Book Title: Agam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Part 04
Author(s): Jethalal Haribhai
Publisher: Jain Dharm Prasarak Sabha

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Page 12
________________ भी विषयानु क्रम॥ समवायाङ्ग सूत्र । पोएं अंग क्रिया,अक्रिया, लोक, अलोक, धर्म, अधर्म,पुण्य, पाप, बंध, मोक्ष, | कया छे, पूर्वाफाल्गुनी, उत्तराफाल्गुनी, पूर्वाभाद्रपद अने उत्तरा- | आश्रव, संवर, वेदना अने निर्जरा आ अढार पदार्थो एक एक कया भाद्रपदए चार नक्षत्रो बवे तारावाळा कह्या छे, केटलाक देवो, छे. त्यारपछी जंबूद्वीप एक लाख योजननो, एज प्रमाणे नारकी जीवोअने मनुष्य तथा तिर्यंचो वे पल्योपमनी स्थितिवाळा अप्रतिष्ठान नामनो नरकावास, पालक विमान अने सर्वार्थ- ने देवो तथा नारकी जीवो जे वे सागरोपमनी स्थितिवाना सिद्ध विमान ए सर्वे एक एक लाख योजनना कह्या छ, होय छे ते कह्या छे. वे सागरोपमनी स्थितिवाळा देवो वे त्यारपछी आर्द्रा, चित्रा अने स्वाति आ त्रण नक्षत्रो एक एक पखवाडीए श्वास ले छे अने वे हजार वर्षे आहार इच्छे छे, . तारावाळा कह्या छे, त्यारपछी स्थितिने आश्रीने एक पल्यो- केटलाक भव्य जीवो बे भववडे सिद्ध थवाना होय छे. पम ने एक सागरोपम स्थिति देवमां ने नारकीमा कोनी (३)त्रीजामांत्रण दंड, त्रण गुप्ति,त्रण शल्य,त्रण गौरव कोनी छे ? ते जणाव्यु छे, तेम ज एक पल्योपमनी स्थिति- अने प्रण विराधना कही छे, मृगशीर्ष, पुष्य, ज्येष्ठा, अभिवाळा मनुष्य तिर्यंचोनी हकीकत कही छे. एक सागरोपमनी जित्, श्रवण, अश्विनी अने भरणी ए सात नक्षत्रो त्रण त्रण स्थितिबाळा देवो एक पखवाडीए श्वास ले छे अने एक तारावाळा कह्या छे, केटलाक देवो, नारकी जीवो, मनुष्यो हजार वर्षे आहार इच्छे छे, तथा केटलाक भव्य जीवो ने तिर्यंचोनी स्थिति त्रण पल्योपमनी होय छे ने केटलाक एक ज भववडे सिद्ध थवाना होय छे. देवो ने नारकीओनी स्थिति त्रण सागरोपमनी होय छे (२) बीजा समवायमांवे दंड, वे राशि अने वे बंधन ते कहेल छे. जे देवोनी उत्कृष्ट स्थिति व्रण सागरोपमनी छे

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