Book Title: Agam 07 Upasakdasha Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 19
________________ आगम सूत्र ७, अंगसूत्र- ७, 'उपासकदशा ' सूत्र - ३४ अध्ययन- ५ चुल्लशतक - - उपोद्घातपूर्वक पाँचवे अध्ययन का आरम्भ । जम्बू ! उस काल उस समय आलभिका नगरी थी। शंखवन उद्यान था । राजा का नाम जितशत्रु था । चुल्लशतक गाथापति था । वह बड़ा समृद्ध एवं प्रभावशाली था । छह करोड़ स्वर्ण-मुद्राएं उसके खजाने में रखी थीं- यावत् उसके छह गोकुल थे । प्रत्येक गोकुल में दस-दस हजार गायें थीं। उसकी पत्नी का नाम बहुला था। भगवान महावीर पधारे आनन्द की तरह चुल्लशतक ने भी श्रावक-धर्म स्वीकार किया। आगे का घटनाक्रम कामदेव की तरह है। यावत् अंगीकृत धर्म-प्रज्ञप्ति के अनुरूप उपासना-रत हुआ । सूत्र ३५ अध्ययन / सूत्रांक - I एक दिन की बात है, आधी रात के समय चुल्लशतक के समक्ष एक देव प्रकट हुआ । उसने तलवार नीकालकर कहा- अरे श्रमणोपासक चुल्लशतक ! यदि तुम अपने व्रतों का त्याग नहीं करोगे तो मैं आज तुम्हारे ज्येष्ठ पुत्र को घर से उठा लाऊंगा । चुलनीपिता के समान घटित हुआ । देव ने बड़े, मंझले तथा छोटे- तीनों पुत्रों को क्रमशः मारा, मांस-खण्ड किए । मांस और रक्त से चुल्लशतक की देह को छींटा । विशेषता यह कि यहाँ देव ने सात सात खंड किए । तब भी श्रमणोपासक चुल्लशतक निर्भय भाव से उपासनारत रहा । देव ने श्रमणोपासक चुल्लशतक को चौथी बार कहा - अरे श्रमणोपासक चुल्लशतक ! तुम अब भी अपने व्रतों को भंग नहीं करोगे तो मैं खजाने में रखी तुम्हारी छह करोड़ स्वर्ण मुद्राओं, व्यापार में लगी तुम्हारी छह करोड़ स्वर्ण मुद्राओं तथा घर के वैभव और साज-सामान में लगी छह करोड़ स्वर्ण-मुद्राओं को ले आऊंगा । लाकर आलभिका नगरी के शृंगाटक यावत् राजमार्गों में सब तरफ बिखेर दूँगा । जिससे तुम आर्त्तध्यान एवं विकट दुःख से पीड़ित होकर असमय में ही जीवन से हाथ धो बैठोगे उस देव द्वारा यों कहे जाने पर भी श्रमणोपासक चुल्लशतक निर्भीकतापूर्वक अपनी उपासना में लगा रहा । मुनि दीपरत्नसागर कृत्' (उपासकदशा) आगमसूत्र - हिन्द- अनुवाद" जब उस देव ने श्रमणोपासक चुल्लशतक को यों निर्भीक देखा तो उससे दूसरी बार तीसरी बार फिर वैसा ही कहा और धमकाया- अरे ! प्राण खो बैठोगे ! उस देव ने जब दूसरी बार, तीसरी बार श्रमणोपासक चुल्लशतक को ऐसा कहा, तो उसके मन में चुलनीपिता की तरह विचार आया, इस अधम पुरुष ने मेरे बड़े, मझले और छोटेतीनों पुत्रों को बारी-बारी से मार कर, उनके मांस और रक्त से सींचा । अब यह मेरी खजाने में रखी छह करोड़ सुवर्ण-मुद्राओं, यावत् उन्हें आलभिका नगरी के तिकोने आदि स्थानों में बिखेर देखा चाहता है । इसलिए, मेरे लिए यही श्रेयस्कर है कि मैं इस पुरुष को पकड़ लूँ । यों सोचकर वह उसे पकड़ने के लिए सुरादेव की तरह दौड़ा। आगे सुरादेव के समान घटित हुआ था। सुरादेव की पत्नी की तरह उसकी पत्नी ने भी उससे सब पूछा । उसने सारी बात बतलाई। आगे की घटना चुलनीपिता की तरह है। देह त्याग कर चुल्लशतक सौधर्म देवलोक में अरुणसिद्ध विमान में देव के रूप में उत्पन्न हुआ । वहाँ उसकी आयुस्थिति चार पल्योपम की बतलाई गई है । यावत् वह महाविदेह क्षेत्र में सिद्ध होगा । । अध्ययन-५ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण Page 19

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