Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Mool Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Devardhigani Kshamashaman
Publisher: Global Jain Agam Mission

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Page 598
________________ भगवई सुत्त ७९ ८४ सामाइयसंजए णं भंते ! कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहण्णेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं देसूणएहिं णवहिं वासेहिं ऊणिया पुव्वकोडी । एवं छेओवट्ठावणिए वि | परिहारविसुद्धिए जहण्णेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं देसूणएहिं एगुणतीसाए वासेहिं ऊणिया पुव्वकोडी । सुहमसंपराए जहा णियंठे | अहक्खाए जहा सामाइयसंजए | सामाइयसंजया णं भंते ! कालओ केवचिरं होंति ? गोयमा ! सव्वद्धं । छेओवट्ठावणियसंजया णं भंते ! पुच्छा ? गोयमा ! जहण्णेणं अड्ढाइज्जाइं वाससयाइं, उक्कोसेणं पण्णासं सागरोवमकोडि- सयसहस्साइं । परिहाराविसुद्धियसंजया णं भंते ! पुच्छा ? गोयमा ! जहण्णेणं देसूणाई दो वाससयाई उक्कोसेणं देसूणाओ दो पुव्वकोडीओ । सुहमसंपरायसंजया णं भंते ! पुच्छा ? गोयमा ! जहण्णेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं अंतोमुहुत्तं | अहक्खायसंजया जहा सामाइयसंजया । सामाइयसंजयस्स णं भंते ! केवइयं कालं अंतरं होइ ? गोयमा ! जहा पुलागस्स। एवं जाव अहक्खायसंजयस्स | सामाइयसंजयाणं भंते ! पुच्छा ? गोयमा ! णत्थि अंतरं । छेओवट्ठावणियाणं ते! पुच्छा ? गोयमा ! जहण्णेणं तेवहिँ वाससहस्साइं, उक्कोसेणं अट्ठारस सागरोवमकोडाकोडीओ । परिहारविसुद्धियाणं भंते ! पुच्छा ? गोयमा ! जहण्णेणं चउरासीइं वाससहस्साइं, उक्कोसेणं अट्ठारस सागरोवमकोडाकोडीओ | सुहमसंपरायाणं जहा णियंठाणं । अहक्खाय- संजयाणं जहा सामाइयसंजयाणं । सामाइयसंजयस्स णं भंते ! कइ समुग्घाया पण्णत्ता ? गोयमा ! छ समुग्घाया पण्णत्ताजहा कसायकुसीलस्स | एवं छेओवट्ठावणियस्स वि । परिहारविसुद्धियस्स जहा पुलागस्स | रायस्स जहा णियंठस्स | अहक्खायस्स जहा सिणायस्स | सामाइयसंजए णं भंते! लोगस्स किं संखेज्जइभागे होज्जा, असंखेज्जइभागे होज्जा, पुच्छा ? गोयमा! णो संखेज्जइ भागे होज्जा, एवं जहा पुलाए । एवं जाव सुहुमसंपराए । अहक्खायसंजए जहा सिणाए । सामाइयसंजए णं भंते ! लोगस्स किं संखेज्जइभागं फुसइ, पुच्छा ? गोयमा ! जहेव होज्जा तहेव फुसइ । सामाइयसंजए णं भंते ! कयरम्मि भावे होज्जा ? गोयमा ! खओवसमिए भावे होज्जा । एवं जाव सुहमसंपराए । अहक्खायसंजए णं भंते ! पुच्छा ? गोयमा ! उवसमिए वा खइए वा भावे होज्जा। सामाइयसंजया णं भंते ! एगसमएणं केवइया होज्जा ? गोयमा ! जहा कसायकुसीला तहेव णिरवसेसं भाणियव्वं । ८७ 588

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