Book Title: Agam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Samvao Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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पइण्णगसमवाओ
१४३. सत्तमाए ण पुढवीए' 'केवइयं ओगाहेत्ता केवइया णिरया पण्णत्ता ?
गोयमा! सत्तमाए पुढवीए अछुत्तरजोयणसयसहस्साई बाहल्लाए उवरिं अद्धतेवण्णं जोयणसहस्साई ओगाहेत्ता हेट्ठा वि अद्धतेवण्णं जोयणसहस्साई वज्जेत्ता मज्झे तिसु जोयणसहस्सेसु, एत्थ णं सत्तमाए पुढवीए नेरइयाणं पंच अणुत्तरा महइमहालया महानिरया पण्णत्ता, तं जहा--काले महाकाले रोरुए महारोरुए अप्पइट्ठाणे नामं पंचमए । ते णं न रया' वट्टे' य तंसा य अहे खुरप्पसंठाण
नंयारतमसा ववगयगह-चंद-सूर-णक्खत्त-जोइसपहा मेदवसा-पय-रुहिर-मंसचिक्खिल्ललित्ताण लेवणतला असुई बीसा परमभिगंधा काऊअगणिवण्णाभा कक्खडफासा दुरहियासा° असुभा नरगा असुभाओ नरएस
वेयणाओ। १४४. केवइया णं भंते ! असुरकुमारावासा पण्णत्ता?
गोयमा ! इमोसे णं रयणप्पभाए पुढवीए असीउत्तरजोयणसयसहस्सबाहल्लाए उरि एगं जोयणसहस्सं ओगाहेत्ता हेट्ठा चेगं जोयणसहस्सं वज्जेत्ता मज्झे अट्ठहत्तरे जोयणसयसहस्से, एत्थ णं रयणप्पभाए पुढवीए चउसद्धिं असुरकुमारावाससयसहस्सा पण्णत्ता । ते णं भवणा बाहिं वट्टा अंतो चउरंसा अहे पोक्खरकण्णिया-संठाण-संठिया उक्किण्णंतर-विपुल-गंभीर-खात-फलिया अट्टालयचरिय-दारगोउर-कवाड-तोरण-पडिदुवार-देसभागा जंत-मुसल-मुसुंढि-सतग्घिपरिवारिया अउज्झा अडयाल-कोट्ठय-रइया अडयाल-कय-वणमाला लाउल्लोइयमहिया गोसीस-सरसरत्तचंदण-दर-दिग्णपंचंगुलितला कालागुरु-पवरकंदुरुक्कतुरुक्क-उज्झत-धूव-मघमत-गंधुद्धयाभिरामा 'सुगंधि-वरगंध-गंधिया'• गंधवट्टियाभूया अच्छा सोहा लण्हा घट्ठा मट्ठा नीरया णिम्मला वितिमिरा विसद्धा
सप्पभा समिरीया सउज्जोया पासाईया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा ॥ १४५. एवं 'जस्स जं"कमती तं तस्स, जं-जं गाहाहि भणियं तह चेव वण्णओ
मस्ति । अत्र पूर्ववणितात् किञ्चिविशेषो वृत्तः शेषास्त्र्यस्त्रा इति (वृ)। विद्यते । प्रतिषु संग्रहगाथा एकत्रैव ४. अ) (क, ग)। विद्यन्ते । किन्तु तेन क्रमेण पाठस्य ५. उवरि (क, ग)। जटिलता जायते । तेनास्माभिर्गाथानां यथा- ६. चउरय (ग, वृपा)। वश्यकमायोजना कृता । भगवती (११२१२) ७. मुसंढि (ग)। सूत्रेष्वेवं विभाति ।
८. अवोज्झा (क); अजोहाणि (ग)। १. सं० पा०–सत्तमाए णं पुढवीए पुच्छा । १. गंधुद्धराभि (ख, वृ)। २. णिरया (क)।
१०. सुगंधवरगंधिया (क)। ३. बद्रा (क); 'वटे य तंसा य' ति मध्यमो ११. जं जस्स (3)।
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