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आगम सूत्र ३०/१,पयन्नासूत्र-७/१, 'गच्छाचार' सूत्र - ३९
जो आचार्य आदि उपाध्याय प्रमाद से या आलस से शिष्यवर्ग को मोक्षानुष्ठान के लिए प्रेरणा नहीं करते, उन्होंने जिनेश्वर की आज्ञा का खंडन किया है यह समझना चाहिए। सूत्र-४०-४२
हे गौतम ! इस प्रकार मैंने संक्षेप से गुरु का लक्षण बताया । अब गच्छ का लक्षण कहूँगा, वो तू हे धीर ! एकाग्ररूप से सुन ।...जो गीतार्थ संवेगशाली-आलस रहित-द्रढवर्ती-अस्खलित-चारित्रवान हमेशा रागद्वेष रहितआठ मदरहित-क्षीण कषायी और जितेन्द्रिय ऐसे उस छद्मस्थ मुनि के साथ भी केवली विचरे और बस जाए। सूत्र - ४३
संयम में व्यवहार करने के बाद भी परमार्थ को न जाननेवाले और दुर्गति के मार्ग को देनेवाले ऐसे अगीतार्थ को दूर से ही त्याग करे । सूत्र-४४,४५
गीतार्थ के वचन से बुद्धिमान मानव हलाहल झहर भी निःशंकपन से पी जाए और मरण दिलाए ऐसी चीज को भी खा जाए । क्योंकि हकीकत में वो झहर नहीं है लेकिन अमृत समान रसायण होता है, निर्विघ्नकारी है, वो मारता नहीं, शायद मर जाता है, तो भी वो अमर समान होता है। सूत्र-४६
अगीतार्थके वचन से कोई अमृत भी न पीए, क्योंकि वो अगीतार्थ से बताया हुआ हकीकतमें अमृत नहीं है
सूत्र-४७
परमार्थ से वो अमृत न होने से सचमुच हलाहल झहर है, इसलिए वो अजरामर नहीं होता, लेकिन उसी वक्त नष्ट होता है। सूत्र-४८
अगीतार्थ और कुशीलीया आदि का संग मन, वचन, काया से त्याग देना, क्योंकि सफर की राह में लूँटेरे जैसे विघ्नकारी हैं, वैसे वो मोक्षमार्ग में विघ्नकारी हैं। सूत्र - ४९
देदीप्यमान अग्नि को जलता देखकर उसमें निःशंक खूद को भस्मीभूत कर दे, लेकिन कुशिलीया का आश्रय कभी भी न करे। सूत्र-५०
जो गच्छ के भीतर गुरु ने प्रेरणा किए शिष्य रागद्वेष, पश्चाताप द्वारा धगधगायमान अग्नि की तरह जल उठता है, उसे हे गौतम ! गच्छ मत समझना । सूत्र - ५१
गच्छ महाप्रभावशाली है, क्योंकि उसमें रहनेवालों को बड़ी निर्जरा होती है, सारणा-वारणा और प्रेरणा आदि द्वारा उन्हें दोष की प्राप्ति भी नहीं होती। सूत्र -५२
गुरु की ईच्छा का अनुसरण करनेवाले, सुविनीत, परिसह जीतनेवाले, धीर, अभिमानरहित, लोलुपतारहित, गारव और विकथा न करनेवालेसूत्र-५३-५४
क्षमावान् इन्द्रिय का दमन करनेवाले, गुप्तिवंत, निर्लोभी, वैराग्य मार्ग में लीन, दस-विध समाचारी,
मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(गच्छाचार)" आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद”
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