Book Title: Agam 11 Ang 11 Vipak Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 154
________________ नवम अध्ययन : देवदत्ता ] [97 भिज्जमाणं पासइ, पासित्ता इमे प्रज्झथिए जाव समुप्पन्ने, तहेव निग्गए, जाव एवं वयासो-'एसा गं भंते ! इस्थिया पुत्वभवे का प्रासी ?' ४-उस काल उस समय में वहाँ (पृथ्वी अवतंसक उद्यान में) श्रमण भगवान् महावीर स्वामी पधारे यावत् उनकी धर्मदेशना सुनकर राजा व परिषद् वापिस चले गये। उस काल, उस समय भगवान के ज्येष्ठ शिष्य गौतम स्वामी षष्ठखमण-बेले के पारणे के निमित्त भिक्षार्थ नगर में गये यावत् (भिक्षा ग्रहण करके लौटते हुए) राजमार्ग में पधारे। वहाँ पर वे हस्तियों, अश्वों और पुरुषों को देखते हैं, और उन सबके बीच उन्होंने अवकोटक बन्धन से बंधी हुई, कटे हुए कर्ण तथा नाकवाली (जिसके शरीर पर चिकनाई पोती है, जिसे हाथों और कटिप्रवेश में वध्य पुरुष के योग्य वस्त्र पहिनाए गए हैं, हाथों में हथकड़ियां हैं, गले में लाल फूलों की माला पहिनाई गयी है, गेरू के चूर्ण से जिसका शरीर पोता गया है ) ऐसी सूली पर भेदी जाने वाली एक स्त्री को देखा और देखकर उनके मन में यह संकल्प उत्पन्न हुआ कि यह नरकतुल्य वेदना भोग रही है / यावत् पूर्ववत् भिक्षा लेकर नगर से निकले और भगवान् के पास आकर इस प्रकार निवेदन करते लगे कि-भदन्त ! यह स्त्री पूर्वभव में कौन थी ? पूर्वभव ५-एवं खलु गोयमा ! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जम्बुद्दीवे दीवे भारहे वासे सुपइ8 नामं नयरे होत्या, रिद्धस्थिमियसमिद्ध / महासेणे राया। तस्स णं महासेणस्स रन्नो धारिणीपामोक्खाणं देवीसहस्सं प्रोरोहे यावि होत्था। तस्स णं महासेणस्स रनो पुत्तो धारिणीए देवीए अत्तए सोहसेणे नामं कुमारे होत्था, अहीणपडिपुण्णचिदियसरीरे, जुवाराया। ५-हे गौतम ! उस काल और उस समय में इसी जम्बूद्वीपनामक द्वीप के अन्तर्गत भारतवर्ष में सुप्रतिष्ठ नाम का एक ऋद्ध, स्तिमित व समृद्ध नगर था। वहाँ पर महासेन राजा राज्य करते थे। उसके अन्तःपूर में धारिणी प्रादि एक हजार रानियाँ थीं / महाराज महासेन का पुत्र और महारानी धारिणी का आत्मज सिंहसेननामक राजकुमार था जो अन्यून पांचों निर्दोष इन्द्रियों वाला व युवराज पद से अलंकृत था। ६-तए णं तस्स सोहसेणस्स कुमारस्स अम्मापियरो अन्नया कयाइ पंच पासायडिसयसयाई करेंति, अब्भगयमूसियाई। तए णं तस्स सीहसणस्स कुमारस्स प्रम्मापियरो अन्नया कयाइ सामापामोक्खाणं पंचण्हं रायवरकन्नगसयाणं एगदिवसे पाणि गिहाविसु / पंचसयओ दाओ। तए णं से सोहसेणे कुमारे सामापमोक्खाहिं पंचसयाहिं देवीहिं सद्धि उम्पि जाव' विहरइ। ७---तदनन्तर उस सिंहसेन राजकुमार के माता-पिता ने एक बार किसी समय पांच सौ सविशाल प्रासादावतंसक (श्रेष्ठ महल) बनवाये। तत्पश्चात किसी अन्य समय उन्होंने सिंहसेन राजकुमार का श्यामा प्रादि पांच सौ सुन्दर राजकन्याओं के साथ एक दिन में विवाह कर दिया। 1. ज्ञाताधर्मकथा अ०१॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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