Book Title: Agam 30 1 Gacchachar Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
Catalog link: https://jainqq.org/explore/034697/1

JAIN EDUCATION INTERNATIONAL FOR PRIVATE AND PERSONAL USE ONLY
Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नमो नमो निम्मलदंसणस्स बाल ब्रह्मचारी श्री नेमिनाथाय नमः पूज्य आनन्द-क्षमा-ललित-सुशील-सुधर्मसागर-गुरूभ्यो नमः आगम-३०/१ गच्छाचार आगमसूत्र हिन्दी अनुवाद अनुवादक एवं सम्पादक आगम दीवाकर मुनि दीपरत्नसागरजी [ M.Com. M.Ed. Ph.D. श्रुत महर्षि ] आगम हिन्दी-अनुवाद-श्रेणी पुष्प-३०/१ Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम सूत्र ३०/१,पयन्नासूत्र-७/१, 'गच्छाचार' आगमसूत्र-३०/१- "गच्छाचार' पयन्नासूत्र-७/१- हिन्दी अनुवाद कहां क्या देखे? क्रम विषय क्रम विषय पृष्ठ मंगल-आदि गच्छमें बसनेवाले के गुण आचार्य का स्वरुप ४ । गुरु का स्वरुप ५ साध्वी का स्वरुप ६ | उपसंहार १३ १५ मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(गच्छाचार)” आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद" Page 2 Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम सूत्र ३०/१,पयन्नासूत्र-७/१, 'गच्छाचार' ४५ आगम वर्गीकरण क्रम आगम का नाम सूत्र | क्रम आगम का नाम ०१ | आचार अंगसूत्र-१ २५ | आतुरप्रत्याख्यान पयन्नासूत्र-२ ०२ सूत्रकृत् अंगसूत्र-२ २६ ०३ स्थान अंगसूत्र-३ २७ | महाप्रत्याख्यान भक्तपरिज्ञा | तंदुलवैचारिक संस्तारक पयन्नासूत्र-३ पयन्नासूत्र-४ पयन्नासूत्र-५ ०४ समवाय अंगसूत्र-४ २८ ०५ अंगसूत्र-५ २९ पयन्नासूत्र-६ भगवती ज्ञाताधर्मकथा ०६ । अंगसूत्र-६ पयन्नासूत्र-७ उपासकदशा अंगसूत्र-७ पयन्नासूत्र-७ अंतकृत् दशा ०९ अनुत्तरोपपातिकदशा अंगसूत्र-८ अंगसूत्र-९ ३०.१ | गच्छाचार ३०.२ चन्द्रवेध्यक ३१ | गणिविद्या देवेन्द्रस्तव वीरस्तव पयन्नासूत्र-८ पयन्नासूत्र-९ ३२ । १० प्रश्नव्याकरणदशा अंगसूत्र-१० ३३ अंगसूत्र-११ ३४ | निशीथ ११ विपाकश्रुत १२ औपपातिक पयन्नासूत्र-१० छेदसूत्र-१ छेदसूत्र-२ उपांगसूत्र-१ बृहत्कल्प व्यवहार राजप्रश्चिय उपांगसूत्र-२ छेदसूत्र-३ १४ जीवाजीवाभिगम उपागसूत्र-३ ३७ उपांगसूत्र-४ उपांगसूत्र-५ उपांगसूत्र-६ छेदसूत्र-४ छेदसूत्र-५ छेदसूत्र-६ ४० उपांगसूत्र-७ दशाश्रुतस्कन्ध ३८ जीतकल्प ३९ महानिशीथ आवश्यक ४१.१ ओघनियुक्ति ४१.२ | पिंडनियुक्ति ४२ | दशवैकालिक ४३ उत्तराध्ययन ४४ नन्दी अनुयोगद्वार मूलसूत्र-१ मूलसूत्र-२ मूलसूत्र-२ १५ प्रज्ञापना १६ सूर्यप्रज्ञप्ति १७ चन्द्रप्रज्ञप्ति | जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति १९ निरयावलिका कल्पवतंसिका २१ | पुष्पिका | पुष्पचूलिका २३ वृष्णिदशा २४ चतु:शरण उपागसूत्र-८ उपांगसूत्र-९ उपांगसूत्र-१० उपांगसूत्र-११ उपांगसूत्र-१२ पयन्नासूत्र-१ मूलसूत्र-३ मूलसूत्र-४ चूलिकासूत्र-१ चूलिकासूत्र-२ मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(गच्छाचार)” आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद" Page 3 Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम सूत्र ३०/१, पयन्नासूत्र-७/१, 'गच्छाचार' बक्स 10 06 02 01 13 05 04 09 मुनि दीपरत्नसागरजी प्रकाशित साहित्य आगम साहित्य आगम साहित्य साहित्य नाम बक्स क्रम साहित्य नाम मूल आगम साहित्य: 147 6 | आगम अन्य साहित्य:1-1- आगमसुत्ताणि-मूलं print [49] -1- माराम थानुयोग -2- आगमसुत्ताणि-मूलं Net [45] -2- आगम संबंधी साहित्य -3- आगममञ्जूषा (मूल प्रत) [53] -3- ऋषिभाषित सूत्राणि | आगम अनुवाद साहित्य: 165 -4- आगमिय सूक्तावली 01 -1- આગમસૂત્ર ગુજરાતી અનુવાદ [47] | आगम साहित्य- कुल पुस्तक 516 -2- आगमसूत्र हिन्दी अनुवाद Net [47] | -3- Aagamsootra English Trans. | [11] | -4- सामसूत्र सटी ४२राती मनुवाः [48] -5- आगमसूत्र हिन्दी अनुवाद print [12] अन्य साहित्य:3 आगम विवेचन साहित्य: 171 તત્ત્વાભ્યાસ સાહિત્ય-1- आगमसूत्र सटीकं [46] 2 સૂત્રાભ્યાસ સાહિત્ય 06 1-2- आगमसूत्राणि सटीकं प्रताकार-1 / વ્યાકરણ સાહિત્ય| -3- आगमसूत्राणि सटीकं प्रताकार-2 વ્યાખ્યાન સાહિત્ય. -4- आगम चूर्णि साहित्य [09] 5 उनलत साहित्य|-5- सवृत्तिक आगमसूत्राणि-1 [40] 6 व साहित्य 04 -6- सवृत्तिक आगमसूत्राणि-2 [08] 7 माराधना साहित्य 03 |-7- सचूर्णिक आगमसुत्ताणि । [08] 8 परियय साहित्य 04 आगम कोष साहित्य: પૂજન સાહિત્ય-1- आगम सद्दकोसो [04] 10 | તીર્થકર સંક્ષિપ્ત દર્શન -2- आगम कहाकोसो [01] | 11ही साहित्य-3- आगम-सागर-कोष: [05] 12 દીપરત્નસાગરના લઘુશોધનિબંધ 05 -4- आगम-शब्दादि-संग्रह (प्रा-सं-गु) [04] આગમ સિવાયનું સાહિત્ય કૂલ પુસ્તક 5 आगम अनुक्रम साहित्य: 09 -1- सागमविषयानुभ- (भूग) | 1-आगम साहित्य (कुल पुस्तक) | 516 -2- आगम विषयानुक्रम (सटीक) 04 2-आगमेतर साहित्य (कुल 085 -3- आगम सूत्र-गाथा अनुक्रम दीपरत्नसागरजी के कुल प्रकाशन | 601 A AAEमुनिहीपरत्नसागरनुं साहित्य | भुनिटीपरत्नसागरनुं सागम साहित्य [इस पुस्त8 516] तना हुदा पाना [98,300] 2 भुनिटीपरत्नसागरनुं मन्य साहित्य [हुत पुस्त8 85] तना हुस पाना [09,270] मुनिहीपरत्नसागर संशतित तत्वार्थसूत्र'नी विशिष्ट DVD तेनाल पाना [27,930] | अभा२। प्राशनोहुल ०१ + विशिष्ट DVD पाना 1,35,500 मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(गच्छाचार)” आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद” Page 4 02 25 05 02 | 03 Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम सूत्र ३०/१,पयन्नासूत्र-७/१, 'गच्छाचार' ३०/१] गच्छाचार पयन्नासूत्र-७/१- हिन्दी अनुवाद सूत्र-१ देवेन्द्र से नमित महा ऐश्वर्यशाली, श्री महावीर देव को नमस्कार करके, श्रुतरूप समुद्र में से सुविहित मुनि समुदाय ने आचरण किए हुए गच्छाचार संक्षेप से उद्धरकर मैं कहूँगा। सूत्र -२ गौतम! इस जगत में कुछ ऐसे भी जीव हैं कि जो, उस उन्मार्गगामी गच्छ में रहकर या उसका सहवास कर के भव परम्परामें भ्रमण करते हैं । क्योंकि असत्पुरुष का संग शीलवंत-सज्जन को भी अधःपात का हेतु होता है। सूत्र-३-७ गौतम ! अर्ध प्रहर-एक प्रहर दिन, पक्ष, एक मास या एक साल पर्यन्त भी सन्मार्गगामी गच्छ में रहनेवालेआलसी-निरुत्साही और विमनस्क मुनि भी, दूसरे महाप्रभाववाले साधुओं को सर्व क्रिया में अल्प सत्त्ववाले- जीव से न हो सके ऐसे तप आदि रूप उद्यम करते देखकर, लज्जा और शंका का त्याग करके धर्मानुष्ठान करने में उत्साह धरते हैं । और फिर गौतम ! वीर्योत्साह द्वारा ही जीव ने जन्मान्तर में किए हुए पाप, मुहूर्त मात्र में जलकर राख हो जाते हैं। ..... इसलिए अच्छी तरह से कसौटी करके जो गच्छ सन्मार्ग प्रतिष्ठित हो उसमें जीवन पर्यन्त बँसना । क्योंकि जो संयत सक्रियावान् हो वही मुनि है। सूत्र-८ आचार्य महाराज गच्छ के लिए मेढी, आलम्बन, स्तम्भ, दृष्टि, उत्तम यान समान हैं । यानि की मेथी- (जो बंध से जानवर मर्यादा में रहे वो) में बाँधे जानवर जैसे मर्यादा में रहते हैं, वैसे गच्छ भी आचार्य के बन्धन से मर्यादा में प्रवर्तते हैं । गड्ढे आदि में गिरते जैसे हस्तादिक का आलम्बन धरके रखते हैं, वैसे संसार समान गति में गिरते गच्छ को आचार्य धरके रखते हैं । जैसे स्तम्भ प्रासाद का आधार है, वैसे आचार्य भी गच्छ रूप प्रासाद का आधार है। जैसे नजर शुभाशुभ चीज जीव को बतानेवाली है, वैसे आचार्य भी गच्छ को भावि शुभाशुभ बतानेवाले हैं । जैसे बिना छिद्र का उत्तम जहाज जीव को समुद्र तट पर पहुँचाता है, वैसे आचार्य भी गच्छ को संसार के तट पर पहुँचाते हैं । इसलिए गच्छ की कसौटी करने की ईच्छा रखनेवाले को पहले आचार्य की ही कसौटी लेनी चाहिए। सूत्र-९-११ हे भगवन् ! छद्मस्थमुनि किस निशानीओं से उन्मार्गगामी आचार्य को जान सके? इस प्रश्न के उत्तर में श्री गुरु कहते हैं कि हे मुनि ! उस निशानियों को मैं कहता हूँ, वो सुनो। अपनी मरजी के अनुसार व्यवहार करनेवाले, दुष्ट-आचारवान्, आरम्भ में प्रवर्तावनार, पीठफलक आदि में प्रतिबद्ध, अप्काय की हत्या करनेवाले- मूल और उत्तर गुण से भ्रष्ट हुए, सामाचारी के विराधक, हमेशा गुरु के आगे आलोचना नहीं करनेवाले और राजकथा आदि विकथा में हमेशा तत्पर हो वो आचार्य अधम जानने चाहिए। सूत्र - १२,१३ ३६ गुणयुक्त और अति व्यवहारकुशल आचार्य को भी परसाक्षीमें आलोचना रूप विशुद्धि करनी चाहिए। जैसे अति कुशल वैद्य अपनी व्याधि दूसरे वैद्य को बताते हैं, और उस वैद्य का कहा मानकर व्याधि के प्रतिकार समान कर्म का आचरण करते हैं, वैसे आलोचक सूरि भी अन्य के पास अपना पाप प्रकट करें और उन्होंने दिया हुआ तप विधिवत् अंगीकार करते हैं । मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(गच्छाचार)” आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद” Page 