Book Title: Agam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Mool Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Devardhigani Kshamashaman
Publisher: Global Jain Agam Mission

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Page 37
________________ समवायांग सूत्र जायतेयं समारब्भ, बहूं आरंभिया जणं । अंतोधूमेण मारेइ, महामोहं पकुव्वइ ॥४॥ सीसम्मि जे पहणइ, उत्तमंगम्मि चेयसा । विभज्ज मत्थयं फाले, महामोहं पकुव्वइ ॥५॥ पुणो पुणो पणिहिए, हणित्ता उवहसे जणं । फलेणं अदुवा दंडेणं, महामोहं पकुव्वइ ॥६॥ गूढायारी णिगूहिज्जा, मायं मायाए छायए | असच्चवाई णिण्हाई, महामोहं पकुव्वइ ॥७॥ धंसेइ जो अभूएणं, अकम्मं अत्तकम्मणा । अदुवा तुमऽकासि त्ति, महामोहं पकुव्वइ ॥८॥ जाणमाणो परिसओ, सच्चामोसाणि भासइ । अक्खीणझंझे पुरिसे, महामोहं पकुव्वइ ॥९॥ अणागयस्स णयवं, दारे तस्सेव धंसिया । विउलं विक्खोभइत्ताणं, किच्चा णं पडिबाहिरं ॥१०॥ उवगसंतं पि झंपित्ता, पडिलोमाहिं वग्गुहिं । भोगभोगे वियारेइ, महामोहं पकुव्वइ ॥११॥ अकुमारभूए जे केई, कुमारभूए त्ति हं वए | इत्थीहिं गिद्धे वसए, महामोहं पकुव्वइ ॥१२॥ अबंभयारी जे केई, बंभयारि त्ति हं वए । गद्दहे व्व गवां मज्झे विस्सरं णयइ णदं ॥१३॥ अप्पणो अहिए बाले, मायामोसं बहुं भसे । इत्थीविसयगेहीए, महामोहं पकुव्वइ ॥१४॥ जं णिस्सए उव्वहइ, जससाहिगमेण वा । तस्स लुब्भइ वित्तम्मि, महामोहं पकुव्वइ ॥१५॥ ईसरेण अदुवा गामेणं, अणिसरे ईसरीकए । तस्ससंपय हीणस्स, सिरी अतुलमागया ॥१६॥ ईसादोसेण आविटे, कलसाविलचेयसे । जे अंतरायं चेएइ, महामोहं पकव्वइ ॥१७॥

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