Book Title: Agam 30 1 Gacchachar Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 10
________________ आगम सूत्र ३०/१,पयन्नासूत्र-७/१, 'गच्छाचार' सूत्र - ६७ सर्व स्त्री वर्ग की भीतर हमेशा अप्रमत्त मन से विश्वास रहित व्यवहार करे तो वो ब्रह्मचर्य का पालन कर सकता है, अन्यथा उसके विपरीत प्रकार से व्यवहार करे तो ब्रह्मचर्य पालन नहीं कर सकता। सूत्र-६८ सर्वत्र सर्व चीज में ममतारहित मुनि स्वाधीन होता है, लेकिन वो मुनि यदि साध्वी के पास में बँधा हो तो वो पराधीन हो जाता है। सूत्र - ६९ लींट में पड़ी मक्खी छूट नहीं सकती, वैसे साध्वी का अनुसरण करनेवाला साधु छूट नहीं सकता। सूत्र - ७० इस जगत में अविधि से साध्वी का अनुसरण करनेवाले साधु को उसके समान दूसरा कोई बन्धन नहीं है और साध्वी को धर्म में स्थापन करनेवाले साधु को उसके समान दूसरी निर्जरा नहीं है। सूत्र - ७१ वचन मात्र से भी चारित्र से भ्रष्ट हए बहलब्धिवाले साधु को भी जहाँ विधिवत् गुरु से निग्रह किया जाता है उसे गच्छ कहते हैं। सूत्र - ७२ जिस गच्छ में रात को अशनादि लेने में, औदेशिक-अभ्याहृत आदि का नाम ग्रहण करने में भी भय लगे और भोजन अनन्तर पात्रादि साफ करने समान कल्प और अपानादि धोने समान त्रेप उस उभय में सावध होसूत्र - ७३ विनयवान हो, निश्चल चित्तवाला हो, हाँसी मझाक करने से रहित, विकथा से मुक्त, बिना सोचे कुछ न करनेवाले, अशनादि के लिए विचरनेवाले यासूत्र-७४ ऋतु आदि आठ प्रकार की गोचरभूमि के लिए विचरनार, विविध प्रकार के अभिग्रह और दुष्कर प्रायश्चित्त आचरनेवाले मुनि जिस गच्छ में हो, वो देवेन्द्र को भी आश्चर्यकारी है। गौतम! ऐसे गच्छ को ही गच्छ मानना चाहिए सूत्र - ७५ पृथ्वी, अप्, अग्नि, वायु और वनस्पति और अलग तरह के बेइन्द्रिय आदि त्रस जीव को जहाँ मरण के अन्त में भी मन से पीड़ित नहीं किया जा सकता, हे गौतम ! उसे हकीकत में गच्छ मानना चाहिए। सूत्र - ७६ खजुरी और मुँज के झाडु से जो साधु उपाश्रय को प्रमार्जते हैं, उस साधु को जीव पर बीलकुल दया नहीं है, ऐसा हे गौतम ! तू अच्छी तरह से समझ ले । सूत्र - ७७ ग्रीष्म आदि काल में तषा से प्राण सूख जाए और मौत मिले तो भी बाहर का सचित्त पानी बँद मात्र भी जो गच्छ में मुनि न ले, वो गच्छ मानना चाहिए। सूत्र - ७८ और फिर जिस गच्छ में अपवाद मार्ग से भी हमेशा प्राशुक-निर्जीव पानी सम्यक तरह से आगम विधि से इच्छित होता है हे गौतम ! उसे गच्छ जानो। मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(गच्छाचार)” आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद” Page 10 Page 10

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