5 Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम सूत्र ३०/१,पयन्नासूत्र-७/१, 'गच्छाचार' सूत्र - १४ देश, क्षेत्र, द्रव्य, काल और भाव जानकर वस्त्र, पात्र, उपाश्रय और साधु-साध्वी के समूह का संग्रह करे और सूत्रार्थ का चिन्तवन करे, उनको अच्छे आचार्य मानना चाहिए । सूत्र - १५,१६ जो आचार्य आगमोक्त विधि से शिष्य का संग्रह और उनके लिए श्रुतदान आदि उपग्रह न करे - न करवाए, साधु और साध्वी को दिक्षा देकर सामाचारी न शीखाए । और जो बालशिष्य को गाय जैसे बछडे को चूमती है वैसे चूमे और सन्मार्ग ग्रहण न करवाए, उसे शिष्य का शत्रु मानना चाहिए। सूत्र - १७ जो आचार्य शिष्य को स्नेह से चूमे, लेकिन सारणा, वारणा, प्रेरणा और बार-बार प्रेरणा न करे वो आचार्य श्रेष्ठ नहीं है; लेकिन जो सारणा वारणादि करते हैं वो दंड आदि द्वारा मारने के बावजद भी श्रेष्ठ हैं। सूत्र - १८ और फिर जो शिष्य प्रमाद समान मदीरा से ग्रस्त और सामाचारी विराधक गुरु को हितोपदेश के द्वारा धर्ममार्ग में स्थिर न करे वो शिष्य भी शत्रु ही है। सूत्र - १९ प्रमादी गुरु को किस तरह बोध करते हैं वो दिखाते हैं । हे मुनिवर ! हे गुरुदेव ! तुम्हारे जैसे पुरुष भी यदि प्रमाद के आधीन हो तो फिर इस संसार सागर में हम जैसे को नौकासमान दूसरे कौन आलम्बन होंगे? सूत्र - २० प्रवचन प्रधान, ज्ञानाचार, दर्शनाचार को चारित्राचार उन तीनों में और फिर पंचविध आचार में, खुद को और गच्छ को स्थिर करने के लिए जो प्रेरणा करे वो आचार्य । सूत्र-२१ चार तरह का पिंड, उपधि और शय्या इन तीनों को, उद्गम, उत्पादन और एषणा द्वारा शुद्ध, चारित्र की रक्षा के लिए, ग्रहण करे वो सच्चा संयमी है । सूत्र - २२ दूसरों ने कहा हुआ गुह्य प्रकट न करनेवाले और सर्व तरह से सर्व कार्य में अविपरीत देखनेवाले हो वो, चक्षु की तरह, बच्चे और बुढ़े से संकीर्ण गच्छ की रक्षा करते हैं। सूत्र - २३ जो आचार्य सुखशील आदि गुण द्वारा नवकल्प रूप या गीतार्थरूप विहार को शिथिल करते हैं, वो आचार्य संयमयोग द्वारा केवल वेशधारी ही हैं। सूत्र - २४ कुल, गाँव, नगर और राज्य का त्याग करके भी जो आचार्य फिर से उस कुल आदि में ममत्व करते हैं, उस संयमयोग द्वारा निःसार केवल वेशधारी ही हैं। सूत्र - २५, २६ जो आचार्य शिष्यसमूह को करने लायक कार्य में प्रेरणा करते हैं और सूत्र एवं अर्थ पढ़ाते हैं, वह आचार्य धन्य है, पवित्र है, बन्धु है और मोक्षदायक है। वही आचार्य भव्यजीव के लिए चक्षु समान कहे हैं कि जो जिनेश्वर के बताए हए अनुष्ठान यथार्थ रूप से बताते हैं। मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(गच्छाचार)” आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद” Page 6 Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम सूत्र ३०/१,पयन्नासूत्र-७/१, 'गच्छाचार' सूत्र-२७ जो आचार्य सम्यक् तरह से जिनमत प्रकाशते हैं वो तीर्थंकर समान हैं और जो उनकी आज्ञा का उल्लंघन करते हैं वो कापुरुष हैं, सत्पुरुष नहीं । सूत्र - २८ भ्रष्टाचारी आचार्य, भ्रष्टाचारी साधु की उपेक्षा करनेवाले आचार्य और उन्मार्ग में रहे आचार्य, इन तीनों ज्ञान आदि मोक्ष मार्ग को नष्ट करते हैं। सूत्र - २९ उन्मार्ग में रहे और उन्मार्ग को नष्ट करनेवाले आचार्य का जो सेवन करते हैं, हे गौतम ! यकीनन वो अपने आत्मा को संसार में गिराते हैं। सूत्र -३० जिस तरह अनुचित तैरनेवाला आदमी कईं लोगों को बाता है, वैसे उन्मार्ग में रहा एक भी आचार्य उसके मार्ग का अनुसरण करनेवाले भव्य जीव के समूह को नष्ट करते हैं। सूत्र - ३१ उन्मार्गगामी की राह में व्यवहार करनेवाले और सन्मार्ग को नष्ट करनेवाले केवल साधु वेश धरनेवाले को हे गौतम ! यकीनन अनन्त संसार होता है। सूत्र - ३२ खुद प्रमादी हो, तो भी शुद्ध साधुमार्ग की प्ररूपणा करे और खुद को साधु एवं श्रावकपक्ष के अलावा तीसरे संविज्ञपक्ष में स्थित करे । लेकिन इससे विपरीत अशुद्ध मार्ग की प्ररूपणा करनेवाले खुद को गृहस्थधर्म से भी भ्रष्ट करते हैं। सूत्र-३३ अपनी कमझोरी के कारण से शायद त्रिकरणशुद्ध से जिनभाषित अनुष्ठान न कर सके, तो भी जैसे श्री वीतरागदेव न कहा है, वैसे यथार्थ सम्यक तरह से तत्त्व प्ररूपे । सूत्र - ३४ मुनिचर्या में शिथिल होने के बावजूद भी