरुमुख से विधिवत् सुनकर या पढ़कर आत्महित की उम्मीद रखनेवालों ने जैसे यहाँ कहा है वैसा करना चाहिए ।
३०/१ गच्छाचार-प्रकिर्णक सूत्र-७/१ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(गच्छाचार)” आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद”
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