Book Title: Agam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Samvao Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati
View full book text
________________
पइण्णगसमवाओ
बालुगा-पत्थडा सुहफासा सस्सिरीयरूवा पासाईया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा ।। केवइया णं भंते ! वेमाणियावासा पण्णता? गोयमा! इमीसे गं रयणप्पभाए पुढवीए बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ उड्ढं चंदिम-सूरिय-गहगण-नक्खत्त-तारारूवाणं वीइव इत्ता बहूणि जोयणाणि बहुणि जोयणसयाणि बहूणि जोयणसहस्साणि बहूणि जोयणसयसहस्साणि बहूओ जोयणकोडीओ बहूओ जोयणकोडाकोडीओ असंखेज्जाओ जोयणकोडाकोडीओ उड्ढं दुरं वीइवइत्ता, एत्थ णं वेमाणियाणं देवाणं सोहम्मीसाण-सणंकुमारमाहिंद-बंभ-लंतग-सुक्क-सहस्सार-आणय-पाणय-आरणच्चुएस गेवेज्जमणुत्तरेस य चउरासीई विमाणावाससयसहस्सा सत्ताणउई सहस्सा तेवीसं च विमाणा भवंतीति मक्खाया। ते ण विमाणा अच्चिमालिप्पभा भासरासिवण्णाभा अरया नीरया णिम्मला वितिमिरा विसुद्धा सव्वरयणामया अच्छा सण्हा लण्हा' घटा मद्रा णिप्पंका णिक्कंकडच्छाया सप्पभा समिरीया' सउज्जोया पासाईया दरिस
णिज्जा अभिरूवा पडिरूवा। १५१. सोहम्मे णं भंते ! कप्पे केवइया विमाणावासा पण्णता?
गोयमा ! बत्तीसं विमाणावाससयसहस्सा पण्णत्ता ॥ १५२. एवं ईसाणाइसु--अट्ठावीसं बारस अट्ट चत्तारि-एयाई सयसहस्साइं, पण्णासं
चत्तालीसं छ--एयाई सहस्साइं, आणए पाणए चत्तारि, आरणच्चुए तिण्णि
एयाणि सयाणि । एवं गाहाहि भाणियव्वसंगहणी-गाहा
बत्तीसट्ठावीसा, बारस अट्ठ चउरो सयसहस्सा। पण्णा चत्तालीसा, छच्च सहस्सा सहस्सारे ॥१॥ आणयपाणयकप्पे, चत्तारि सयाऽऽरणच्चुए तिन्नि । सत्त विमाणसयाई, चउसुवि एएसु कप्पेसु ॥२॥ एक्कारसुत्तरं' हेट्ठिमेसु सत्तुत्तरं च मज्झिमए ।
सयमेगं उवरिमए, पंचेव अणुत्तरविमाणा ।।३।। ठिइ-पदं १५३. नेरइयाणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता?
१. वेमाणियाणं (क)। २. सत्ताणउई च (ग)। ३. °वष्णप्पभा (क)। ४. X(क)।
५. समिरिया (क, ख)! ६. पडिरूवा सूरूवा (क)। ७. ° सुत्तरसय (ग)।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267