________________ में विजयपुर नाम का 82] [विपाकसूत्र-प्रथम श्रुतस्कन्ध अटुंगाउन्वेयपाढए, तंजहा—कुमारभिच्चं सालागे सल्लहत्ते कायतिगिच्छा जंगोले भूयविज्जा रसायणे वाजीकरणे / सिवहत्थे सुहहत्थे लहुहत्थे / ८-हे गौतम ! उस काल और उस समय में इस जम्बूद्वीप नामक द्वीप के अन्तर्गत भारतवर्ष नाम का ऋद्ध, स्तिमित व समद्ध नगर था। उसमें कनकरथ नाम का राजा राज्य करता था। उस कनकरथ का धन्वन्तरि नाम का वैद्य था जो आयुर्वेद के पाठों अङ्गों का ज्ञाता था। आयुर्वेद के पाठों अङ्गों का नाम इस प्रकार है ___१-कौमारभृत्य-आयुर्वेद का एक अङ्ग जिसमें कुमारों के दुग्धजन्य दोषों के उपशमन का मुख्य वर्णन हो। २-शालाक्य-जिनमें नयन, नाक आदि ऊर्ध्वभागों के रोगों की चिकित्सा का प्रतिपादन किया गया हो। ३-शाल्यहत्य-आयुर्वेद का वह अङ्ग जिसमें शल्य-कण्टक, गोली प्रादि निकालने की विधि का वर्णन किया गया हो।। ४-कायचिकित्सा-शरीर संबंधी रोगों की प्रतिक्रिया---इलाज का प्रतिपादक अायुर्वेद का एक अङ्ग ५-जांगुल-आयुर्वेद का वह विभाग जिसमें विषों की चिकित्सा का विधान है। ६-भूतविद्या-आयुर्वेद का वह भाग जिसमें भूत-निग्रह का प्रतिपादन हो। ७-रसायन-आयु को स्थिर करने वाली व व्याधि-विनाशक औषधियों का विधान करने वाला प्रकरण विशेष / ८–वाजीकरण-बल-वीर्यवर्द्धक औषधियों का विधायक आयुर्वेद का अंग / वह धन्वन्तरि वैद्य शिवहस्त—(जिसका हाथ कल्याण उत्पन्न करने वाला हो) शुभहस्त(जिसका हाथ शुभ अथवा सुख उपजाने वाला हो) व लघुहस्त-(जिसका हाथ कुशलता से युक्त हो) था। ६-तए णं से धनंतरी वेज्जे विजयपुरे नयरे कणगरहस्स रन्नो अंतेउरे य अन्नेसि च बहूणं राईसर जाव सत्थवाहाणं अन्नेसि च बहूणं दुबलाण य गिलाणाण य वाहियाण य रोगियाण य प्रणाहाण य सणाहाण य समणाण य माहणाण य भिक्खगाण य करोडियाण य कप्पडियाण य पाउराण य अप्पेगइयाणं मच्छमंसाई उवदेसेइ, अप्पेगइयाणं कच्छपमंसाई, प्रत्थेगइयाणं गोहामंसाई, अप्पेगइयाणं मगरमंसाई, अप्पेगइयाई सुसुमारमंसाई, अप्पेगइयाणं अयमंसाई एवं एलय-रोउझ-सूयर-मिग-ससयगोमंस-महिसमंसाई, अप्पेगइयाइं तित्तिरमंसाई, अप्पेगइयाणं वट्टक-लावक-कवोय-कुक्कुड-मयूर-मंसाई अन्नेसि च बहूणं जलयर-थलयर-खहयर-माईणं मंसाइं उवदेसेइ / अप्पणा वि य णं से धन्नंतरी वेज्जे तेहिं बहूहि मच्छमंसेहि य जाव मयूरमंसेहि य अन्नेहि य बहूहि जलयर-थलयर-खहयर-मंसेहि य सोल्लेहि य तलिएहि य भज्जिए हि य सुरं च महुं च मेरगं च जाई च सीधु च आसाएसाणे विसाएमाणे परिभाएमाणे परिभुजेमाणे विहरइ / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org