Book Title: Agam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Samvao Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati
View full book text
________________
एवं जइ मणस्स किंगभवक्कंतिय संमृच्छिम गो गब्भवक्कंतिय णो समुच्छिम ज इ गम्भवक्कंतिय किं कम्मभूमग अकम्मभूमग गो कम्मभूमग णो अकम्मभूमग जइ कम्मभूमग कि संखेज्जवासाउय असंखेज्जवासाउय गो संखेज्जवासाउय णो असंखेज्जवासाउय जइ संखेज्जवासाउय किं पज्जत्तय अपज्जत्तय गोयमा पज्जत्तय णो अपज्जत्तय जइ पज्जत्तय कि सम्म मिच्छ सम्मामिच्छ गो सम्मद्दिट्रिनो मिच्छदिछि नो सम्मामिच्छदिट्टि जइ सम्मदिदि कि संजतं असंजत संजतासंजत गो संजय णो असंजय णो संजतासंजत जति संजय किं पमत्तसंजय अपमत्तसंजय गो पमत्तसंजय णो अपमत्तसं जइ पमत्तसंजय कि इडिपत्त अणिडिपत्त गो इडिपत्त नो अनिविपत्त वयणावि भतियव्वा
प०१६४ एवं थेरे वि अज्जसुहम्मे
१००१५ एवं दक्खिणिल्लाओ उत्तरे
६६३ एवं दिवसोऽवि नायब्बो
१२।६ एवं धणू नालिया जुगे अक्खे मुसले वि ६६।४-८ एवं पंचवि
२७११ एवं पंचवि इंदिया
२११ एवं पंचवि रसा
२२१६ एवं पदुप्पण्णेवि अणागएवि एवं मंदरस्स पच्चस्थिमिल्लिाओ चरिमंताओ संखस्स पुरथिमिल्ले च
८७।३ एवं माणे माया लोभे
१६।२२१।२ एवं संतिस्सवि
६०१३ एवं सगरे वि राया चाउरंतचक्कवट्टी एकसरि पुव्व जाव पव्वदाए कंतं वण्णं लेसं जाव णंदुत्तरवडेंस
१५॥१३ कालगए जाव सव्वदुक्खप्पहीणे
८६२ कालगयाई जीव सव्वदुक्ख०
प०६३ कीयं आहट्ट जाव अभिक्खणं
२१११
प० १६४ १००१४ ६६२ १२।८
५२ पण्य० १५१ ठा० १.७८-१२
प० १३२
८७१ अस्य पूतिः अत्रैव
६०१२
७१।३ ३३२१ ८६१
८६१ दसा० २
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267