Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 13
________________ நிசுததததததததததமிழ********************* प्रकाशकीय मुझे यह लिखते हुए अत्यंत हर्ष है कि सदा की भाँति इस वर्ष भी हमने दो सचित्र आगमों का प्रकाशन किया है, जिनमें से एक सचित्र जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र ग्रन्थ आपके हाथों में प्रस्तुत है । पदम प्रकाशन द्वारा प्रकाशित सचित्र आगम माला का यह 20वाँ पुष्प है। इन सचित्र आगमों को जिज्ञासु पाठक वर्ग ने एवं विद्वानों ने स्तुत्य एवं अत्यंत उपयोगी बताया है। आगमों को रंगीन चित्रों के एवं हिन्दी-अंग्रेजी अनुवाद के साथ प्रकाशित करना सर्वथा नवीन प्रयोग है। जैन साहित्य के इतिहास में आज तक इस तरह के आगमों का प्रकाशन नहीं हुआ है। प्रस्तुत शास्त्र जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति में जम्बूद्वीप के सुन्दर रंगीन नक्शे एवं अन्य भावपूर्ण चित्र दिये गये हैं । ये चित्र सम्बन्धित गूढ़ विषयों को स्पष्ट रूप से समझने में अत्यंत सहायक सिद्ध होंगे। मनोयोग पूर्वक चित्र देखने पर पूरा विषय आपके मानस पटल पर अंकित हो जायेगा । उत्तर भारतीय प्रवर्त्तक भण्डारी पद्म चन्दजी म. सा. के विद्वान शिष्य प्रवर्त्तक श्री अमर मुनिजी म. सा. ने सचित्र आगम प्रकाशन की योजना को प्रारम्भ किया और निरन्तर 15 वर्षों तक अथक परिश्रम कर सफलता के सोपान पर चढ़ाया । आपश्री द्वारा संपादित अब तक 23 सचित्र आगम प्रकाशित हो चुके हैं। आपश्री ने इतनी सरल सुगम भाषा शैली में इनका हिन्दी में अनुवाद किया, फलस्वरूप जो लोग शास्त्र स्वाध्याय के नाम से ही डरते थे। अब वे भी इन सचित्र आगमों का स्वाध्याय करने लगे हैं। विदेशों में रहने वाले अनेक जैन श्रावक जो आगमों को पड़ने के लिये उत्सुक रहते थे। परन्तु हिन्दी का ज्ञान न होने के कारण वंचित रह जाते थे। वे भी अब इन शास्त्रों का अंग्रेजी अनुवाद सहित मँगाकर बड़े चाव से पड़ते हैं। इनका अंग्रेजी भाषानुवाद और आवश्यकतानुसार अंग्रेजी में संलग्न पारिभाषिक शब्दकोष उनके लिये अत्यंत उपयोगी है। यद्यपि सचित्र आगमों का प्रकाशन एक बहुत ही खर्चीला व श्रम साध्य कार्य है। हाथ के चित्र, अंग्रेजी अनुवाद, छपाई कागज आदि काफी व्यय होता है फिर भी प्रवर्त्तक श्री जी के निर्देशानुसार इनका मूल्य लागत से अल्प रखने का प्रयत्न रहता है। सभी साधु साध्वी तथा श्री संघों को यह भेंट स्वरूप भेजा जाता है । परन्तु गुरुदेव की प्रेरणा से इस प्रकाशन कार्य में सहयोग करने वाले गुरु भक्तों के उत्साह में कभी कमी नहीं आती। वै निरन्तर इस श्रुत सेवा का लाभ उठाकर इस पुण्यशाली कार्य में सहभागी बनते हैं । आगमों का यह ऐतिहासिक कार्य अब अपने लक्ष्य के निकट पहुँच रहा है। अब पूज्य प्रवर्तक श्री के निर्देशन में उनके अन्तेवासी शिष्य विद्या रसिक श्री वरुण मुनिजी भी पूरे मनोयोग से इस कार्य में लग गये हैं। आगम साहित्य के मर्मज्ञ विद्वान 'श्रीचन्दजी सुराना 'सरस' तथा सुश्रावक 'राजकुमारजी जैन' एवं 'सुरेन्द्र कुमारजी' बोथरा का सहयोग भी अविस्मरणीय है। अनेक उदार सद्गृहस्थों ने भी अपनी स्वतः प्रेरणा से उदारतापूर्वक सहयोग दिया है। हमारे कार्य में सहयोग देने वाले सभी व्यक्तियों के प्रति हार्दिक आभार व्यक्त करते हुए हम पुनः अपने प्रेरणा स्रोत स्व. गुरुदेव उत्तर भारतीय प्रवर्त्तक भण्डारी पद्म चन्दजी म. सा. एवं उनके सुशिष्य प्रवर्तक श्री अमर मुनिजी को अपना कोटि-कोटि आभार प्रकट करते हैं। Jain Education International (5) 6955595555555 5 5 5 5 5 55 5 5 5 55 5 5 5 5 5 5595959 महेन्द्रकुमार जैन अध्यक्ष पद्म प्रकाशन For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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