Book Title: Agam 07 Upasakdasha Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
View full book text
________________
आगम सूत्र ७, अंगसूत्र- ७, 'उपासकदशा '
अध्ययन / सूत्रांक गाथापति की पत्नी रेवती बछड़ों के मांस के शूलक- सलाखों पर सेके हुए टुकड़ों आदि का तथा मदिरा का लोलुप भाव से सेवन करती हुई रहने लगी ।
सूत्र ५२
श्रमणोपासक महाशतक को विविध प्रकार के व्रतों, नियमों द्वारा आत्मभावित होते हुए चौदह वर्ष व्यतीत हो गए । आनन्द आदि की तरह उसने भी ज्येष्ठ पुत्र को अपनी जगह स्थापित किया - पारिवारिक एवं सामाजिक उत्तरदायित्व बड़े पुत्र को सौंपा तथा स्वयं पोषधशाला में धर्माराधना में निरत रहने लगा । एक दिन गाथापति की पत्नी रेवती शराब के नशे में उन्मत्त, लड़खड़ाती हुई, बाल बिखेरे, बार-बार अपना उत्तरीय- फेंकती हुई, पोषधशाला में जहाँ श्रमणोपासक महाशतक था, आई बार-बार मोह तथा उन्माद जनक, कामोद्दीपक कटाक्ष आदि हाव भाव प्रदर्शित करती हुई श्रमणोपासक महाशतक से बोली- धर्म, पुण्य, स्वर्ग तथा मोक्ष की कामना, ईच्छा एवं उत्कंठा रखने वाले श्रमणोपासक महाशतक ! तुम मेरे साथ मनुष्य जीवन के विपुल विषय सुख नहीं भोगते, देवानुप्रिय ! तुम धर्म, पुण्य, स्वर्ग तथा मोक्ष से क्या पाओगे
श्रमणोपासक महाशतक ने अपनी पत्नी रेवती की इस बात को कोई आदर नहीं दिया और न उस पर ध्यान ही दिया। वह मौन भाव से धर्माराधना में लगा रहा। उसकी पत्नी रेवती ने दूसरी बार तीसरी बार फिर वैसा कहा । पर वह उसी प्रकार अपनी पत्नी रेवती के कथन को आदर न देता हुआ, उस पर ध्यान न देता हुआ धर्मध्यान में निरत रहा । यों श्रमणोपासक महाशतक द्वारा आदर न दिए जाने पर, ध्यान न दिए जाने पर उसकी पत्नी रेवती, जिस दिशा से आई थी उसी दिशा की ओर लौट गई ।
सूत्र - ५३
I
श्रमणोपासक महाशतक ने पहली उपासकप्रतिमा स्वीकार की । यों पहली से लेकर क्रमशः ग्यारहवीं तक सभी प्रतिमाओं की शास्त्रोक्त विधि से आराधना की । उग्र तपश्चरण से श्रमणोपासक के शरीर में इतनी कृशता-आ गई की नाडियाँ दीखने लगीं । एक दिन अर्द्ध रात्रि के समय धर्म- जागरण- करते हुए आनन्द की तरह श्रमणोपासक महाशतक के मन में विचार उत्पन्न हुआ उग्र तपश्चरण द्वारा मेरा शरीर अत्यन्त कृश हो गया है, आदि । उसने अन्तिम मारणान्तिक संलेखना स्वीकार की, खान-पान का परित्याग किया अनशन स्वीकार किया, की मृत्यु कामना न करता हुआ, वह आराधना में लीन हो गया ।
तत्पश्चात् श्रमणोपासक महाशतक को शुभ अध्यवसाय के कारण अवधिज्ञानावरण कर्म के क्षयोपशम से अवधिज्ञान उत्पन्न हो गया । फलतः वह पूर्व, पश्चिम तथा दक्षिण दिशा में एक-एक हजार योजन तक का लवण समुद्र का क्षेत्र, उत्तर दिशा में हिमवान् वर्षधर पर्वत तक क्षेत्र तथा अधोलोक में प्रथम नारकभूमि रत्नप्रभा में चौरासी हजार वर्ष की स्थिति वाले लोलुपाच्युत नामक नरक तक जानने-देखने लगा ।
सूत्र - ५४
-
तत्पश्चात् एक दिन महाशतक गाथापति की पत्नी रेवती शराब के नशे में उन्मत्त बार-बार अपना उत्तरीय फेंकती हुई पोषधशालामें जहाँ श्रमणोपासक महाशतक था, आई महाशतक से पहले की तरह बोली। दूसरी बार, तीसरी बार, फिर वैसा ही कहा। अपनी पत्नी रेवती द्वारा दूसरी बार, तीसरी बार कहने पर श्रमणोपासक महाशतक को क्रोध आ गया । उसने अवधिज्ञान का उपयोग लगाया । अवधिज्ञान द्वारा जानकर उसने अपनी पत्नी रेवती से कहा- मौत को चाहने वाली रेवती! तू सात रात के अन्दर अलसक नामक रोग से पीड़ित होकर
- व्यथित, दुःखित तथा विवश होती हुई आयु-काल पूरा होने पर अशान्तिपूर्वक मरकर अधोलोक में प्रथम नारक भूमि रत्नप्रभा में लोलुपाच्युत नामक नरक में चौरासी हजार वर्ष के आयुष्य वाले नैरयिकों में उत्पन्न होगी । श्रमणोपासक महाशतक के यों कहने पर रेवती अपने आप से कहने लगी- श्रमणोपासक महाशतक मुझ पर रुष्ट हो गया है, मेरे प्रति उसमें दुर्भावना उत्पन्न हो गई है, वह मेरा बूरा चाहता है, न मालूम मैं किस बूरी मौत से मार डाली जाऊं । यों सोचकर वह भयभीत, त्रस्त, व्यथित, उद्विग्न होकर, डरती - डरती धीरे-धीरे वहाँ से नीकली, घर
मुनि दीपरत्नसागर कृत् (उपासकदशा) आगमसूत्र हिन्द- अनुवाद"
"
Page 28