Book Title: Adya Panchashaka Curni
Author(s): Haribhadrasuri, Yashodevsuri
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 6
________________ श्रावकधर्मपञ्चाशक चूर्णिः ।। LOCALGC3 मुखवन्ध। REC%% चूर्णिकार श्रीमद् यशोदेवसूरीश्वर पण चूर्णिमा “ उमासाइवायगेण” इत्यादि पाठथी संकितपणे एज प्रभने उपाडे छे के " श्रीउमास्वाति वाचके “ श्रावक्रप्रज्ञप्तिमा " श्रावकधर्मने कह्यो छे तो पछी आ अन्य पंचाशक-प्रकरण- प्रयोजन शु?” एनो उत्तर पण चूर्णिकार श्रीयशोदेवमूरि " पुवायरिएहिं गंभीरवयणेहिं भणियाणं-इत्यादि पाठथी आपे छे के पूर्वाचार्योए गंभीरवचनोथी-सहजमा न अवगाही शकाय तेवा वचनोथी-आ विषय सर्यो छे तेथी व्रत-अतिचार आदि विषयोमा मंदबुद्धि शिष्योने भावार्थ कष्टथी समजाय एम होवाथी सरळताथी समजाववा, संक्षेपथी अने स्पष्टपणे वर्णव्यो छे." स्पष्ट अने संक्षेप शब्दोनो अर्थ एटलो ज होय छे के " बहु सहेलाईथी समजी शकाय, समजावी शकाय अने स्पष्टपणे समजवामां आवेलो होय तो आदरवामां, दुष्करपणुं या कठिनास वर्ताय नहि तथा उल्लासपूर्वक तेनुं परिशीलन थई शके." श्रावकधर्मना नाना प्रकारना विषयोने चर्चतो आ ग्रन्थ प्रकरणरूपे ' देशविरतिधर्मना अनुशीलन माटे' ५० गाथामां ग्रन्थकारे पूर्ण कर्यो छे. " भवविरहांक " श्रीहरिभद्रसूरिजी " विक्रमना छट्ठा " सैकामां थयेला धारवामां आवे छे. चूर्णिकार श्रीयशोदेवमरिए वि० सं० ११७२ मा आ श्रावकधर्म उपर चूर्णि रची छे, ए चूर्णिकारे पोते ज आ वाक्योथी जणाव्युं छे: " नयणमुंणिथाणुमाणे( ११७२ )काले विगयंमि विकमनिवाओ ॥ ४॥" श्रीमद् यशोदेवमूरि श्रीचान्द्रकुल गच्छना श्रीचन्द्रसूरिना शिष्य छे ए वस्तु पोते आ पंचाशकचूर्णिमां सिद्ध करी छे. तदुपरांत पोते ज श्रीपाक्षिकसूत्र-विवरणमां तेनी पुष्पिकामां आ प्रमाणे दर्शाये छे: १ पाक्षिकसूत्र-विवरण आ फंढ तरफथी पूर्व प्रधाङ्क ४ तरीके प्रसिद्ध थयेल छे. CAROCEAE% ACEBCALCCANCICROCARRIE% % JanEducation in For Private Personal use only G ww.jainelibrary.org %

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