Book Title: Agam 07 Upasakdasha Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र ७, अंगसूत्र-७, 'उपासकदशा'
अध्ययन/ सूत्रांक अध्ययन-३ - चुलनीपिता सूत्र - २९
उपोद्घातपूर्वक तृतीय अध्ययन का प्रारम्भ यों है - जम्बू ! उस काल-उस समय, वाराणसी नगरी थी। कोष्ठक नामक चैत्य था, राजा जितशत्रु था । वाराणसी नगरी में चुलनीपिता नामक गाथापति था । वह अत्यन्त समृद्ध एवं प्रभावशाली था । उसकी पत्नी का नाम श्यामा था । आठ करोड़ स्वर्ण-मुद्राएं स्थायी पूंजी के रूप में, आठ करोड़ स्वर्ण-मुद्राएं व्यापार में तथा आठ करोड़ स्वर्ण-मुद्राएं घर के वैभव-धन, धान्य आदि में लगी थीं । उसके आठ गोकुल थे । प्रत्येक गोकुल में दस-दस हजार गाएं थीं । गाथापति आनन्द की तरह वह राजा, ऐश्वर्यशाली पुरुष आदि विशिष्ट जनों के सभी प्रकार के आर्यों का सत्परामर्श आदि द्वारा वर्धापक-था। भगवान महावीर पधारे-परीषद् जुड़ी । आनन्द की तरह चुलनीपिता भी घर से नीकला-यावत् श्रावकधर्म स्वीकार किया । गौतम ने जैसे आनन्द के सम्बन्ध में भगवान से प्रश्न किए थे, उसी प्रकार चुलनीपिता के भावी जीवन के सम्बन्ध में भी किए। आगे की घटना गाथापति कामदेव की तरह है । चुलनीपिता पोषधशाला में ब्रह्मचर्य एवं पोषध स्वीकार कर, श्रमण भगवान महावीर के पास अंगीकृत धर्म-प्रज्ञप्ति-धर्म-शिक्षा के अनुरूप उपासना-रत हुआ।
आधी रात के समय श्रमणोपासक चुलनीपिता के समक्ष एक देव प्रकट हुआ । उस देव ने एक तलवार नीकालकर जैसे पिशाच रूपधारी देव ने कामदेव से कहा था, वैसे ही श्रमणोपासक चुलनीपिता को कहा-यदि तुम अपने व्रत नहीं तोड़ोगे, तो मैं आज तुम्हारे बड़े पुत्र को घर से नीकाल लाऊंगा । तुम्हारे आगे उसे मार डालूँगा । उसके तीन मांस-खंड करूँगा, उबलते आद्रहण में खौलाऊंगा । उसके मांस और रक्त से तुम्हारे शरीर को सींचूँगाजिससे तुम आर्तध्यान एवं विकट दुःख से पीड़ित होकर असमय में ही प्राणों से हाथ धो बैठोगे । उस देव द्वारा यों कहे जान पर भी श्रमणोपासक चुलनीपिता निर्भय भाव से धर्मध्यान में स्थित रहा।
जब उस देव ने श्रमणोपासक चुलनीपिता को निर्भय देखा, तो उसने उससे दूसरी बार और फिर तीसरी बार वैसा ही कहा । पर, चुलनीपिता पूर्ववत् निर्भीकता के साथ धर्म-ध्यान में स्थित रहा । देव ने चुलनीपिता को जब इस प्रकार निर्भय देखा तो वह अत्यन्त क्रुद्ध हुआ । वह चुलनीपिता के बड़े पुत्र को उसके घर से उठा लाया
और उसके सामने उसे मार डाला । उसके तीन मांस-खंड़ किए, उबलते पानी से भरी कढ़ाही में खौलाया । उसके मांस और रक्त से चुलनीपिता के शरीर को सींचा । चुलनीपिता ने वह तीव्र वेदना तितिक्षापूर्वक सहन की । देव ने श्रमणोपासक चुलनीपिता को जब यों निर्भीक देखा तो उसने दूसरी बार कहा-मौत को चाहने वाले चुलनीपिता ! यदि तुम अपने व्रत नहीं तोडोगे, तो मैं तुम्हारे मंझले पुत्र को घर से उठा लाऊंगा और उसकी भी हत्या कर डालूँगा। इस पर भी चुलनीपिता जब अविचल रहा तो देव ने वैसा ही किया । उसने तीसरी बार फिर छोटे लड़के के सम्बन्ध में वैसा ही करने को कहा । चुलनीपिता नहीं घबराया । देव ने छोटे लडके के साथ भी वैसा ही किया । चुलनीपिता ने वह तीव्र वेदना तितिक्षापूर्वक सहन की।
देव ने जब श्रमणोपासक चुलनीपिता को इस प्रकार निर्भय देखा तो उसने चौथी बार उससे कहा-मौत को चाहने वाले चुलनीपिता ! यदि तुम अपने व्रत नहीं तोड़ोगे तो मैं तुम्हारे लिए देव और गुरु सदृश पूज
| आर गुरु सदृश पूजनीय, तुम्हारे हितार्थ अत्यन्त दुष्कर कार्य करने वाली माता भद्रा सार्थवाही को घर से लाकर तुम्हारे सामने उसकी हत्या करूँगा, तीन मांस-खंड करूँगा । यावत् जिससे तुम आर्तध्यान एवं विकट दुःख से पीड़ित होकर असमय में ही प्राणों से हाथ धो बैठोगे । उस देव द्वारा यों कहे जान पर भी श्रमणोपासक चुलनीपिता निर्भयता से धर्मध्यान में स्थित रहा। उस देव ने श्रमणोपासक चुलनीपिता को जब निर्भय देखा तो दूसरी बार, तीसरी बार फिर वैसा ही कहाचुलनीपिता ! तुम प्राणों से हाथ धो बैठोगे। सूत्र - ३०
उस देव ने जब दूसरी बार, तीसरी बार ऐसा कहा, तब श्रमणोपासक चुलनीपिता के मन में विचार आयायह पुरुष बड़ा अधम है, नीच-बुद्धि है, नीचतापूर्ण पाप-कार्य करने वाला है, जिसने मेरे बड़े पुत्र को घर से लाकर
मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (उपासकदशा) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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