विशुद्ध चरणसित्तरी-करणसित्तरी के प्रशंसा करके प्ररूपणा करनेवाले सुलभबोधि जीव अपने कर्म को शिथिल करता है। सूत्र-३५ संविज्ञपाक्षिक मुनि सन्मार्ग में प्रवर्तते दूसरे साधुओं को औषध, भैषज द्वारा समाधि दिलाने समान खुद वात्सल्य रखे और दूसरों के पास करवाए। सूत्र - ३६ त्रिलोकवर्ती जीव ने जिसके चरणयुगल को नमस्कार किया है ऐसे कुछ जीव ही भूतकाल में थे, अभी हैं और भावि में होंगे कि जिनका काल मात्र भी दूसरों का हित करने के ही एक लक्षपूर्वक बीतता है। सूत्र - ३७, ३८ गौतम ! भूत, भावि और वर्तमान काल में भी कुछ ऐसे आचार्य हैं, कि जिनका केवल नाम ही ग्रहण किया जाए, तो भी यकीनन प्रायश्चित्त लगता है। जैसे लोक में नौकर और वाहन शिक्षा बिना स्वेच्छाचारी होता है, वैसे शिष्य भी स्वेच्छाचारी होता है । इसलिए गुरु ने प्रतिपृच्छा और प्रेरणादि द्वारा शिष्य वर्ग को हमेशा शिक्षा देनी चाहिए। मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(गच्छाचार)” आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद" Page 7 Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम सूत्र ३०/१,पयन्नासूत्र-७/१, 'गच्छाचार' सूत्र - ३९ जो आचार्य आदि उपाध्याय प्रमाद से या आलस से शिष्यवर्ग को मोक्षानुष्ठान के लिए प्रेरणा नहीं करते, उन्होंने जिनेश्वर की आज्ञा का खंडन किया है यह समझना चाहिए। सूत्र-४०-४२ हे गौतम ! इस प्रकार मैंने संक्षेप से गुरु का लक्षण बताया । अब गच्छ का लक्षण कहूँगा, वो तू हे धीर ! एकाग्ररूप से सुन ।...जो गीतार्थ संवेगशाली-आलस रहित-द्रढवर्ती-अस्खलित-चारित्रवान हमेशा रागद्वेष रहितआठ मदरहित-क्षीण कषायी और जितेन्द्रिय ऐसे उस छद्मस्थ मुनि के साथ भी केवली विचरे और बस जाए। सूत्र - ४३ संयम में व्यवहार करने के बाद भी परमार्थ को न जाननेवाले और दुर्गति के मार्ग को देनेवाले ऐसे अगीतार्थ को दूर से ही त्याग करे । सूत्र-४४,४५ गीतार्थ के वचन से बुद्धिमान मानव हलाहल झहर भी निःशंकपन से पी जाए और मरण दिलाए ऐसी चीज को भी खा जाए । क्योंकि हकीकत में वो झहर नहीं है लेकिन अमृत समान रसायण होता है, निर्विघ्नकारी है, वो मारता नहीं, शायद मर जाता है, तो भी वो अमर समान होता है। सूत्र-४६ अगीतार्थके वचन से कोई अमृत भी न पीए, क्योंकि वो अगीतार्थ से बताया हुआ हकीकतमें अमृत नहीं है सूत्र-४७ परमार्थ से वो अमृत न होने से सचमुच हलाहल झहर है, इसलिए वो अजरामर नहीं होता, लेकिन उसी वक्त नष्ट होता है। सूत्र-४८ अगीतार्थ और कुशीलीया आदि का संग मन, वचन, काया से त्याग देना, क्योंकि सफर की राह में लूँटेरे जैसे विघ्नकारी हैं, वैसे वो मोक्षमार्ग में विघ्नकारी हैं। सूत्र - ४९ देदीप्यमान अग्नि को जलता देखकर उसमें निःशंक खूद को भस्मीभूत कर दे, लेकिन कुशिलीया का आश्रय कभी भी न करे। सूत्र-५० जो गच्छ के भीतर गुरु ने प्रेरणा किए शिष्य रागद्वेष, पश्चाताप द्वारा धगधगायमान अग्नि की तरह जल उठता है, उसे हे गौतम ! गच्छ मत समझना । सूत्र - ५१ गच्छ महाप्रभावशाली है, क्योंकि उसमें रहनेवालों को बड़ी निर्जरा होती है, सारणा-वारणा और प्रेरणा आदि द्वारा उन्हें दोष की प्राप्ति भी नहीं होती। सूत्र -५२ गुरु की ईच्छा का अनुसरण करनेवाले, सुविनीत, परिसह जीतनेवाले, धीर, अभिमानरहित, लोलुपतारहित, गारव और विकथा न करनेवालेसूत्र-५३-५४ क्षमावान् इन्द्रिय का दमन करनेवाले, गुप्तिवंत, निर्लोभी, वैराग्य मार्ग में लीन, दस-विध समाचारी, मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(गच्छाचार)" आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद” Page 8 Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम सूत्र ३०/१, पयन्नासूत्र-७/१, 'गच्छाचार' आवश्यक और संयम में उद्यमवान और खर, कठोर, कर्कश, अनिष्ट और दुष्ट वाणी से और फिर अपमान और नीकाल देना आदि द्वारा भी जो द्वेष न करेसूत्र - ५५ अपकीर्ति न करे, अपयश न करे, अकार्य न करे, कंठ में प्राण आए तो भी प्रवचन मलीन न करे, वैसे मुनि बहोत निर्जरा करते हैं। सूत्र -५६ करने लायक या न करने लायक काम में कठोर-कर्कश-दुष्ट-निष्ठुर भाषा में गुरुमहाराज कुछ कहें, तो वहाँ शिष्य विनय से कहे कि, 'हे प्रभु, आप कहते हो वैसे वो वास्तविक है । इस प्रकार जहाँ शिष्य व्यवहार करता है हे गौतम ! वो सचमुच गच्छ है। सूत्र - ५७ ____ पात्र आदि में भी ममत्वरहित, शरीरमे भी स्पृहा रहित शुद्ध आहार लेने में कुशल हो वो मुनि है । अगर अशुद्ध मिल जाए तो तपस्या करनेवाले और एषणा के बयालीस दोष रहित आहार लेने में कुशल हो वो मुनि है । सूत्र -५८ वो निर्दोष आहार भी रूप-रस के लिए नहीं, शरीर के सुन्दर वर्ण के लिए नहीं और फिर काम की वृद्धि के लिए भी नहीं, लेकिन अक्षोपांग की तरह, चारित्र का भार वहन करने और शरीर धारण करने के लिए ग्रहण करे। सूत्र - ५९ क्षुधा की वेदना शान्त करने के लिए, वैयावच्च करने के लिए, इर्यासमिति के लिए, संयम के लिए, प्राण धारण करने के लिए और धर्मचिन्तवन के लिए, ऐसे उस छ कारण से साधु आहार ग्रहण करे। सूत्र-६० जो गच्छ में छोटे-बड़े का फर्क जान सके, बड़ों के वचन का सम्मान हो और एक दिन भी पर्याय से बड़ा हो, गुणवद्ध हो उसकी हीलना न हो, हे गौतम ! उसे हकीकत में गच्छ मानना चाहिए। सूत्र - ६१, ६२ और फिर जिस गच्छ में भयानक अकाल हो वैसे वक्त में प्राण का त्याग हो, तो भी साध्वी का लाया हुआ आहार सोचे बिना न खाए, उसे हे गौतम ! वास्तविक गच्छ कहा है। और जिस गच्छ में साध्वीओं के साथ जवान तो क्या, जिसके दाँत गिर गए हैं वैसे बुढ़े मुनि भी आलाप, संलाप न करे और स्त्रीयों के अंग का चिन्तवन न करे, वो हकीकत में गच्छ है। सूत्र - ६३ हे अप्रमादी मुनि ! तुम अग्नि और विष समान साध्वी का संसर्ग छोड़ दो, क्योंकि साध्वी का अनुसरण करनेवाला साधु थोड़े ही काल में जरुर अपयश पाता है। सूत्र - ६४,६५ बुढ़े, तपस्वी, बहुश्रुत, सर्वजन को मान्य, ऐसे मुनि को भी साध्वी का संसर्ग लोगों की बुराई का आशय बनता है । तो फिर जो युवान, अल्पश्रुत, थोड़ा तप करनेवाले मुनि हो उसको आर्या का संसर्ग लोकनिन्दा का आशय क्यों न हो? सूत्र-६६ जो कि खुद दृढ़ अन्तःकरणवाला हो तो भी संसर्ग बढ़ने से अग्नि की नजदीक जैसे घी पीगल जाता है. वैसे मुनि का चित्त साध्वी के समीप विलीन होता है। मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(गच्छाचार)” आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद” Page 9 Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम सूत्र ३०/१,पयन्नासूत्र-७/१, 'गच्छाचार' सूत्र - ६७ सर्व स्त्री वर्ग की भीतर हमेशा अप्रमत्त मन से विश्वास रहित व्यवहार करे तो वो ब्रह्मचर्य का पालन कर सकता है, अन्यथा उसके विपरीत प्रकार से व्यवहार करे तो ब्रह्मचर्य पालन नहीं कर सकता। सूत्र-६८ सर्वत्र सर्व चीज में ममतारहित मुनि स्वाधीन होता है, लेकिन वो मुनि यदि साध्वी के पास में बँधा हो तो वो पराधीन हो जाता है। सूत्र - ६९ लींट में पड़ी मक्खी छूट नहीं सकती, वैसे साध्वी का अनुसरण करनेवाला साधु छूट नहीं सकता। सूत्र - ७० इस जगत में अविधि से साध्वी का अनुसरण करनेवाले साधु को उसके समान दूसरा कोई बन्धन नहीं है और साध्वी को धर्म में स्थापन करनेवाले साधु को उसके समान दूसरी निर्जरा नहीं है। सूत्र - ७१ वचन मात्र से भी चारित्र से भ्रष्ट हए बहलब्धिवाले साधु को भी जहाँ विधिवत् गुरु से निग्रह किया जाता है उसे गच्छ कहते हैं। सूत्र - ७२ जिस गच्छ में रात को अशनादि लेने में, औदेशिक-अभ्याहृत आदि का नाम ग्रहण करने में भी भय लगे और भोजन अनन्तर पात्रादि साफ करने समान कल्प और अपानादि धोने समान त्रेप उस उभय में सावध होसूत्र - ७३ विनयवान हो, निश्चल चित्तवाला हो, हाँसी मझाक करने से रहित, विकथा से मुक्त, बिना सोचे कुछ न करनेवाले, अशनादि के लिए विचरनेवाले यासूत्र-७४ ऋतु आदि आठ प्रकार की गोचरभूमि के लिए विचरनार, विविध प्रकार के अभिग्रह और दुष्कर प्रायश्चित्त आचरनेवाले मुनि जिस गच्छ में हो, वो देवेन्द्र को भी आश्चर्यकारी है। गौतम! ऐसे गच्छ को ही गच्छ मानना चाहिए सूत्र - ७५ पृथ्वी, अप्, अग्नि, वायु और वनस्पति और अलग तरह के बेइन्द्रिय आदि त्रस जीव को जहाँ मरण के अन्त में भी मन से पीड़ित नहीं किया जा सकता, हे गौतम ! उसे हकीकत में गच्छ मानना चाहिए। सूत्र - ७६ खजुरी और मुँज के झाडु से जो साधु उपाश्रय को प्रमार्जते हैं, उस साधु को जीव पर बीलकुल दया नहीं है, ऐसा हे गौतम ! तू अच्छी तरह से समझ ले । सूत्र - ७७ ग्रीष्म आदि काल में तषा से प्राण सूख जाए और मौत मिले तो भी बाहर का सचित्त पानी बँद मात्र भी जो गच्छ में मुनि न ले, वो गच्छ मानना चाहिए। सूत्र - ७८ और