Book Title: Agam 19 Nirayavalika Sutra Hindi Anuwad Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar View full book textPage 9
________________ आगम सूत्र १९, उपांगसूत्र-८, 'निरयावलिका' अध्ययन/सूत्र मांस से यावत् अपना दोहद पूर्ण किया । दोहद पूर्ण होने पर चेलना देवी का दोहद संपन्न, सम्मानित और निवृत्त हो गया । तब वह उस गर्भ का सुखपूर्वक वहन करने लगी। सूत्र-११ कुछ समय व्यतीत होने के बाद एक बार चेलना देवी को मध्य रात्रिमें जागते हुए इस प्रकार का यह यावत् विचार उत्पन्न हुआ-'इस बालक ने गर्भ में रहते ही पिता की उदरावली का मांस खाया है, अतएव इस गर्भ को नष्ट कर देना, गिरा देना, गला देना एवं विध्वस्त कर देना ही मेरे लिए श्रेयस्कर होगा,' उसने ऐसा निश्चय करके बहुत सी गर्भ को नष्ट करनेवाली यावत् विध्वस्त करनेवाली औषधियों से उस गर्भ को नष्ट यावत् विध्वस्त करना चाहा, किन्तु वह गर्भ नष्ट नहीं हुआ, न गिरा, न गला और न विध्वस्त ही हुआ । तदनन्तर जब चेलना देवी उस गर्भ को यावत् विध्वस्त करने में समर्थ-नहीं हुई तब श्रान्त, क्लान्त, खिन्न और उदास होकर अनिच्छापूर्वक विवशता से दुस्सह आर्त ध्यान से ग्रस्त हो उस गर्भ को परिवहन-करने लगी। सूत्र - १२ तत्पश्चात् नौ मास पूर्ण होने पर चेलना देवी ने एक सुकुमार एवं रूपवान् बालक का प्रसव किया-पश्चात् चेलना देवी को विचार आया-'यदि इस बालक ने गर्भ में रहते ही पिता की उदरावली का मांस खाया है, तो हो सकता है कि यह बालक संवर्धित होने पर हमारे कुल का भी अंत करनेवाला हो जाय ! अतएव इस बालक को एकान्त उकरड़े में फेंक देना ही उचित-होगा।' इस प्रकार का संकल्प कर के अपनी दास-चेटी को बुलाया, उस से कहा-तुम जाओ और इस बालक को एकान्त में उकरड़े में फेंक आओ। तत्पश्चात् उस दास चेटी ने चेलना देवी की इस आज्ञा को सूनकर दोनों हाथ जोड़ यावत् चेलना देवी की इस आज्ञा को विनयपूर्वक स्वीकार किया । वह अशोक-वाटिका में गई और उस बालक को एकान्त में उकरड़े पर फेंक दिया । उस बालक के एकान्त में उकरड़े पर फैंके जाने पर वह अशोक-वाटिका प्रकाश से व्याप्त हो गई। इस समाचार को सूनकर राजा श्रेणिक अशोक-वाटिका में पहुँचा । वहाँ उस बालक को देखकर क्रोधित हो उठा यावत् रुष्ट, कुपित और चंडिकावत् रौद्र होकर दाँतों को मिसमिसाते हुए उस बालक को उसने हथेलियों में लिया और जहाँ चेलना देवी थी, वहाँ आया । चेलना देवी को भले-बूरे शब्दों से फटकारा, पुरुष वचनों से अपमानित किया और धमकाया । फिर कहा-'तुमने क्यों मेरे पुत्र को एकान्त-उकरड़े पर फिकवाया ?' चेलना देवी को भली-बूरी सौगंध-दिलाई और कहा-देवानुप्रिये ! इस बालक की देखरेख करती हुई इसका पालन-पोषण करो और संवर्धन करो । तब चेलना देवी ने श्रेणिक राजा के इस आदेश को सूनकर लज्जित, प्रताडित और अपराधिनी -सी हो कर दोनों हाथ जोड़कर श्रेणिक राजा के आदेश को विनयपूर्वक स्वीकार किया और अनुक्रम से उस बालक की देखरेख, लालन-पालन करती हुई वर्धित करने लगी। सूत्र - १३ एकान्त उकरड़े पर फैंके जाने के कारण उस बालक की अंगुली का आगे का भाग मुर्गे की चोंच से छिल गया था और उससे बार-बार पीव और खून बहता रहता था । इस कारण वह बालक वेदना से चीख-चीख कर रोता था । उस बालक के रोने को सून और समझकर श्रेणिक राजा बालक के पास आता और उसे गोदी में लेता । लेकर उस अंगुली को मुख में लेता और उस पीव और खून को मुख से चूस लेता, ऐसा करने से वह बालक शांति का अनुभव कर चूप शांत हो जाता। इस प्रकार जब-जब भी वह बालक वेदना के कारण जोर-जोर से रोने लगता, तब-तब श्रेणिक राजा उसी प्रकार चूसता यावत् वेदना शांत हो जाने से वह चूप हो जाता था । तत्पश्चात् उस बालक के माता-पिता ने तीसरे दिन चन्द्र सूर्य दर्शन का संस्कार किया, यावत् ग्यारह दिन के बाद बारहवें दिन इस प्रकार का गुण-निष्पन्न नामकरण किया-इस बालक का नाम कूणिक' हो । मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (निरयावलिका) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 9Page Navigation
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