Book Title: Agam 30 1 Gacchachar Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
View full book text
________________
आगम सूत्र ३०/१, पयन्नासूत्र-७/१, 'गच्छाचार' सूत्र - ९१, ९२
जिस गच्छ में आर्या का लाया हुआ विविध उपकरण और पात्रा आदि साधु बिना कारण भी भुगते उसे कैसा गच्छ कहना ? ......... बल और बुद्धि को बढ़ानेवाला, पुष्टिकारक, अति दुर्लभ ऐसा भी भैषज्य साध्वी का प्राप्त किया हुआ साधु भुगते, तो उस गच्छ में मर्यादा कहाँ से हो ? सूत्र - ९३
जिस गच्छ में अकेला साधु, अकेली स्त्री या साध्वी साथ रहे, उसे हे गौतम ! हम अधिक करके मर्यादा रहित गच्छ कहते हैं। सूत्र - ९४
दृढ़ चारित्रवाली, निर्लोभी, ग्राह्यवचना, गुण समुदायवाली ऐसी लेकिन महत्तरा साध्वी को जिस गच्छ में अकेला साधु पढ़ाता है, वो अनाचार है, गच्छ नहीं । सूत्र - ९५
मेघ की गर्जना-अश्व हृदयगत वायु और विद्युत की तरह जैसे दुग्राह्य गूढ़ हृदयवाली आर्याएं जिस गच्छ में अटकाव रहित अकार्य करते हैंसूत्र-९६
जिस गच्छ के भीतर भोजन के वक्त साधु की मंडली में साध्वी आती है, वो गच्छ नहीं लेकिन स्त्री राज्य है सूत्र-९७
सुख में रहे पंगु मानव की तरह जो मुनि के कषाय दूसरों के कषाय द्वारा भी उद्दीपन न हो, उसे हे गौतम ! गच्छ मानना चाहिए। सूत्र-९८
धर्म के अन्तराय से भय पाए हुए और संसार की भीतर रहने से भय पानेवाले मुनि, अन्य मुनि के क्रोध आदि कषाय को न उदीरे, उसे गच्छ मान । सूत्र - ९९
शायद किसी कारण से या बिना कारण मुनिओं के कषाय का उदय हो और उदय को रोके और तदनन्तर खमाए, उसे हे गौतम ! गच्छ मान । सूत्र-१००
दान, शील, तप और भावना, इन चार प्रकार के धर्म के अन्तराय से भय पानेवाले गीतार्थ साधु जिस गच्छ में ज्यादा हो उसे हे गौतम ! गच्छ कहा है। सूत्र-१०१
और फिर हे गौतम ! जिस गच्छ में चक्की, खंडणी, चूल्हा, पानेहारा और झाड़ इस पाँच वधस्थान में से कोई एक भी हो, तो वो गच्छ का मन, वचन, काया से त्याग करके अन्य अच्छे गच्छ में जाना चाहिए। सूत्र-१०२
खंड़ना आदि के आरम्भ में प्रवर्ते हए और उज्ज्वल वेश धारण करनेवाले गच्छ की सेवा न करना लेकिन जो गच्छ चारित्र गुण से उज्ज्वल हो उसकी सेवा करनी चाहिए। सूत्र - १०३
और फिर जिस गच्छ के भीतर मुनि क्रय-विक्रय आदि करे-करवाए, अनुमोदन करे, वो मुनि को संयमभ्रष्ट मानना चाहिए । हे गुणसागर गौतम ! वैसे लोगों को विष की तरह दूर से ही त्याग देना चाहिए।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(गच्छाचार)” आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद”
Page 12