Book Title: Agam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Mool Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Devardhigani Kshamashaman
Publisher: Global Jain Agam Mission

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Page 68
________________ ३२ 33 ३४ समवायांग सूत्र पुरिससीहे णं वासुदेवे दस वाससयसहस्साइं सव्वाउयं पालइत्ता पंचमाए पुढवीए णेरइएसु णेरइयत्ताए उववण्णे ||१००००००|| समणे भगवं महावीरे तित्थगरभवग्गहणाओ छट्ठे पोट्टिलभवग्गहणे एगं वासकोडिं सामण्णपरियागं पाउणित्ता सहस्सारे कप्पे सव्वट्ठविमाणे देवत्ताए उववण्णे ॥१००,००,०००॥ उसभसिरिस्स भगवओ चरिमस्स य महावीरवद्धमाणस्स एगा सागरोव - मकोडाकोडी अबाहाए अंतरे पण्णत्ते || १०००००००००००००० सा० ॥ दुवालसंग गणिपिडग दुवालसंगे गणिपिडगे पण्णत्ते, तं जहा- आयारे सूयगडे ठाणे समवाए विवाहपण्णत्ती णायाधम्मकहाओ उवासगदसाओ अंतगडदसाओ अणुत्तरोव- वाइयदसाओ पण्हावागरणाई विवागसुए दिट्ठिवाए । से किं तं आयारे ? आयारे णं समणाणं णिग्गंथाणं आयारगोयरविणय वेणइयट्ठाण गमण चंकमण पमाण जोगजुंजण भासा समिइ गुत्ती सेज्जोवहि भत्त पाण उग्गम उप्पायण एसणा विसोहि सुद्धासुद्धग्गहण वय णियम तवोवहाण सुप्पसत्थमाहिज्जइ । से समासओ पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा - णाणायारे दंसणायारे चरित्तायारे तवायारे वीरियायारे । आयारस्स णं परित्ता वायणा, संखेज्जा अणुओगदारा, संखेज्जाओ पडिवत्तीओ, संखेज्जा वेढा, संखेज्जा सिलोगा, संखेज्जाओ णिज्जुत्तीओ संखेज्जाओ संगहणीओ । सेणं अंगट्ठयाए पढमे अंगे, दो सुयक्खंधा, पणवीसं अज्झयणा, पंचासीइं उद्देसणकाला, पंचासीइं समुद्देसणकाला, अट्ठारस पयसहस्साइं पयग्गेणं, संखेज्जा अक्खरा, अणंता गमा अणंता पज्जवा, परित्ता तसा, अणंता थावरा सासया कडा णिबद्धा णिकाइया जिणपण्णत्ता भावा आघविज्जंति पण्णविज्जंति परूविज्जंति दंसिज्जंति णिदंसिज्जंति उवदंसिज्जंति । से एवं आया, एवं णाया, एवं विण्णाया, एवं चरण-करणपरुवणया आघविज्जंति पण्णविज्जंति परूविज्जंति दंसिज्जंति णिदंसिज्जंति उवदंसिज्जंति से त्तं आयारे ॥१॥ से किं तं सूयगडे ? सूयगडे णं ससमया सूइज्जंति, परसमया सूइज्जंति, ससमयपरसमया सूइज्जंति, जीवा सूइज्जंति, अजीवा सूइज्जंति, जीवाजीवा सूइज्जंति, लोगे सूइज्जइ, अलोगे सूइज्जइ लोगालोगे सूइज्जइ । समा सूयगडे णं जीवाजीव पुण्ण पावासव संवर णिज्जरण बंध मोक्खावसाणा पयत्था सूइज्जति। अचिरकालपव्वइयाणं कुसमयमोह-मोहमइ-मोहियाणं संदेहजायसहजबुद्धि परिणामसंसइयाणं पावकर-मलिणमइ - गुणविसोहणत्थं असीअस्स किरियावाइयसयस्स, चउरासी अकिरियवाईणं, सत्तट्ठीए अण्णाणियवाईणं, बत्तीसाए वेणइयवाईणं तिन्हं तेवद्वीणं 62

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