Book Title: Agam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Samvao Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 234
________________ २० २१४६२ ३१३२२ ३१४७५ २।४६१ ३१३२१ ३१४७४ एवं ६३८ ६।३५ २।१० ३।४२२ ४११६६-२१० २।८४ एवं अग्गिच्चावि एवं रिट्ठावि ६.३६,३७ एवं अजोगिभवत्थकेवलणाणे वि २।६१ एवं अणुण्णवेत्तए उवाइणित्तए ३१४२३,४२४ एवं अजरूवे अज्जमणे अज्जसंकप्पे अज्जपण्णे अज्जदिट्ठी अज्जसीलाचारे अज्जववहारे अज्जपरक्कमे अज्ज वित्ती अज्जजाती अज्जभासी अज्जओभासी अज्जसंवी अज्जपरियाए अज्जपरियाले एवं सत्तरस्स आलावगा जहा दीणेण भणिया तहा अजेण वि भाणियब्वा । ४।२१३-२२७ एवं अणभिग्गहितमिच्छादसणे वि रा८५ एवं असंकिलेसे वि एवमतिक्कमे वि वइक्कमे वि अइयारे वि अणायारे वि ३।४३६-४४३ एवं असंयमो वि भाणितव्यो १०१२३ एवं आगंता णामेगे सुमणे भवति ३ एमीतेगे सु३ एस्सामीति एगे सुमणे भवति ३।१९५-१९७ एव उवसंपया एवं विजहणा ३।३५३,३५४ एवं एएणं अभिलावेणं-- संगहणी-गाहा गंता य अगता य, आगंता खलु तहा अणागंता । चिद्वित्तमचिद्वित्ता', णिसितिता' चेव णो चेव ॥१॥ हता य अहंता य, छिदित्ता खलु तहा अछिदित्ता। बुतित्ता अबुत्तिता, भासित्ता चेव णो चेव ।।२।। 'दच्चा य अदच्चा" य, जित्ता खलु तहा अभुंजित्ता। लभित्ता अलभित्ता, पिबइत्ता' चेव णो चेव ॥३॥ ३१४३८ १०१२२ ३।१८६-१६१ ३२३५१ १. चिट्टित्त न चिट्ठित्ता (क) । २. णिसिंतत्ता (क, ख)। ३. दत्ता प्रदत्ता (क) ! ४. पिवइत्ता (क, ग); पिइता (क्व) । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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