Book Title: Agam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Samvao Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 225
________________ ११६ २०५८ २।७२ २।२४ २१५८ अपत्ते जाव अंतरा १११० अपत्ते जाव सेयंसि १६ अप्पडिविरया जाव जे यावण्णे २२७१ अभिगयजीवजीवे जाव विहरइ ७.४ अवहरइ जाव समणुजाणइ २।२५,२६,३० अहम्मिया जाव दुप्पडियाणंदा जाव सव्वाओ परिगहाओ ७२२ अहावर पुरक्खायं इहेगइया सत्ता तेहिं चेव (१) पुढविजोणिएहिं रुक्खेहि (२) रुक्खजोणिएहि रुक्खेहि (३) रुक्खजोणिएहिं मूलेहि जाव बीएहि (४) रुक्खजोणिएहिं अज्झारोहेहि (५) अज्झोरुहजोणिएहिं अज्झोरहेहि (६) अज्झोरुहजोणिएहिं मूलेहिं जाव बीएहिं (७) पुढविजोणिएहि तणेहिं (८) तण जोणिएहिं तणेहिं (६) तणजोणिएहि मूर्ताह जाव बीएहिं (१०-१२) एवं ओसहीहिं वि तिण्णि आलावगा' (१३-१५) एवं हरिएहि वि तिण्णि आलावगा (१६) पुढविजोणिएहि वि आएहिं जाव कूरेहिं । (१) उदगजोणिएहिं रुक्षेहि (२) रुक्खजोणिएहिं स्वखेहि (३) रुक्ख जोणिएहि मूलेहिं जाव बीएहि (४-६) एवं अज्झोरहेहिं वि तिणि (७-६) तणेहिं वि तिषिण आलावगा (१०-१२) ओसहीहि वि तिषिण (१३-१५) हरिएहि वि तिषिण (१६) उदगजोणिएहिं उदएहिं अवएहिं जाव पुक्खलच्छिभएहि तसपाणत्ताए बिउटति । ते जीवा तेसिं पुढविजोणियाणं, उदगजोणियाणं रुक्खजोणियाणं अज्झोरुहजोणियाणं तणजोणियाणं ओसहिजोणियाणं १. येषां चत्वार इचत्वार पालापकास्तेषां तुतीय पालापको न ग्राह्यः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267