Book Title: Agam 07 Uvasagdasao Angsutt 07 Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 46
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अन्अयणं-६ तए णं से देवे नाममुद्दगं च |उत्तरिझगं च पुढविसिलापट्टयाओ गेण्हइ गेण्हित्ता अंतलिक्खपडिदण्णे संखिखिणिवाइं पंचवण्णाई थत्थाई पवर परिहिए तुमं एवं वयासी-हंमो कुंडकोलिया समणोयासया सुंदरी णं देवाणुप्पिया गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स धम्मपन्नती-नत्यि उट्ठाणे इवा जाव नियता सव्वभावा मंगुली णं समणस्स भगवओ महावीरस्स धम्मपन्नती अस्थि उट्ठाणे इ वा जाव अणिवता सब्बमावा तए णं तुमं तं देवं एवं वयासी-जइ णं देवाणुप्पिया सुंदरी णं गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स धम्मपन्नती नत्थि उट्ठाणे इ वा जाव पुरिसक्कार-परक्कमे इ वा नियता सव्वभावा मंगुली णं समणस्स भगवओ महावीरस्स धमपन्नत्ती-अस्थि उट्ठाणे इ वा जाव पुरिसक्कारपरक्कमे इ वा अणियता सव्वभावा तुमे णं देवाणुप्पिया इमा एयास्त्वा दिव्या देविड्ढी दिव्या देवब्रुई किं उठाणेणं जाव पुरिसक्कार-परक्कमेणं उदाहु अनुट्ठाणेणं जाव अपुरिसक्कारपरक्कमे तए णं से देवे तुमं एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पिया मए इमा एयाखवा दिव्या देविड्ढी दिव्वा देवजुई दिव्वे देवाणुभावे किण्णा लद्धे किण्णा पत्ते किण्णा अभिसमण्णा गए किं उद्दाणेणं जाव पुरिसक्कार परक्कमेणं उदाहु अनुट्ठाणेणं जाव अपुरिसक्कार-परक्कम्मेणं लघे पत्ते अभिसमण्णागए तए णं तु तं देवं एवं वयासी जइ णं देवाणुप्पिया तुमे इमा एयारूया दिव्या देविड्ढी दिव्या देवजुई दिव्वे देवाणुभावे अनुट्ठाणेणं जाव अपुरिसक्कारपरक्कमेणं लद्धे पत्ते अभिसमण्णागए जेसिणं जीवाणं नत्थेि उठाणे इवा जाव परक्कमे इ वा ते किं न देवा अह तुडमे इमा एवारूवा दिव्या देविड्ढी दिव्या देवजुई दिव्वे देवाणुभावे उट्ठाणेणं जाव परक्कमेणं लद्धे पत्ते अभिसमण्णागए तो जं वदसि सुंदरी णं गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स धम्मपन्नत्ती-नस्थि उट्ठाणे इ या जाव नियता सव्वभावा मंगुली णं समणस्स भगवओ महावीरस्स धम्मपन्नत्ती-अस्थि उट्ठाणे इ वा जाद अणियत सव्वभावा तं ते पिच्छा तए णं से देवे तुम एवं वुत्ते सपाणे संकिए कंखिए वितिगिच्छासमावण्णे कलुसमावण्णे नो संचाएइ तुम्मे किंचि पमोक्खमाइक्खित्तए नाममुद्दगं च उत्तरिजयं च पुढविसिलापट्टए ठवेइ ठवेत्ता जामेव दिसं पाउन्भूए तामेव दिसं] पडिगए से नूणं कुंडकोलिया अढे समटे हंता अत्यि अज्जोति समणे भगवं महावीरे बहवे समणा निग्गंधा य निगंथीओ य आमंतेता एवं धयासी-जइ ताव अज्जो गिहिणो गिहिम-झावसंता अण्णउत्यिए अद्वेहि य जाव निप्पट्ठ-पसिणवागरणे करेंति सकका पुणाई अजो सपणेहिं निग्गंथेहि दुवालसंग गणिपिडगं अहिजमाणेहिं अण्णउत्थिया अडेहिं य हेऊहि य पसिणेहिं य कारणेहिं य वागरणेहि य निप्पट्ट-पसिणवागरणा करेतए तए णं ते बहवे सममा निगंथा य निग्गंधीओ यतमणस्स भागवओ महावीरस्स तए त्ति एयमढे विगएणं पडिसुणेति तए णं से कुंडकोलिए समणोवासए समण भगवं महावीरं वंदइ नमसइ वंदित्ता नमंसित्ता पसिणाई पुच्छइ पुच्छिता अट्ठमादियइ अट्ठमादित्ता जामेव दिसं पाउड्भूए तामेव दिसंपडिगए सामीबहिया जणवयविहारं विहरइ।३७1-37 (४०) तए णं तस्स कुंडकोलियस्स व९हि [सील-ब्बय-गुण-वेरमण-पच्चक्खाण-पोसहोववासेहिं अप्पाणं] भायेमाणस्स चोद्दस संवच्छराई वीइकूकंताई पन्नरसमस्स संवछरस्स अंतरा वट्टमाणस्स अन्नदा कदाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि धम्मजागरियं जागरमाणस्स इमेयारूवे अज्झथिए चिंतिए पथिए पणोगए संकप्पे समुप्पञ्जित्था एवं खलु अहं कंपिल्लुपुरे बहूर्ण जाव आपुच्छणिज्जे पडिपुच्छणिजे सयस्स वि य णं कुटुंबस्स मेढी जाय सव्वकज्जवड्ढावए तं एतेणं वक्खेवेणं अहं नो संचाएमि समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्मपन्नत्ति उवसंपञ्जित्ता णं For Private And Personal Use Only

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