Book Title: Agam 19 Nirayavalika Sutra Hindi Anuwad Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar View full book textPage 7
________________ आगम सूत्र १९, उपांगसूत्र-८, 'निरयावलिका' अध्ययन/सूत्र हो, जीवनरहित-होकर मृत्यु को प्राप्त करके कहाँ गया है ? कहाँ उत्पन्न हुआ है ? भगवान् ने गौतमस्वामी से कहा- गौतम ! युद्धप्रवृत्त वह कालकुमार जीवनरहित हो कर कालमासमें काल कर के चौथी पंकप्रभा पृथ्वी के हेमाभ नरक में दस सागरोपम की स्थिति वाले नैरयिकों में नारक रूप में उत्पन्न हुआ है। सूत्र-९ गौतम ने पुनः पूछा-भदन्त ! किस प्रकार के भोग-संभोगों को भोगने से, कैसे-कैसे आरम्भों और आरम्भसमारंभों से तथा कैसे आचारित अशुभ कर्मों के भार से मरण करके वह काल कुमार चौथी पंकप्रभापृथ्वी में यावत् नैरयिक रूप से उत्पन्न हुआ है ? भगवान् ने बताया-गौतम ! उस काल और उस समय में राजगृह नगर था । वह नगर वैभव से सम्पन्न, शत्रुओं के भय से रहित और धन-धान्यादि की समृद्धि से युक्त था । उस राजगृह नगर में हिमवान् शैल के सदृश महान् श्रेणिक राजा राज्य करता था । श्रेणिक राजा की अंग-प्रत्यंगों से सुकुमाल नन्दा रानी थी, जो मानवीय कामभोगों को भोगती हुई यावत् समय व्यतीत करती थी। उस श्रेणिक राजा का पुत्र और नन्दा रानी का आत्मज अभयकुमार था, जो सुकुमाल यावत् सुरूप था तथा शाम, दाम, भेद और दण्ड की राजनीति में चित्तसारथि के समान निष्णात था यावत् राज्यधूरा-शासन का चिन्तक था । उस श्रेणिक राजा की चेलना रानी भी थी । वह सुकुमाल हाथ-पैरवाली थी यावत् सुखपूर्वक विचरण करती थी। किसी समय शयनगृह में चिन्ताओं आदि से मुक्त सुख-शय्या पर सोते हुए वह चेलना देवी प्रभावती देवी के समान स्वप्न में सिंह को देखकर जागृत हई, यावत् स्वप्न-पाठकों को आमंत्रित करके राजा ने उस का फल पूछा। स्वप्नपाठकों ने स्वप्न का फल बतलाया । स्वप्न-पाठकों को विदा किया यावत् चेलना देवी उन स्वप्नपाठकों के वचनों को सहर्ष स्वीकार करके अपने वासभवन में चली गई। सूत्र-१० तत्पश्चात् परिपूर्ण तीन मास बीतने पर चेलना देवी को इस प्रकार का दोहद उत्पन्न हुआ-वे माताएं धन्य हैं यावत् वे पुण्यशालिनी हैं, उन्होंने पूर्व में पुण्य उपार्जित किया है, उनका वैभव सफल है, मानवजन्म और जीवन का, सुफल प्राप्त किया है जो श्रेणिक राजा की उदरावली के शूल पर सेके हुए, तले हुए, भूने हुए मांस का तथा सूरा यावत् मधु, मेरक, मद्य, सीधु और प्रसन्ना नामक मदिराओं का आस्वादन यावत् विस्वादन तथा उपभोग करती हुई और अपनी सहेलियों को आपस में वितरीत करती हुई अपने दोहद को पूर्ण करती हैं किन्तु इस अयोग्य एवं अनिष्ट दोहद के पूर्ण न होने से चेलना देवी शुष्क, पीड़ित, मांसरहित, जीर्ण और जीर्ण शरीर वाली हो गई, निस्तेज, दिन, विमनस्क जैसी हो गई, विवर्णमुखी, नेत्र और मुखकमल को नमाकर यथोचित पुष्प, वस्त्र, गन्ध, माला और अलंकारों का उपभोग नहीं करती हुई, मुरझाई हुई, आहतमनोरथा यावत् चिन्ताशोक-सागर में निमग्न हो, हथेली पर मुख को टिकाकर आर्तध्यान में डूब गई। तब चेलना देवी की अंगपरिचारिकाओं ने चेलना देवी को सूखी-सी, भूख से ग्रस्त-सी यावत् चिन्तित देखा। वे श्रेणिक राजा के पास पहुँची । उन्होंने दोनों हाथ जोड़कर मस्तक पर अंजलि करके श्रेणिक राजा से कहा'स्वामिन् ! न मालूम किस कारण से चेलना देवी शुष्क-बुभुक्षित जैसी होकर यावत् आर्तध्यान में डूबी हुई हैं । श्रेणिक राजा उन अंगपरिचारिकाओं की इस बात को सूनकर और समझकर आकुल-व्याकुल होता हुआ, चेलना देवी के पास आया । चेलना देवी को सूखी-सी, भूख से पीड़ित जैसी, यावत् आर्तध्यान करती हुई देखकर बोला- देवानुप्रिये ! तुम क्यों शुष्कशरीर, भूखी-सी यावत् चिन्ताग्रस्त हो रही हो ?' लेकिन चेलना देवी ने श्रेणिक राजा के इस प्रश्न का आदर नहिं किया, वह चूपचाप बैठी रही। तब श्रेणिक राजा ने पुनः दूसरी बार और फिर तीसरी बार भी यही प्रश्न चेलना देवी से पूछा और कहादेवानुप्रिये ! क्या मैं इस बात को सुनने के योग्य नहीं हूँ जो तुम मुझसे इसे छिपा रही हो ? चेलना देवी ने श्रेणिक राजा से कहा-'स्वामिन् ! बात यह है कि उस उदार यावत् महास्वप्न को देखने के तीन मास पूर्ण होने पर मुझे इस मुनि दीपरत्नसागर कृत्- (निरयावलिका) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 7Page Navigation
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