Book Title: Agam 19 Nirayavalika Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र १९, उपांगसूत्र- ८, 'निरयावलिका'
अध्ययन / सूत्र
तब उन काशी-कोशल के नौ मल्लकी और नौ लिच्छवी - अठारह गणराजाओं ने चेटक राजा से कहास्वामिन् ! यह न तो उचित है-न अवसरोचित है और न राजा के अनुरूप ही है कि सेचनक और अठारह लड़ों का हार कूणिक राजा को लौटा दिया जाए और शरणागत वेहल्लकुमार को भेज दिया जाए । इसलिए जब कूणिक राजा चतुरंगिणी सेना को लेकर युद्धसज्जित होकर यहाँ आ रहा है तब हम कूणिक राजा के साथ युद्ध करें ।
इस पर चेटक राजा ने कहा- यदि आप देवानुप्रिय कूणिक राजा से युद्ध करने के लिए तैयार हैं तो देवानुप्रियों ! अपने अपने राज्यो में जाइए और स्नान आदि कर कालादि कुमारों के समान यावत् चतुरंगिणी सेना के साथ यहाँ चंपा में आइए । यह सूनकर अठारहों राजा अपने-अपने राज्यों में गए और युद्ध के लिए सुसज्जित हो कर उन्होंने चेटक राजा को जय-विजय शब्दों से बधाया । उस के बाद चेटक राजा ने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाकर आज्ञा दी - आभिषेक्य हस्तिरत्न को सजाओ आदि कूणिक राजा की तरह यावत् चेटक राजा हाथी पर आरूढ हुआ
अठारहों गण-राजाओं के आ जाने के पश्चात् चेटक राजा कूणिक राजा की तरह तीन हजार हाथियों आदि के साथ वैशाली नगरी के बीचोंबीच होकर नीकला । जहाँ वे नौ मल्ली, नौ लिच्छवी काशी-कोशल के अठारह गणराजा थे, वहाँ आया । तदनन्तर चेटक राजा ५७००० हाथियों, ५७००० घोड़ों, ५७००० रथों और सत्तावन कोटि मनुष्यों को साथ लेकर सर्व ऋद्धि यावत् वाद्यघोष पूर्वक सुखद वास, निकट - निकट विश्राम करते हुए विदेह जनपद के बीचोंबीच से चलते जहाँ सीमान्त- प्रदेश था, वहाँ आकर स्कन्धावार का निवेश किया तथा कूणिक राजा की प्रतीक्षा करते हुए युद्ध को तत्पर हो ठहर गया । इसके बाद कूणिक राजा समस्त ऋद्धि-यावत् कोलाहल के साथ जहाँ सीमांतप्रदेश था, वहाँ आया । चेटक राजा से एक योजन की दूरी पर उसने भी स्कन्धावारनिवेष किया । तदनन्तर दोनों राजाओं ने रणभूमि को सज्जित किया, सज्जित करके रणभूमि में अपनी-अपनी जयविजय के लिए अर्चना की। इसके बाद कूणिक राजा ने ३३००० हाथियों यावत् तीस कोटि पैदल सैनिकों से गरुडव्यूह की रचना की । गरुडव्यूह द्वारा रथ-मूसल संग्राम प्रारम्भ किया । इधर चेटक राजा ने ५७००० हाथियों यावत् सत्तावन कोटि पदातियों द्वारा शकटव्यूह की रचना की और रचना करके शकटव्यूह द्वारा रथ-मूसल संग्राम में प्रवृत्त हुआ । तब दोनों राजाओं की सेनाएं युद्ध के लिए तत्पर हो यावत् आयुधों और प्रहरणों को लेकर हाथों में ढालों को बाँधकर, तलवारें म्यान से बाहर निकालकर, कंधों पर लटके तूणीरों से, प्रत्यंचायुक्त धनुषों से छोड़े हुए बाणों से, फटकारते हुए बायें हाथों से, जोर-जोर से बजती हुई जंघाओं में बंधी हुई घंटिकाओं से, बजती हुई तुरहियों से एवं प्रचंड हुंकारों के महान कोलाहल से समुद्रगर्जना जैसी करते हुए सर्व ऋद्धि यावत् वाद्यघोषों से, परस्पर अश्वारोही अश्वारोहियों से, गजारूढ गजारूढों से, रथी रथारोहियों से और पदाति पदातियों से भिड़ गए। दोनों राजाओं की सेनाएं अपने-अपने स्वामी के शासनानुराग से आपूरित थीं । अतएव महान जनसंहार, जनवध, जनमर्दन, जनभय और नाचते हुए रुंड-मुंडों से भयंकर रुधिर का कीचड़ करती हुई एक दूसरे से युद्ध में झूझने लगीं ।
तदनन्तर कालकुमार गरुडव्यूह के ग्यारहवें भाग में कूणिक राजा के साथ रथमूसल संग्राम करता हुआ हत और मथित हो गया, इत्यादि जैसा भगवान् ने काली देवी से कहा था, तदनुसार यावत् मृत्यु को प्राप्त हो गया । अतएव गौतम ! इस प्रकार के आरम्भों से, अशुभ कार्यों के कारण वह काल कुमार मरण करके चौथी पं पृथ्वी के हेमाभ नरक में नैरयिक रूप से उत्पन्न हुआ है ।
सूत्र - १९
गौतम स्वामी ने पुनः प्रश्न किया- भदन्त ! वह कालकुमार चौथी पृथ्वी से निकलकर कहाँ जाएगा ? कहाँ उत्पन्न होगा ? गौतम ! महाविदेह क्षेत्र में जो आढ्य कुल है, उनमें जन्म लेकर दृढप्रतिज्ञ के समान सिद्ध, बुद्ध, मुक्त, यावत् परिनिर्वाण को प्राप्त होगा और समस्त दुःखों का अंत करेगा । इस प्रकार आयुष्मन् जम्बू ! श्रमण भगवान महावीर ने निरयावलिका के प्रथम अध्ययन का यह अर्थ कहा है ।
अध्ययन-१ का मुनि दीपरत्नसागरकृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (निरयावलिका)" आगमसूत्र - हिन्द- अनुवाद"
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