Book Title: Agam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 159
________________ ११८ राजप्रश्नीयसूत्र पुंजोवयारकलियं करेइ, करित्ता धूवं दलयइ, जेणेव सिद्धायतणस्स दाहिणिल्ले दारे तेणेव उवागच्छति, लोमहत्थगं परामुसइ, दारचेडीओ य सालभंजियाओ य वालरूवए य लोमहत्थएणं पमज्जइ, दिव्वाए दगधाराए अब्भुक्खेइ, सरसेणं गोसीसचंदणेणं चच्चए दलयइ, दलइत्ता पुप्फारुहणं मल्ला० जाव' आभरणारुहणं करेइ, करेत्ता आसत्तोसत्त जाव' धूवं दलयइ । जेणेव दाहिणिल्ले दारे मुहमंडवे जेणेव दाहिणिल्लस्स मुहमंडवस्स बहुमज्झदेसभाए तेणेव उवागच्छइ लोमहत्थगं परामुसइ, बहुमज्झदेसभागं लोमहत्थेणं पमज्जइ दिव्वाए दगधाराए अब्भुक्खेइ, सरसेणं गोसीसचंदणेणं पंचंगुलितलं मंडलगं आलिहइ, कयग्गहगहिय जाव धूवं दलयइ । जेणेव दाहिणिलस्स मुहमंडवस्स पच्चत्थिमिल्ले दारे तेणेव उवागच्छइ, लोमहत्थगं परामुसइ दारचेडीओ य सालभंजियाओ य वालरूवए य लोमहत्थेणं पमज्जइ, दिव्वाए दगधाराए०२ सरसेणं गोसीसचंदणेणं चच्चए दलयइ, पुष्फारुहणं जाव आभरणारुहणं करेइ आसत्तोसत्त० कयगहग्गहिय० धूवं दलयइ । जेणेव दाहिणिल्लस्स मुहमंडवस्स उत्तरिल्ला खंभपंती तेणेव उवागच्छइ, लोमहत्थं परामुसइ थंभे य सालभंजियाओ य वालरूवए य लोमहत्थएणं पमज्जइ जहा चेव पच्चथिमिल्लस्स दारस्स जाव धूवं दलयइ । जेणेव दाहिणिल्लस्स मुहमंडवस्स पुरथिमिल्ले दारे तेणेव उवागच्छइ, लोमहत्थगं परामुसति दारचेडीओ तं चेव सव्वं । जेणेव दाहिणिल्लस्स मुहमंडवस्स दाहिणिल्ले दारे तेणेव उवागच्छइ दारचेडीओ तं चेव सब्बं । जेणेव दाहिणिल्ले पेच्छाघरमंडवे, जेणेव दाहिणिल्लस्स पेच्छाघरमंडवस्स बहुमझदेसभागे, जेणेव वइरामए अक्खाडए, जेणेव मणिपेढिया, जेणेव सीहासणे, तेणेव उवागच्छइ, लोमहत्थगं परामुसइ, अक्खाडगं च मणिपेढियं च सीहासणं च लोमहत्थएणं पमज्जइ, दिव्वाए दगधाराए सरसेणं गोसीसचंदणेणं चच्चए दलयइ, पुप्फारुहणं आसत्तोसत्त जाव धूवं दलेइ, जेणेव दाहिणिल्लस्स पेच्छाघरमंडवस्स पच्चत्थिमिल्ले दारे उत्तरिल्ले दारे तं चेव जं चेव पुरथिमिल्ले दारे तं चेव दाहिणे दारे तं चेव । जेणेव दाहिणिल्ले चेइयथूमे तेणेव उवागच्छइ थूभं मणिपेढियं च दिव्वाए दगधाराए सरसेण गोसीसचंदणेणं चच्चए दलेइ पुष्फारु० आसत्तो० जाव धूवं दलेइ । जेणेव पच्चथिमिल्ला मणिपेढिया जेणेव पच्चस्थिमिल्ला जिणपडिमा तं चेव, जेणेव उत्तरिल्ला जिणपडिमा तं चेव सव्वं । जेणेव पुरथिमिल्ला मणिपेढिया जेणेव पुरथिमिल्ला जिणपडिमा तेणेव उवागच्छइ तं चेव, दाहिणिल्ला मणिपेढिया दाहिणिल्ला जिणपडिमा तं चेव। १-२. देखें सूत्र संख्या १९८ ३. दगधाराए के अनन्तर आगत० से 'अब्भुक्खेइ' शब्द ग्रहण करना चाहिए।

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