Book Title: Agam 19 Nirayavalika Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र १९, उपांगसूत्र-८, 'निरयावलिका'
अध्ययन/सूत्र
मस्तक पर अंजलि करके जय-विजय शब्दों से उसे बधाया और निवेदन किया
_ 'स्वामिन्! वेहल्लकुमार सेचनक गंधहस्ती से यावत् भाँति-भाँति क्रीडाएं करता है, तो हमारा राज्य यावत् जनपद किस काम का यदि हमारे पास सेचनक गंधहस्ती नहीं है । कूणिकराजाने पद्मावती के इस कथन का आदर नहीं किया, उसे सूना नहीं-उस पर ध्यान नहीं दिया, चूपचाप रहा । पद्मावती द्वारा बार-बार इसी बात को दुहराने पर कूणिक राजा ने एक दिन वेहल्लकुमार को बुलाया और सेचनक गंधहस्ती तथा अठारह लड़ का हार माँगा ।
तब वेहल्लकुमार ने कूणिक राजा को उत्तर दिया-'स्वामिन् ! श्रेणिक राजा ने अपने जीवनकाल में ही मुझे यह सेचनक गंधहस्ती और अठारह लड़ों का हार दिया था । यदि स्वामिन् ! आप राज्य यावत् जनपद का आधा भाग मुझे दें तो मैं सेचनक गंधहस्ती और अठारह लड़ों का हार दूंगा।' कूणिक राजा ने वेहल्लकुमार के इस उत्तर को स्वीकार नहीं किया । उस पर ध्यान नहीं दिया और बार-बार सेचनक गंधहस्ती एवं अठारह लड़ों के हार को देने का आग्रह किया । तब कूणिक राजा के वारंवार सेचनक गंधहस्ती और अठारह लड़ों के हार को देने का आग्रह किया । तब कूणिक राजा के वारंवार सेचनक गंधहस्ती और अठारह लड़ों के हार को माँगने पर वेहल्लकुमार के मन में विचार आया कि वह उनको झपटना चाहता है, लेना चाहता है, छीनना चाहता है।
इसलिए सेचनक गंध-हस्ती और हार को लेकर अन्तःपुर परिवार और गृहस्थी की साधन-सामग्री के साथ चंपानगरी से निकलकर-वैशाली नगरी में आर्यक चेटक का आश्रय लेकर रहूँ । उसने ऐसा विचार कर के कूणिक राजा की असावधानी, मौका, अन्तरंग बातों-रहस्यों की जानकारी की प्रतीक्षा करते हुए समय यापन करने लगा। किसी दिन वेहल्लकुमार ने कूणिक राजा की अनुपस्थिति को जाना और सेचनक गंधहस्ती, अठारह लड़ों का हार तथा अन्तःपुर परिवार सहित गृहस्थी के उपकरण-को लेकर चंपानगरी से भाग निकला । वैशाली नगरी आया और अपने नाना चेटक का आश्रय लेकर वैशाली नगरी में निवास करने लगा।
तत्पश्चात् कूणिक राजा ने यह समाचार जानकर कि मुझे बिना बताए ही वेहल्लकुमार सेचनक गंधहस्ती और अठारह लड़ों का हार तथा अन्तःपुर परिवार सहित गृहस्थी के उपकरण-साधनों को लेकर यावत् आर्यक चेटक राजा के आश्रय में निवास कर रहा है । तब उसने दूत को बुलाकर कहा-तुम वैशाली नगरी जाओ। वहाँ तुम आर्यक चेटकराज को दोनों हाथ जोड़कर यावत् जय-विजय शब्दों से बधाकर निवेदन करना- स्वामिन् ! कूणिक राजा विनति करते हैं कि वेहल्लकमार कणिक राजा को बिना बताए ही सेचनक गंधहस्ती और अठारह लडों का हार लेकर यहाँ आ गये हैं । इसलिए स्वामिन् ! आप कूणिक राजा को अनुगृहीत करते हुए सेचनक गंधहस्ती और अठारह लडों का हार कणिक राजा को वापिस लौटा दें। साथ ही वेहल्लकमार को भेज दें।
कणिक राजा की इस आज्ञा को यावत स्वीकार कर के दूत चित्त सारथी के समान यावत् पास-पास अन्तरावास करते हुए वैशाली नगरी वहाँ आकर जहाँ चेटक राजा का आवासगृह और उसकी बाह्य उपस्थान शाला थी, वहाँ पहुँचा । घोड़ों को रोका और रथ से नीचे ऊतरा । तदनन्तर बहुमूल्य एवं महान पुरुषों के योग्य उपहार लेकर जहाँ आभ्यन्तर सभाभवन था, उसमें जहाँ चेटक राजा था, वहाँ पहुँचकर दोनों हाथ जोड़ यावत् 'जयविजय' शब्दों से वधाया और निवेदन किया- स्वामिन् ! कूणिक राजा प्रार्थना करते हैं-वेहल्लकुमार हाथी और हार लेकर कूणिक राजा की आज्ञा बिना यहाँ चले आए हैं इत्यादि, यावत् हार, हाथी और वेहल्लकुमार को वापिस भेजे
दूत का निवेदन सूनने के पश्चात् चेटक राजा ने कहा-जैसे कूणिक राजा श्रेणिक राजा का पुत्र और चेलना देवी का अंगजात तथा मेरा दौहित्र है, वैसे ही वेहल्लकुमार भी श्रेणिक राजा का पुत्र, चेलना देवी का अंगज और मेरा दौहित्र है । श्रेणिक राजा ने अपने जीवनकाल में ही वेहल्लकुमार को सेचनक गंधहस्ती और अठारह लड़ों का हार दिया था। इसलिए यदि कूणिक राजा वेहल्लकुमार को राज्य और जनपद का आधा भाग दे तो मैं सेचनक गंधहस्ती और अठारह लड़ों का हार कूणिक राजा को लौट दूंगा तथा वेल्लकुमार को भेज दूंगा।' - इसके बाद चेटक राजा द्वारा विदा किया गया वह दूत जहाँ चार घण्टों वाला अश्व-रथ था, वहाँ आया । उस चार घण्टों वाले अश्व-रथ पर आरूढ हुआ । वैशाली नगरी के बीच से निकला । साताकारी वसतिकाओं में विश्राम
मुनि दीपरत्नसागर कृत् - (निरयावलिका)" आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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