फिर जिस गच्छ में अपवाद मार्ग से भी हमेशा प्राशुक-निर्जीव पानी सम्यक तरह से आगम विधि से इच्छित होता है हे गौतम ! उसे गच्छ जानो। मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(गच्छाचार)” आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद” Page 10 Page 10 Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम सूत्र ३०/१,पयन्नासूत्र-७/१, 'गच्छाचार' सूत्र - ७९ शूल, विशूचिका आदि में से किसी भी विचित्र बीमारी पैदा होने से, जिस गच्छ में मुनि अग्नि आदि न जलाए, उसे गच्छ जानना चाहिए। सूत्र - ८० लेकिन अपवादपद में सारूपिक आदि या श्रावक आदि के पास यतना से वैसा करवाएं । सूत्र - ८१ पुष्प, बीज, त्वचा आदि अलग तरह के जीव का संघट्ट और परिताप आदि जिस गच्छ में मुनि से सहज भी न किया जाता हो उसे गच्छ मानना चाहिए। सूत्र-८२ और हाँसी, क्रीड़ा, कंदर्प, नास्तिकवाद, बेवक्त कपड़े धोना, वंडी, गड्ढा आदि ठेकना साधु श्रावक पर क्रोधादिक से लांघण करना, वस्त्र पात्रादि पर ममता और अवर्णवाद का उच्चारण आदि जिस गच्छ में न किया जाए उसे सम्यग् गच्छ मानना चाहिए। सूत्र -८३ जिस गच्छ के भीतर कारण उत्पन्न हो तो भी वस्त्रादिक का अन्तर करके स्त्री का हाथ आदि का स्पर्श द्रष्टिविष सर्प और ज्वलायमान अग्नि की तरह त्याग किया जाए उसे गच्छ मानना चाहिए। सूत्र - ८४ बालिका, बुढ़िया, पुत्री, पौत्री या भगिनी आदि के शरीर का स्पर्श थोड़ा भी जिस गच्छ में न किया जाए, हे गौतम ! वही गच्छ है। सूत्र-८५ साधु का वेश धारण करनेवाला, आचार्य आदि पदवी से युक्त ऐसा भी मुनि जो खुद स्त्री के हाथ का स्पर्श करे, तो हे गौतम ! जरुर वो गच्छ मूलगुण से भ्रष्ट चारित्रहीन है ऐसा जानना। सूत्र -८६ अपवाद पद से भी स्त्री के हाथ का स्पर्श आगम में निषेध किया है, लेकिन दीक्षा का अंत आदि हो ऐसा कार्य पैदा हो तो आगमोक्त विधि जाननेवाले स्पर्श करे उसे गच्छ मानना चाहिए। सूत्र-८७ __ अनेक विज्ञान आदि गुणयुक्त, लब्धिसम्पन्न और उत्तम कुल में पैदा होनेवाला मुनि यदि प्राणातिपात विरमण आदि मूल गुण रहित हो उसे गच्छ में से बाहर नीकाला जाए उसे गच्छ मानना चाहिए। सूत्र-८८ जिस गच्छ में सुवर्ण, चाँदी, धन, धान्य, काँसु, स्फटिक, बिस्तर आदि शयनीय, कुर्शी आदि आसन और सच्छिद्र चीज का उपभोग होता होसूत्र - ८९ और फिर जिस गच्छ में मुनि को उचित श्वेतवस्त्र छोड़कर लाल, हरे, पीले वस्त्र का इस्तमाल होता हो उस गच्छ में मर्यादा कहाँ से हो? सूत्र - ९० और फिर जिस गच्छ में किसी भी कारण से किसी गहस्थ का दिया दूसरों का भी सोना, चाँदी, अर्ध निमेषमात्र भी हाथ से न छूए । मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(गच्छाचार)” आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद” Page 11 Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम सूत्र ३०/१, पयन्नासूत्र-७/१, 'गच्छाचार' सूत्र - ९१, ९२ जिस गच्छ में आर्या का लाया हुआ विविध उपकरण और पात्रा आदि साधु बिना कारण भी भुगते उसे कैसा गच्छ कहना ? ......... बल और बुद्धि को बढ़ानेवाला, पुष्टिकारक, अति दुर्लभ ऐसा भी भैषज्य साध्वी का प्राप्त किया हुआ साधु भुगते, तो उस गच्छ में मर्यादा कहाँ से हो ? सूत्र - ९३ जिस गच्छ में अकेला साधु, अकेली स्त्री या साध्वी साथ रहे, उसे हे गौतम ! हम अधिक करके मर्यादा रहित गच्छ कहते हैं। सूत्र - ९४ दृढ़ चारित्रवाली, निर्लोभी, ग्राह्यवचना, गुण समुदायवाली ऐसी लेकिन महत्तरा साध्वी को जिस गच्छ में अकेला साधु पढ़ाता है, वो अनाचार है, गच्छ नहीं । सूत्र - ९५ मेघ की गर्जना-अश्व हृदयगत वायु और विद्युत की तरह जैसे दुग्राह्य गूढ़ हृदयवाली आर्याएं जिस गच्छ में अटकाव रहित अकार्य करते हैंसूत्र-९६ जिस गच्छ के भीतर भोजन के वक्त साधु की मंडली में साध्वी आती है, वो गच्छ नहीं लेकिन स्त्री राज्य है सूत्र-९७ सुख में रहे पंगु मानव की तरह जो मुनि के कषाय दूसरों के कषाय द्वारा भी उद्दीपन न हो, उसे हे गौतम ! गच्छ मानना चाहिए। सूत्र-९८ धर्म के अन्तराय से भय पाए हुए और संसार की भीतर रहने से भय पानेवाले मुनि, अन्य मुनि के क्रोध आदि कषाय को न उदीरे, उसे गच्छ मान । सूत्र - ९९ शायद किसी कारण से या बिना कारण मुनिओं के कषाय का उदय हो और उदय को रोके और तदनन्तर खमाए, उसे हे गौतम ! गच्छ मान । सूत्र-१०० दान, शील, तप और भावना, इन चार प्रकार के धर्म के अन्तराय से भय पानेवाले गीतार्थ साधु जिस गच्छ में ज्यादा हो उसे हे गौतम ! गच्छ कहा है। सूत्र-१०१ और फिर हे गौतम ! जिस गच्छ में चक्की, खंडणी, चूल्हा, पानेहारा और झाड़ इस पाँच वधस्थान में से कोई एक भी हो, तो वो गच्छ का मन, वचन, काया से त्याग करके अन्य अच्छे गच्छ में जाना चाहिए। सूत्र-१०२ खंड़ना आदि के आरम्भ में प्रवर्ते हए और उज्ज्वल वेश धारण करनेवाले गच्छ की सेवा न करना लेकिन जो गच्छ चारित्र गुण से उज्ज्वल हो उसकी सेवा करनी चाहिए। सूत्र - १०३ और फिर जिस गच्छ के भीतर मुनि क्रय-विक्रय आदि करे-करवाए, अनुमोदन करे, वो मुनि को संयमभ्रष्ट मानना चाहिए । हे गुणसागर गौतम ! वैसे लोगों को विष की तरह दूर से ही त्याग देना चाहिए। मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(गच्छाचार)” आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद” Page 12 Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम सूत्र ३०/१,पयन्नासूत्र-७/१, गच्छाचार' सूत्र - १०४ आरम्भ में आसक्त, सिद्धांत में कहे अनुष्ठान करने में पराङ्गमुख और विषय में लंपट ऐसे मुनिओं का संग छोड़कर हे गौतम ! सुविहित मुनि के समुदाय में वास करना चाहिए । सूत्र-१०५ सन्मार्ग प्रतिष्ठित गच्छ को सम्यक तरह से देखकर वैसे सन्मार्गगामी गच्छ में पक्ष-मास या जीवनपर्यन्त बसना चाहिए, क्योंकि हे गौतम ! वैसा गच्छ संसार का उच्छेद करनेवाला होता है। सूत्र - १०६ जिस गच्छ के भीतर क्षुल्लक या नवदीक्षित शिष्य या अकेला जवान यति उपाश्रय की रक्षा करता हो, उस गच्छ में हम कहते हैं कि मर्यादा कहाँ से हो? सूत्र - १०७ जिस गच्छ में अकेली क्षुल्लक साध्वी, नवदीक्षित साध्वी, अथवा अकेली युवान साध्वी उपाश्रय की रक्षा करती हो, उस विहार में-उपाश्रय में हे गौतम ! ब्रह्मचर्य की शुद्धि कैसी हो? अर्थात् न हो। सूत्र-१०८ जिस गच्छ के भीतर रात को अकेली साध्वी केवल दो हाथ जितना भी उपाश्रय से बाहर नीकले तो वहाँ गच्छ की मर्यादा कैसी ? अर्थात् नहीं होती। सूत्र-१०९ जिस गच्छ के भीतर अकेली साध्वी अपने बन्धु मुनि के साथ बोले, अगर अकेला मुनि अपनी भगिनी साध्वी के साथ बात-चीत करे, तो हे सौम्य ! उस गच्छ को गुणहीन मानना चाहिए । सूत्र-११० जिस गच्छ के भीतर साध्वी जकार मकारादि अवाच्य शब्द गृहस्थ की समक्ष बोलती है। वो साध्वी अपनी आत्मा को प्रत्यक्ष तरीके से संसार में डालते हैं। सूत्र - १११ जिस गच्छ में रुष्ट भी हई ऐसी साध्वी गृहस्थ के जैसी सावध भाषा बोलती है, उस गच्छ को हे गुणसागर गौतम ! श्रमणगुण रहित मानना चाहिए । सूत्र - ११२ और फिर जो साध्वी खुद को उचित ऐसे श्वेत वस्त्र का त्याग करके तरह-तरह के रंग के विचित्र वस्त्र-पात्र का सेवन करती है, उसे साध्वी नहीं कहते । सूत्र - ११३ जो साध्वी गृहस्थ आदि का शीवना-तुगना, भरना आदि करती है या खुद तेल आदि का उद्वर्तन करती है, उसे भी साध्वी नहीं कहा जाता। सूत्र - ११४ विलासयुक्त गति से गमन करे, रूई आदि से भरी गद्दी में तकियापूर्वक बिस्तर आदि में शयन करे, तेल आदि से शरीर का उद्वर्तन करे और जिस स्नानादि से विभूषा करेसूत्र-११५ और फिर गृहस्थ के घर जाकर कथा-कहानी कहे, युवान पुरुष के आगमन का अभिनन्दन करे उस साध्वी को शत्रु मानना चाहिए। मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(गच्छाचार)” आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद” Page 13 Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम सूत्र ३०/१,पयन्नासूत्र-७/१, गच्छाचार' सूत्र - ११६ बुढ़े या जवान पुरुष के सामने रात को जो साध्वी धर्म कहे उस साध्वी को भी गुणसागर गौतम ! गच्छ की शत्रु समान मानना चाहिए। सूत्र - ११७ जिस गच्छ में साध्वी परस्पर में कलह न करे और गहस्थ जैसी सावध भाषा न बोले, उस गच्छ को सर्व गच्छ में श्रेष्ठ मानना चाहिए। सूत्र - ११८ देवसी, राई, पाक्षिक, चातुर्मासिक या सांवत्सरिक जो अतिचार जितना हुआ हो उतना वो आलोचन न करे और बडी साध्वी की आज्ञा में न रहे । तथासूत्र - ११९ निमित्त आदि का प्रयोग करे, ग्लान और नवदीक्षित को औषध-वस्त्र आदि द्वारा प्रसन्न न करे, अवश्य करने लायक न करे, न करने लायक यकीनन करेसूत्र-१२० यतनारहित गमन करे, ग्रामान्तर से आए प्राणा साध्वी का निर्दोष