________________ सुखविपाक : प्रथम अध्ययन ] [ 117 ३--एवं खलु जम्बू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं हस्थिसीसे नामं नयरे होत्था--रिद्धत्यमियसमिद्धे / तत्थ णं हस्थिसीसस्स नयरस्स बहिया उत्तर-पुरथिमे दिसोभाए एत्थ णं पुष्फकरंडए नामं उज्जाणे होत्था, सम्वोउय-पुष्फ-फल-समिद्धे / तत्थ णं कयवणमालपियस्स जक्खस्स जक्खाययणे होत्था, दिवे० / तत्थ णं हथिसीसे नयरे प्रदीणसत्तू नामं राया होत्था, महया हिमवंत-महंत-मलय-मंदरमहिंदसारे / तस्स णं प्रवीणसत्तुस्स रन्नो धारिणोपामोक्खा देवीसहस्सं ओरोहे यावि होत्था / ३-इस प्रकार निश्चय ही हे जम्बू ! उस काल तथा उस समय में हस्तिशीर्ष नाम का एक बड़ा ऋद्ध-भवनादि के आधिक्य से युक्त, स्तिमित-स्वचक्र-परचक्र के भय से मुक्त, समृद्ध-धन-धान्यादि से परिपूर्ण नगर था। उस नगर के बाहर उत्तरपूर्व दिशा में अर्थात् ईशान कोण में सब ऋतुओं में उत्पन्न होने वाले फल-पुष्पादि से युक्त पुष्पकरण्डक नाम का एक (रमणीय) उद्यान था। उस उद्यान में कृतवनमाल-प्रिय नामक यक्ष का यक्षायतन था / जो दिव्य-प्रधान एवं सुन्दर था / वहां अदीनशत्रु नामक राजा राज्य करता था, जो कि राजारों में हिमालय आदि पर्वतों के समान महान् था। अदीनशत्रु नरेश के अन्तःपुर में धारिणीप्रमुख अर्थात् धारिणी जिनमें प्रधान है, ऐसी एक हजार रानियां थीं। सुबाहु का जन्म : गृहस्थजीवन ४-तए णं सा धारिणी देवी अन्नया कयाइ तंसि तारिसगंसि वासघरंसि (वासभवणंसि) सोहं सुमिणे जहा मेहस्स जम्मणं तह भाणियवं; ' जाव सुबाहुकुमारे अलंभोगसमत्थे यावि होत्था। तए णं सुबाहुकुमारं अम्मापियरो वावत्तरिकलापंडियं जाव अलंभोगसमत्थं वा वि जाणंति, जाणित्ता अम्मापियरो पंच पासायडिसगसयाई कारवेति अब्भुग्गयमूसियपहसियाई। एगं च णं महं भवणं कारेंति एवं जहा महाबलस्स रन्नो णवरं पुष्फचला पामोक्खाणं पंचण्हं रायवरकन्नसयाणं एगदिवसेणं पाणि गिहार्वेति / तहेव पंचसइयो दानो, जाव उपि पासायवरगए फुट्टमाहि जाव विहरइ / ४-तदनन्तर एक समय राजकुलउचित वासभवन में शयन करती हुयी धारिणी देवी ने स्वप्न में सिंह को देखा। जैसे ज्ञाताधर्मकथाङ्ग सूत्र में वर्णित मेघकुमार का जन्म कहा गया है, उसी प्रकार पुत्र सुबाहु के जन्म प्रादि का वर्णन भी जान लेना चाहिये / यावत् सुबाहुकुमार सांसारिक कामभोगों का उपभोग करने में समर्थ हो गया। तब सुबाहुकुमार के माता-पिता ने उसे बहत्तर कलानों में कुशल तथा भोग भोगने में समर्थ हुआ जाना, और जानकर उसके माता-पिता जिस प्रकार भूषणों में मुकुट सर्वोत्तम होता है, उसी प्रकार महलों में उत्तम पांच सौ महलों का निर्माण करवाया जो अत्यन्त ऊंचे, भव्य एवं सुन्दर थे। उन प्रासादों के मध्य में एक विशाल भवन तैयार करवाया, इत्यादि सारा वर्णन महाबल राजा ही की तरह जान लेना चाहिए / महाबल ही की तरह सम्पन्न हुए सुबाहकुमार के विवाह में विशेषता यह है कि-पुष्पचूला प्रमुख पांच सौ श्रेष्ठ राजकन्याओं के साथ एक ही दिन में उसका विवाह कर दिया गया। इसी तरह पांच सौ का प्रीतिदान-दहेज उसे १-ज्ञाताधर्मकथांग, प्रथम अध्ययन / 2 ओ. सूत्र-१४७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org