Book Title: Agam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Part 04
Author(s): Jethalal Haribhai
Publisher: Jain Dharm Prasarak Sabha

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Page 11
________________ श्री समवायांग सूत्रांतर्गत विषयानुक्रम. श्रमण भगवान महावीरस्वामीए प्राणीओना हितने माटे गणधरोनी समक्ष द्वादशांगी कही छे, तेनां नाम आ प्रमाणे - आचारांग १, सुकृतांग २, स्थानांग ३, समवायांग ४, विवाहप्रज्ञप्ति ( भगवती ) ५, ज्ञाताधर्मकथा ६, उपासकदशा ७, अंतकृतदशा ८, अनुत्तरोपपातिकदशा ९, प्रश्नव्याकरण १०, विपाकश्रुत ११ अने दृष्टिवाद १२. आमांना चोथा समवायांग सूत्रमां स्थानांगनी जेम एक, वे, त्रण विगेरे स्थानो आपेला छे. स्थानांगमां मात्र दश ज स्थानो सविस्तर आप्यां छे, अने आ सूत्रमां तो एकथी सो सुधी, पछी दोढसो, बसो, अढीसो विगेरे पांचसो सुधी, पछी छ सो, सात सो विगेरे एक हजार सुधी, पछी अग्यार सो, पछी वे हजार, त्रण हजार विगेरे दश हजार सुधी, पछी लाख, वे लाख विगेरे दश लाख सुधी, (तेमां नव लाखने ठेकाणे नव हजारनुं स्थान आप्युं छे ), पछी एक करोड, कोटाकोटि विगेरे अति विस्तारथी स्थानो आपला छे. त्यारपछी द्वादशांगीनुं स्वरूप तथा ते बारे अंगनो सविस्तर परिचय, दृष्टिवादना परिचयमां चौद पूर्वनुं स्वरूप पण विस्तारथी आप्युं छे. त्यारपछी जीव अने अजीव एम वे राशि, देव, नारकी विगेरेनुं स्वरूप, शरीर, ज्ञान, वेदना, आहार, आयु, विरहकाळ, संघयण, संस्थान विगेरे, त्रिकाळ संबंधी तीर्थंकरो, चक्रवर्त्ती, वासुदेव, बळदेव, प्रतिवासुदेव विगेरे घणी हकीकत आ सूत्रमां आपी छे. दरेक स्थानमां नीचे प्रमाणेना पदार्थोंनुं स्वरूप आप्युं छे ( १ ) प्रथम समवायमां आत्मा, अनात्मा, दंड, अदंड,

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