Book Title: Agam 08 Antkruddasha Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

View full book text
Previous | Next

Page 12
________________ आगम सूत्र- ८, अंगसूत्र- ८, ' अंतकृत् दशा ' वर्ग / अध्ययन / सूत्रांक स्वप्न पाठकों ने बताया कि इस स्वप्न के फल स्वरूप देवकी देवी को एक सुयोग्य पुण्यात्मा पुत्ररत्न की प्राप्ति होगी। माता देवकी भी स्वप्न का फल सूनकर बहुत प्रसन्न हुई । वह देवकी देवी सुखपूर्वक अपने गर्भ का पालन करने लगी । तत्पश्चात् नव मास पूर्ण होने पर माता देवकी ने जातकुसुम समान, रक्तबन्धुजीवक समान, वीरवहुकी समान, लाख के रंग समान विकसीत पारिजात के पुष्प जैसा प्रातःकालिन सूर्य की लालिमा समान, कान्तियुक्त, सर्वजन नयनाभिराम सुकुमाल अंगोवाले यावत् स्वरूपवान एवं गजतुला के समान रक्तवर्ण ऐसे सुकुमाल पुत्र को जन्म दिया । पुत्र का जन्म संस्कार मेघकुमार के समान जानना । "क्योंकि हमारा यह बालक गज के तालु के समान सुकोमल एवं सुन्दर है, अतः हमारे इस बालक का नाम गजसुकुमाल हो ।" इस प्रकार विचार कर उस बालक के माता-पिता ने उसका "गजसुकुमार' यह नाम रखा । शेष वर्णन मेघकुमार के समान समझना । क्रमशः गजसुकुमार भोग भोगने में समर्थ हो गया । उस द्वारका नगरी में सोमिल नामक एक ब्राह्मण रहता था, जो समृद्ध था और ऋग्वेद, यावत् ब्राह्मण और पारिव्राजक सम्बन्धी शास्त्रों में बड़ा निपुण था। उस सोमिल ब्राह्मण के सोमश्री नामकी ब्राह्मणी थी। सोमश्री सुकुमार एवं रूपलावण्य और यौवन से सम्पन्न थी । उस सोमिल ब्राह्मण की पुत्री और सोमश्री ब्राह्मणी की आत्मजा सोमा नाम की कन्या थी, जो सुकोमल यावत् बड़ी रूपवती थी । रूप, आकृति तथा लावण-सौन्दर्य की दृष्टि से उस में कोई दोष नहीं था, अत एव वह उत्तम तथा उत्तम शरीरवाली थी। वह सोमा कन्या अन्यदा किसी दिन स्नान कर यावत् वस्त्रालंकारों से विभूषित हो, बहुत सी कुब्जाओं, यावत् महत्तरिकाओं से घिरी हुई अपने घर से बाहर नीकली । घर से बाहर नीकल कर जहाँ राजमार्ग था, वहाँ आई और राजमार्ग में स्वर्ण की गेंद से खेल खेलने लगी । उस काल और उस समय में अरिहंत अरिष्टनेमि द्वारका नगरी में पधारे । परिषद् धर्मकथा सूनने को आई । उस समय कृष्ण वासुदेव भी भगवान के शुभागमन के समाचार से अवगत हो, स्नान कर, यावत् वस्त्रालंकारों से विभूषित हो गजसुकुमाल कुमार के साथ हाथी के होदे पर आरूढ़ होकर कोरंट पुष्पों की माला सहित छत्र धारण किये हुए, श्वेत चामरों से दोनों ओर से निरन्तर वीज्यमान होते हुए, द्वारका नगरी के मध्य भाग से होकर अर्हत् अरिष्टनेमि के वन्दन के लिए जाते हुए, राज-मार्ग में खेलती हुई उस सोमा कन्या को देखते हैं । सोमा कन्या के रूप लावण्य और कान्ति युक्त यौवन को देखकर कृष्ण वासुदेव अत्यन्त आश्चर्यचकित हुए । तब वह कृष्ण वासुदेव आज्ञाकारी पुरुषों को बुलाते हैं। बुलाकर इस प्रकार कहते हैं-"हे देवानुप्रियों ! तुम सोमिल ब्राह्मण के पास जाओ और उससे इस सोमा कन्या की याचना करो, उसे प्राप्त करो और फिर उसे लेकर कन्याओं के अन्तःपुर में पहुँचा दो यह सोमा कन्या, मेरे छोटे भाई गजसुकुमाल की भार्या होगी। तब आज्ञाकारी पुरुषों ने यावत् वैसा ही किया । तत्पश्चात् कृष्ण वासुदेव द्वारका नगरी के मध्य भाग से होते हुए नीकले, जहाँ सहस्राम्रवन उद्यान था और भगवान अरिष्टनेमि थे, वहाँ आए । यावत् उपासना करने लगे । उस समय भगवान अरिष्टनेमि ने कृष्ण वासुदेव और गजसुकुमार कुमार प्रमुख उस सभा को धर्मोपदेश दिया। प्रभु की अमोघ वाणी सूनने के पश्चात् कृष्ण अपने आवास को लौट गए । तदनन्तर गजसुकुमार कुमार भगवान श्री अरिष्टनेमि के पास धर्मकथा सूनकर विरक्त होकर बोले- भगवन् ! माता-पिता से पूछकर मैं आपके पास दीक्षा ग्रहण करूँगा । मेघकुमार की तरह, विशेष रूप से माता-पिता ने उन्हें महिलावर्ज वंशवृद्धि होने के बाद दीक्षा ग्रहण करने को कहा । तदनन्तर कृष्ण वासुदेव गजसुकुमार के विरक्त होने की बात सूनकर गजसुकुमार के पास आए और आकर उन्होंने गजसुकुमार कुमार का आलिंगन किया, आलिंगन कर गद में बिठाया, गोद में बिठाकर इस प्रकार बोले-'हे देवानुप्रिय ! तुम मेरे सहोदर छोटे भाई हो, इसलिए मेरा कहना है कि इस समय भगवान अरिष्टनेमि के पास मुण्डित होकर अगार से अनगार बनने रूप दीक्षा ग्रहण मत करो। मैं तुमको द्वारका नगरी में बहुत बड़े समारोह के साथ राज्याभिषेक से अभिषिक्त करूँगा ।'' तब गजसुकुमार कुमार कृष्ण वासुदेव द्वारा ऐसा कहे जाने पर मौन रहे। कुछ समय मौन रहने के बाद मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (अंतकृद्दशा)" आगमसूत्र - हिन्द-अनुवाद” Page 12

Loading...

Page Navigation
1 ... 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35