Book Title: Agam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Part 04
Author(s): Jethalal Haribhai
Publisher: Jain Dharm Prasarak Sabha

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Page 7
________________ प्रस्तावना हे एकांत सुखाभिलाषी भव्य मुमुक्षुजनो ! आ वृत्तांत सुप्रसिद्ध ज छे के-आ अनाद्यनंत चतुर्गतिरूप संसारचक्रमा भ्रमण करता प्राणीओने मोक्षसुख मेळ्ववानी अभिलाषा छतां पण शुभाशुभ कर्मनो सर्वथा क्षय करी, केवळज्ञाननी प्राप्ति करी मोक्षसुखने आपवामां एकांत कारणरूप ज्ञान, दर्शन अने चारित्रमय सन्मार्गमा प्रवृत्त थया नथी, अने तेथी करीने ज | तेओ अद्यापि भवांत करी शक्या नथी. ते भवांत करवानो उपाय ए ज छे के-वीतराग देव, पंच महाव्रतधारी गुरु अने आप्तपुरुषप्ररूपित धर्म आ वणर्नु सेवन करवं. तेम करवाथी ज मोक्षसुख प्राप्त करी शकाय छे. जो के आ देव, गुरु अने धर्म त्रणे परस्पर सापेक्ष होवाथी एक ज स्वरूप छे एटले के-वीतराग देवना ज शिष्यो पंच महाव्रतधारी गुरु छे अने धर्म पण वीतरागेज कह्यो छे तथा तेनु पालन पण सद्गुरु ज करे छे, तेथी ज्यां एकनो विषय चालतो होय त्यां बीजा वेनो विषय पण अवांतरपणे | आवी ज जाय छे, तोपण अहीं वीतरागप्ररूपित धमनो. मुख्य विषय होवाथी ते संबंधमां कांइक लखवु उचित धायें छे... .. दुर्गतिमां पडता जीवोने जे धारण करे-अटकावे ते धर्म कहेवाय छे. आ धर्मना मुख्य चार भेद छे-दान, शील, तप अने भाव. आवा धर्मनी प्ररूपणा करनार एक वीतराग देव ज छे. तेओ प्रथम गणधरोनी पासे मात्र " उपन्ने वा, विगमे वा, धुवे | वा" ए त्रिपदीने ज कहे छे. ते उपरथी ते गणधरो द्वादशांगी रचे छे, तेमा मुख्यत्वे करीने ज्ञान, दर्शन अने चारित्र ए त्रण, जः। मोक्षना उपाय तरीके होवाथी तेनुं ज वर्णन करवामां आवे छे अने तेनी ज प्राप्तिने माटे द्रव्यानुयोग, गणितानुयोग, चरणकरणा

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