________________ विपाकसूत्र प्रथम श्र तस्कन्ध : प्रथम अध्ययन उत्क्षे प 1 तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा नामं नयरी होत्था / वण्णप्रो। पुण्णभद्दे चेइए / वण्णयो। १-उस काल तथा उस समय में चम्पा नाम की एक नगरी थी। चम्पा नगरी का वर्णन औपपातिक सूत्रान्तर्गत नगरी के वर्णन के ही सदृश समझ लेना चाहिये / (उस नगरी के बाहर ईशानकोण में) पूर्णभद्र नामक एक चैत्य-उद्यान था। पूर्णभद्र चैत्य का वर्णन औपपातिक सूत्र में विस्तारपूर्वक किया गया है, अतः जिज्ञासु को अपनी जिज्ञासापूर्ति वहीं से कर लेना चाहिये। विवेचन-व्यवहार में काल तथा समय, ये दोनों शब्द समानार्थक हैं / फिर सूत्रकार ने इन दोनों शब्दों का पृथक् प्रयोग क्यों किया ? इस शङ्का का प्राचार्य अभयदेव सूरि ने इस तरह समाधान किया है 'अथ कालसमययोः को विशेष: ? उच्यते --सामान्यः वर्तमानावसपिणी चतुर्थारक-लक्षण: कालः, विशिष्टः पुनस्तदेकदेशभूतः समयः / ' सूत्रकार को काल शब्द से सामान्य-वर्तमान अवसर्पिणी काल का चतुर्थ श्रारा अभिप्रेत है और समय शब्द से चौथे आरे के उस भाग का ही ग्रहण करना अभीष्ट है जबकि यह कथा कही जा रही है। ___ तत्त्वज्ञ पुरुष महीना, वर्ष आदि रूप से जिसका कलन-निर्णय करते हैं अथवा 'यह एक पक्ष का है', 'दो महीने का है', इस तरह का कलन (संख्या-गिनती) को काल कहते हैं / अथवा कलाओंसमयों के समूह को काल कहते हैं / निश्चय काल का स्वरूप वर्तना है अर्थात् समस्त द्रव्यों के वर्तन में जो निमित्त कारण होता है वह निश्चय काल है / सुधर्मास्वामी का आगमन 2 तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवनो महावीरस्स अंतेवासी अज्जसुहम्मे नाम प्रणगारे जाइसंपन्ने वण्णनो-(कुलसम्पन्ने, बल-रूव-विणय-णाण-दसण-चरित्त-लाघवसम्पन्ने, प्रोयंसी, तेयंसी, वच्चंसी, जयंसी, जियकोहे, जियमाणे, जियमाए, जियलोहे, जिइंदिए, जियनिद्दे, जियपरिसहे, जीवियास-मरणमय-विप्पमुक्के, तवप्पहाणे, गुणध्पहाणे एवं करण-चरण-निग्गह-णिच्छय-प्रज्जव-मद्दवलाघव-खंति-गुत्ति-मुत्ति-विज्जा-मंत-बंभ-वय-नय-नियम-सच्च-सोय-णाण-दसण-चरित्ते ओराले घोरे घोरपरिसहे घोरधए घोरतवस्सी घोरबंभचेरवासी उच्छूढसरीरे संखित्तविउलतेउलेसे) चउद्दसपुवी चउनाणोवगए पंचहि अणगारसहिं सद्धि संपरिबुडे पुन्वाणुपुटिव जाव (चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे सुहं सुहेणं विहरमाणे) जेणेव चंपानयरी जेणेव पुण्णभद्दे चेइए तेणेव उवागच्छइ, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org