Book Title: Agam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Samvao Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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पइण्णगसमवाओ
९५१
असंजल' जिणवसहं, वंदे य अणंतयं अमियणाणि । उवसंतं च धुयरयं, वंदे खलु गुत्तिसेणं च ॥३॥ अतिपासं च सपासं, देवेसरवंदियं च मरुदेवं। णिव्वाणगयं च धर', खीणदुहं सामकोट्ठ' च ॥४॥ जियरायमम्गिसेणं, वंदे खीणरयमग्गिउत्त च।
वोक्कसियपेज्जदोस, च वारिसेणं गयं सिद्धि ॥५॥ भावि-कुलगर-पदं २४६. जंबुद्दीवे णं दीवे भरहे वासे आगमेस्साए उस्सप्पिणीए सत्त कुलकरा भविस्संति,
ते जहा
मित्तवाहणे सुभूमे य, सुप्पभे य सयंपभे।
दत्ते सुहमे सुबंधू य, आगमेस्साण होक्खति' ॥१२॥ २५०. जंबुद्दीवे णं दीवे भरहे वासे आगमिस्साए ओसप्पिणीए दस कुलगरा भविस्संति,
तं जहा
विमलवाहणे सीमंकरे, सीमंधरे खेमंकरे खेमंधरे।
दढधणू दसधणू, सयधणू पडिसूई संमुइत्ति ॥१॥ भावि-तिस्थगर-पदं २५१. जंबुद्दीवे णं दीवे भरहे वासे आगमिस्साए उस्सप्पिणीए चउवीसं तित्थगरा भविस्संति, तं जहा
महापउमे सूरदेवे, सुपासे य सयंपभे । सवाणुभूई अरहा, देवउत्ते" य होक्खति ॥१॥ उदए पेढालपुत्ते य, पोट्टिले सतएति" य । मुणिसुव्वए य अरहा, सव्वभावविदू जिणे ॥२॥ अममे णिक्कसाए य, निप्पुलाए य निम्ममे। चित्तउत्ते समाही य, आगमिस्साए होक्खइ ।।३।। संवरे अणियट्टी य, विजए विमलेति य। देवोववाए अरहा, अणंतविजए ति य ॥४॥
१. सयंजलं (वृपा)। २. सीहसेणं (वृपा)। ३. वर (ग)। ४. सामकोहं (ग)। ५. सित्तवाहणे (ग)1 ६. होक्खंति (ग)।
७. उस्सप्पिणीए एरवए वासे (क्व) । 5. अट्टधणु (ग)। ६. सुमइत्ति (क्व)। १०. देवस्सुए (क्व)। ११. सत्तकित्ति (क्व)।
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