Book Title: Agam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Mool Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Devardhigani Kshamashaman
Publisher: Global Jain Agam Mission

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Page 71
________________ समवायांग सूत्र णिदंसिज्जंति उवदं। सिज्जंति | से एवं आया, से एवं णाया, एवं विण्णाया, एवं चरणकरणपरूवणया आघविज्जति पण्णविज्जंति, परूविज्जंति दंसिज्जंति णिदंसिज्जंति उवदंसिज्जंति। से त्तं वियाहे ॥५॥ से किं तं णायाधम्मकहाओ ? णायाधम्मकहासु णं णायाणं णगराइं उज्जाणाई चेइआई वणखंडा रायाणो अम्मापियरो समोसरणाई धम्मायरिया धम्मकहाओ इहलोइय-परलोइय-इड्ढीविसेसा भोगपरिच्चाया पव्वज्जाओ सुयपरिग्गहा तवोवहाणाइं परियागा संलेहणाओ भत्तपच्चक्खाणाई पाओवगमणाई देवलोगगमणाई सुक्लपच्चायायाइं पुणब्बोहिलाभा अंतकिरियाओ य आघविज्जति पण्णविज्जंति परूविज्जति दंसिज्जंति णिदंसिज्जंति उवदंसिज्जंति । णायाधम्मकहासु णं पव्वइयाणं विणय करण जिणसामि सासणवरे संजम पइण्णपालण धिड़ मइ ववसायदुब्बलाणं, तवणियम तवोवहाण रणदुद्धरभरभग्गा णिस्सहा णिसिट्ठाणं, घोर परीसह पराजियाणं, असहपारद्ध रुद्धसिद्धालय महग्ग णिग्गयाण, विसयसुह तुच्छ आसावस दोसमुच्छियाणं, विराहिय चरित्त णाण दंसण अइगुण विविहप्पयार णिस्सारसुण्णयाणं, संसार अपार दुक्ख दुग्गइ भवविविह परंपरापवंचा, धीराण य जिय परीसह कसाय सेण्ण धिइ धणिय संजम उच्छाह णिच्छियाण, आराहियणाण दंसण चरित्तजोग णिस्सल्ल सुद्धसिद्धालय मग्गमभिमुहाणं सुरभवण विमाणसुक्खाइं अणोवमाइं भुत्तूण चिरं च भोगभोगाणि ताणि दिव्वाणि महरिहाणि, ततो य कालक्कमचुयाण जह य पुणो लद्धसिद्धिमग्गाणं अंतकिरिया, चलियाण य सदेव माणुस्सधीर करण कारणाणि बोधण अणुसासणाणि गुण दोस दरिसणाणि। दिढते पच्चये य सोऊण गो जह य ठियासासणम्मि जर मरण णासणकरे आराहियसंजमा य सरलोगपडिणियत्ता ओवेति जह सासयं सिवं सव्वदक्खमोक्खं, एए अण्णे य एवमाइयत्था वित्थरेण य । णायाधम्मकहासु णं परित्ता वायणा, संखेज्जा अणुओगदारा, संखेज्जाओ पडिवत्तीओ, संखेज्जा वेढा, संखेज्जा सिलोगा, संखेज्जाओ णिज्जुत्तीओ संखेज्जाओ संहणीओ | से णं अंगठ्ठयाए छठे अंगे, दो सुअक्खंधा, एगूणवीसं अज्झयणा । ते समासओ दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-चरिता य कप्पिया य । दस धम्मकहाणं वग्गा | तत्थ णं एगमेगाए धम्मकहाए पंच पंच अक्खाइयासयाई, एगमेगाए अक्खाइयाए पंच पंच उवक्खाइयासयाई, एगमेगाए उवक्खाइयाए पंच पंच अक्खाइय-उवक्खाइयासयाई, एवमेव सप्पव्वावरेणं अट्ठाओ अक्खाइयाकोडीओ भवंतीति मक्खायाओ ।

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