Book Title: Agam 07 Uvasagdasao Angsutt 07 Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan
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अायण-४
३१
तं उचलं जाव वेयणं सम्मं सहामि खमामि तितिक्खामि अहियारोमि एवं मज्झिमं पुत्तं वि, एवं कणीयस्सं पुतं वितए णं ते से पुरिसे ममं अभीयं जाव पासइ पासित्ता ममं चउत्थं पि एवं वयासीभी सुरादेवासमणीयासया जाय जइ णं तुमं अझ सीलाई वयाई येरमणाई पञ्चक्खाणाई पोसहोववासाई न छड्डेसि न मंजेसि तो ते अहं अज्ज सरीरंसि जमगसमगमेव सोलस रोगायंके पक्खिवाम जाव जाणं तुमं अ-दुहट्ट बसट्टे अकाले चैव जीवियाओ ववरोविजसि तए णं अहं तेणं पुरिसेणं एवं वृत्ते समाणे अभीए जाव विहरामि तए णं से पुरिसे ममं अभीयं जाव पासइ पासिता दोघं पितचं पि ममं एवं वयासी तए णं पुरिसेणं दोघं पि तचं पि ममं एवं वुत्तस्स समाणस्स इमेबारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुपज्जित्था - अहो णं इमे पुरिसे अणारिए अणारियबुद्धी अणारियाई पावाई कम्पाई समाचरति जे णं ममं जेनं पुतं साओ गिहाओ नीणेइ
त्ता ममं अग्गओ पाएइ घाएत्ता पंच मंससोल्ले करेइ करेत्ता आदाणभरियंसि कडाहयंसि अहे अत्ता ममं गायं मंसेण य सोणिएण य आइंचइ जे णं ममं मज्झिमं पुत्तं साओ गिहाओ नीणेइ नीता मम अग्गओ पाएइ घाएता पंच मंससोले करेइ करेत्ता आदाण भरियंसि कडाहयंसि अहे अद्दत्ता ममं गायं मंसेण य सोमिएण य आइंचइ जे णं भयं कणीयसं पुतं साओ गिहाओ नी नीता ममं अग्गओ पाएइ पाएता पंच मंससोल्ले करेइ करेत्ता आदाणभरियंसि कडाहयंसि अess अत्ता ममं गायं मंसेणं य सोणिएण य आइंचइ जे वि य इमे सोलस रोगायंका ते विय इच्छइ मम सरीरंसि पक्खिवित्तए तं सेवं खलु ममं एवं पुरिसं गिण्डित्तए ति कट्टु उद्धविए से वि य आगासे उप्पइएमए विच खंभे आसाइए महया महया सद्देणं कोलाहले कए
तए णं सा धन्ना भारिया सुरादेवं समणोबासयं एवं व्यासीनो खलु केइ पुरिसे तव पुतं साओ गिहाओ नीणेइ नीणेत्ता तव अग्गओ घाएइ नो खलु केइ पुरिसे तव मज्झिमं पुत्तं साओ गिहाओ नीणेइ नीणेत्ता तव अग्गओ घाएइ ] नो खलु केइ पुरिसे तव कणीयसं पुत्तं साओ गिहाओ नीणेइ नीणेत्ता तव अग्गओ घाएइ नो खलु देवाणुप्पिया तुम्भं के वि पुरिसे सरीरंसि जमगसमगंसोलस रोगयंके पक्खिवइ एस णं के बि पुरिसे तुमं उवसगं करेइ [एस णं तुमे विदरिस दिट्टे तं णं तुमं इयाणि भग्गवए भग्गनियमे भग्गपोसहे विहरसि तं णं तुमं पिया एयस ठाणस्स आलोएहिं पडिक्कमाहि निंदाहिं गरिहाहि विउट्टाहि बिसोहि अकरणयाए अब्भुवाहि अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्पं पडिवज्राहि तए णं से सुरादेवे समणोवासए घनाए भारियाए तए त्ति एवम विणणं पडिसुणेइ पडिसुणेत्ता तस्स ठाणस्स आलोएइ पडिक्कमइ निंदइ गरिहइ विजट्ट विसोहेइ अकरणयाए अभुइ अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्मं पडिवज तए णं से सुरादेवे समणोवासए पढमं उवासगपडिमं उवसंपजित्ता णं विहरइ तए णं से सुरादेवे समणोवासए पढमं उवासगपडिमं अहासुतं अहाकप्पं अहामागं अहातचं सम्पं काएणं फासेइ पालेइ सोहेइ तीरेइ कित्तेइ आराहेइ तए णं से सुरादेवे समणोवासए दोच्चं उवासगपडिपं एवं तच्चं चउत्थं पंचमं छट्ट सत्तमं अदुमं नवमं दसमं एक्कारसं उवासगपिडमं अहासुत्तं अहाकप्पं अहामग्गं अहातचं सम्पं काएणं फासेइ पालेइ सोहेइ तीरेड कितेइ आराहेइ तए णं से सुरादेवे समणोवासए तेणं ओरालेणं विउलेणं पयत्तेणं पाणहिएणं तवोकम्मेणं सुक्के लुक्खे निम्मंसे अट्ठिचम्मावणद्धे किडिकिडीयाभूए किसे घमणिसंतए जाए तए णं तस्स सुरादेवस्स समणोवासगस्स अण्णदा कदाइ पुव्वरतावस्तकालसभयंसि धम्मजागरियं जागरमाणस्स अयं अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मणोगए संकष्पे
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