अन्न-पान आदि द्वारा वात्सल्य न करे, तरह-तरह के रंग के वस्त्र का सेवन करे और फिर विचित्र रचनावाले रजोहरण का इस्तमाल करेसूत्र - १२१ गति-विभ्रम आदि द्वारा स्वाभाविक आकार का विकार इस तरह प्रकट करे कि जिससे जवान को तो क्या लेकिन बुढ़ों को भी मोहोदय हो । सूत्र-१२२ मुख, नयन, हाथ, पाँव, कक्षा आदि बारबार साफ करे और वसंत आदि रंग के समूह से बच्चों की भी श्रोत्रादि इन्द्रिय का हरण करे । ऐसी साध्वीओं को स्वेच्छाचारी मानना चाहिए। सूत्र - १२३ जिस गच्छ में स्थविरा के बाद तरुणी और तरुणी के बाद स्थविरा ऐसे एक-एक के अन्तर में सोए, उस गच्छ को हे गौतम ! उत्तम ज्ञान और चारित्र का आधार समान मानना चाहिए। सूत्र - १२४ जो साध्वी कंठप्रदेश को पानी से धोए, गृहस्थ के मोती आदि परोए, बच्चों के लिए कपड़े दे, या औषध जड़ीबुट्टी दे, गृहस्थ के कार्य की फीक करे। सूत्र - १२५ जो साध्वी हाथी, घोडे, गधे आदि के स्थान पर जाए, या वो उसके उपाश्रय में आए, कुलटा स्त्री का संग करे और जिसका उपाश्रय कुलटा के गृह के नजदीक होसूत्र-१२६ गृहस्थ को तरह-तरह की प्रेरणा दे, गृहस्थ के आसन पर बैठे और गृहस्थ से परीचय करे उसे हे गौतम ! साध्वी न कहना चाहिए। सूत्र - १२७ अपनी शिष्याएं या प्रातीच्छिकाओं को समान माननेवाले, प्रेरणा करने में आलस रहित और प्रशस्त पुरुष का अनुसरण करनेवाली महत्तरा साध्वी गुण सम्पन्न मानना चाहिए। मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(गच्छाचार)” आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद” Page 14 Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम सूत्र ३०/१,पयन्नासूत्र-७/१, 'गच्छाचार' सूत्र - १२८ संवेगवाली, भीत पर्षदावाली, जरुर होने पर उग्र दंड देनेवाली, स्वाध्याय और ध्यान में युक्त और शिष्यादिक का संग्रह करने में कुशल ऐसी साध्वी प्रवर्तिनी पद के योग्य जानना । सूत्र-१२९ जिस गच्छ में बुढ़ी साध्वी कोपायमान होकर साधु के साथ उत्तर-प्रत्युत्तर द्वारा जोरों से प्रलाप करती है, वैसे गच्छ से हे गौतम ! क्या प्रयोजन है ? सूत्र - १३० हे गौतम ! जिस गच्छ के भीतर साध्वी जरुरत पड़ने पर ही महत्तरा साध्वी के पीछे खड़े रहकर मृदु, कोमल शब्द से बोलती है वही सच्चा गच्छ है। सूत्र - १३१ और फिर माता, बेटी, स्नुषा या भगिनी आदि वचन गुप्ति का भंग जिस गच्छ में साध्वी न करे उसे ही सच्चा गच्छ मानना चाहिए। सूत्र - १३२ जो साध्वी दर्शनातिचार लगाए, चारित्र का नाश और मिथ्यात्व पैदा करे, दोनों वर्गों के विहार की मर्यादा का उल्लंघन करे वो साध्वी नहीं है। सूत्र - १३३ धर्मोपदेश रहित वचन संसारमूलक होने से वैसी साध्वी संसार बढ़ाती है, इसीलिए हे गौतम ! धर्मोपदेश छोड़कर दूसरा वचन साध्वी को नहीं बोलना चाहिए। सूत्र - १३४ हर एक महिने एक ही कण से जो साध्वी तप का पारणा करती है, वैसी साध्वी भी यदि गहस्थ की सावध बोली से कलह करे तो उसका सर्व अनुष्ठान निरर्थक है। सूत्र - १३५ महानिशीथ, कल्प और व्यवहारभाष्य में से साधु-साध्वी के लिए यह गच्छाचार प्रकरण उद्धृत किया है। सूत्र - १३६ प्रधान श्रुत के रहस्यभूत ऐसा यह अति उत्तम गच्छाचार प्रकरण अस्वाध्यायकाल छोड़कर साधु-साध्वी को पढ़ना चाहिए। सूत्र-१३७ यह गच्छाचार साधु-साध्वी को गुरुमुख से विधिवत् सुनकर या पढ़कर आत्महित की उम्मीद रखनेवालों ने जैसे यहाँ कहा है वैसा करना चाहिए । ३०/१ गच्छाचार-प्रकिर्णक सूत्र-७/१ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(गच्छाचार)” आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद” Page 15 Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम सूत्र ३०/१,पयन्नासूत्र-७/१, 'गच्छाचार' नमो नमो निम्मलदंसणस्स पूश्यपाश्रीआनंह-क्षभा-ललित-सुशील-सुधर्भसार शुल्यो नमः COOXXXXXXXXXX 30/1 OXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXxxxxxxxxxxxx8888888888888XXXXXXX गच्छाचार आगमसूत्र हिन्दी अनुवाद [अनुवादक एवं संपादक आगम दीवाकर मुनि दीपरत्नसागरजी [ M.Com. M.Ed. Ph.D. श्रुत महर्षि ] QG 21188:- (1) (2) deepratnasagar.in भेल भेड्रेस:- jainmunideepratnasagar@gmail.com मोजा 09825967397 मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(गच्छाचार)” आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद” Page 16