Book Title: Agam 19 Nirayavalika Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 8
________________ आगम सूत्र १९, उपांगसूत्र-८, 'निरयावलिका' अध्ययन/सूत्र प्रकार का यह दोहद उत्पन्न हुआ है'-वे माताएं धन्य हैं जो आपकी उदरावलि के शूल पर सेके हए यावत् मांस द्वारा तथा मदिरा द्वारा अपने दोहद को पूर्ण करती हैं। लेकिन स्वामिन् ! उस दोहद को पूर्ण न कर सकने के कारण मैं शुष्कशरीरी, भूखी-सी यावत् चिन्तित हो रही हूँ। तब श्रेणिक राजा ने चेलना देवी की उक्त बात को सूनकर उसे आश्वासन देते हुए कहा-देवानुप्रिये ! तुम हतोत्साह एवं चिन्तित न होओ । मैं कोई ऐसा उपाय करूँगा जिससे तुम्हारे दोहद की पूर्ति हो सकेगी । ऐसा कहकर चेलनादेवी को इष्ट, कान्त, प्रिय, मनोज्ञ, मणाम, प्रभावक, कल्याणप्रद, शिव, धन्य, मंगलरूप, मृदु-मधुर वाणी से आश्वस्त किया। वह चेलना देवी के पास से निकलकर बाह्य सभाभवन में उत्तम सिंहासन के पास आया । आकर पूर्व की ओर मुख करके आसीन हो गया । वह दोहद की संपूर्ति के लिए आयों से उपायों से औत्पत्तिकी, वैनयिकी, कार्मिकी और पारिणामिकी-बद्रियों से वारंवार विचार करते हए भी इसके आय-उपाय, स्थिति एवं निष्पत्ति को समझ न पाने के कारण उत्साहहीन यावत् चिन्ताग्रस्त हो उठा। इधर अभयकुमार स्नान करके यावत् अपने शरीर को अलंकृत करके अपने आवासगृह से बाहर निकला। जहाँ श्रेणिक राजा था, वहाँ आया । उसने श्रेणिक राजा को निरुत्साहित जैसा देखा, यह देखकर वह बोला-तात ! पहले जब कभी आप मुझे आता हुआ देखते थे तो हर्षित यावत् सन्तुष्टहृदय होते थे, किन्तु आज ऐसी क्या बात है जो आप उदास यावत् चिन्ता में डूबे हुए हैं ? तात ! यदि मैं इस अर्थ को सूनने के योग्य हूँ तो आप सत्य एवं बिना किसी संकोच-संदेह के कहिए, जिससे मैं उसका हल करने का उपाय करूँ। अभयकुमार के कहने पर श्रेणिक राजा ने अभयकुमार से कहा-पुत्र ! है पुत्र ! तुम्हारी विमाता चेलना देवी को उस उदार यावत् महास्वप्न को देखे तीन मास बीतने पर यावत् ऐसा दोहद उत्पन्न हुआ है कि जो माताएं मेरी उदरावलि के शूलित आदि मांस से अपने दोहद को पूर्ण करती है-आदि । लेकिन चेलना देवी उस दोहद के पूर्ण न हो सकने के कारण शुष्क यावत् चिन्तित हो रही है । इसलिए पुत्र ! उस दोहद की पूर्ति के निर्मित आयों यावत् स्थिति को समझ नहीं सकने के कारण मैं भग्नमनोरथ यावत् चिन्तित हो रहा हूँ। श्रेणिक राजा के इस मनोगत भाव को सुनने के बाद अभयकुमार ने श्रेणिक राजा से कहा-'तात ! आप भग्नमनोरथ यावत् चिन्तित न हों, मैं ऐसा कोई जतन करूँगा कि जिससे मेरी छोटी माता चेलना देवी के उस दोहद की पर्ति हो सकेगी।' श्रेणिक राजा को आश्वस्त करने के पश्चात अभयकमार जहाँ अपना भवन था वहाँ आ गुप्त रहस्यों के जानकार आन्तरिक विश्वस्त पुरुषों को बुलाया और उनसे कहा-तुम जाओ और सूनागार में जाकर गीला मांस, रुधिर और वस्तिपुटक लाओ। ___ वे रहस्यज्ञाता पुरुष अभयकुमार की इस बात को सुनकर हर्षित एवं संतुष्ट हुए यावत् अभय-कुमार के पास से निकले । गीला मांस, रक्त एवं वस्तिपुटक को लिया । जहाँ अभयकुमार था, वहाँ आकर दोनों हाथ जोड़कर यावत् उस मांस, रक्त एवं वस्तिपुटक को रख दिया। तब अभयकुमार ने उस रक्त और मांस से थोड़ा भाग कैंची से काटा । जहाँ श्रेणिक राजा था, वहाँ आया और श्रेणिक राजा को एकान्त में शैया पर चित लिटाया । श्रेणिक राजा की उदरावली पर उस आर्द्र रक्त-मांस को फैला दिया और फिर वस्तिपुटक को लपेट दिया । वह ऐसा प्रतीत होने लगा जैसे रक्त-धारा बह रही हो । और फिर ऊपर के माले में चेलना देवी को अवलोकन करने के आसन से बैठाया, बैठाकर चेलना देवी के ठीक नीचे सामने की ओर श्रेणिक राजा को शैया पर चित लिटा दिया । कतरनी से श्रेणिक राजा की उदरावली का मांस काटा, काटकर उसे एक बर्तन में रखा । तब श्रेणिक राजा ने झूठ-मूठ मूर्छित होने का दिखावा किया और उसके बाद कुछ समय के अनन्तर आपस में बातचीत करने में लीन हो गए। तत्पश्चात् अभयकुमार ने श्रेणिक राजा की उदरावली के मांस-खण्डों को लिया, लेकर जहाँ चेलना देवी थी, वहाँ आया और आकर चेलना देवी के सामने रख दिया । तब चेलना देवी ने श्रेणिक राजा के उस उदरावली के हा गए | मुनि दीपरत्नसागर कृत् - (निरयावलिका) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 8

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