Book Title: Agam 04 Ang 04 Samvayang Sutra
Author(s): Sumanbai Mahasati, Shobhachad Bharilla
Publisher: Jinagam Prakashan Samiti

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Page 9
________________ ५४ અશુદ્ધ ૧૬૨ ૧૬૨ ૧૬૩ १७१ ૧૭૨ ૧૭૨ શ્રેણિ १७४ १७७ ૧૮૨ ૧૮૪ ૧૮૬ ૧૮૬ ૧૯૨ ૧૯૨ ૧૯૨ १८३ ૧૯૪ ૧૯૪ ૧૯૪ सत्त अटठ શ્રાધ્યયન શ્રાધ્યયન જિનગમ જિનાગમ શ્રેણિ आजीविय ससमय १४ भी 81 पछी 'इच्चेयाई बावीस सुत्ताई अछिण्णछेयणइयायं आजीविय सुत्तपरिवाडिए' ते पा8 वांयो . वत्थणि वत्थूणि पारत्ता परित्ता जीवरासो जीवरासी चतुन्थीए चउत्थीए दद्दरदिज्ज दद्दरदिज्ज जाइसिय जाइसियाणं दक्षतर जोयणसयवाहलके तिरियं ते प्रमाण वांय अंतामुहूत्तणाई अंतोमुहूत्तणाई अहोलीइयं अहोलोइयं भवपच्चदुए भवपच्चइए वयेणं बेयण आहारपायं आहारपयं आउगबंये आउगबंधे गाइनामनिहत्ताउए गतिनामनिहत्ताउए दवेगह देवगेह आगरिसेहिं आगारिसेहि संघयाणा संघयणी छेवट संघजणा छेवट्ट संघयणी अणुरकुमय असुरकुमारा असुरकुमरा असुरकुमारा नेऊ तेऊ इत्थवियेए इत्थवेया चम चदयाम जिणरिंदाज जिगवरिंदाज ससस्सपरिवारा सहस्सपरिवारा जिणवविंदे जिणवरिंदे चेइयंसक्खा चेइयंरुक्खा जुण जंबुवेडीज जंबुदीवे अनहिता अणिह्या जब्भुवगय अमुवगया वबआ ववेया साअरा मायरा कार्यदि काकन्दि सीमचरे सीमंधरे पेठालयुत्ते पेढालपुत्ते "F ૧૯૭ ૧૯૭ ૧૯૮ ૨૦૨ ૨૦૨ २०३ २०४ ૨૦૫ ૨૦૫ २०७ २०८ २०८ २०८ पुण २०८ ૨૧૧ Jain Educationa international For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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